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*'''फ़ैज़ी''' शेख़ मुबारक़ नागौरी का पुत्र और [[अबुल फ़ज़ल]] का बड़ा भाई था।
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'''फ़ैज़ी''' [[मध्यकालीन भारत]] का एक विद्वान् साहित्यकार और [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] का प्रसिद्ध कवि था। वह [[अकबर के नवरत्न|अकबर के नवरत्नों]] में से एक था, जिसका [[मुग़ल]] साम्राज्य में बहुत मान-सम्मान था।
*[[मध्यकालीन भारत]] का वह एक विद्वान् साहित्यकार और प्रसिद्ध [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] कवि था।
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*वह [[अकबर के नवरत्न|अकबर के नवरत्नों]] में से एक था, जिसका [[मुग़ल]] साम्राज्य में बहुत मान-सम्मान था।
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*फ़ैज़ी का पूरा नाम 'शेख अबु अल फ़ैज़' था।
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अकबरी दरबार के महान रत्न '''फ़ैज़ी''' अपने समय के स्वतंत्र विचारक 'शेख़ मुबारक़ नागौरी' के [[पुत्र]] और [[अबुल फ़जल]] के बड़े [[भाई]] थे। फ़ैज़ी का पूरा नाम 'शेख अबु अल फ़ैज़' था। फ़ैज़ी का [[पिता]] शेख़ मुबारक़ नागौरी [[सिंध प्रदेश]] के 'सिस्तान', 'सहवान' के पास एक सिंधी, शेख़ मूसा की पीढ़ी से सम्बन्ध रखता थे। शेख़ नागौरी सभी लोगों से समानता का व्यवहार करते थे। उन्होंने शिया और सुन्नी में कभी कोई भेद नहीं किया।  
*फ़ैज़ी का पिता शेख़ मुबारक़ नागौरी [[सिंध]] प्रदेश के सिस्तान, सहवान के पास एक सिंधी, शेख़ मूसा की पीढ़ी से सम्बन्ध रखता था।
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==परिचय==
*शेख़ नागौरी सभी लोगों से समानता का व्यवहार करते थे। उन्होंने शिया और सुन्नी में कभी कोई भेद नहीं किया।
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[[आगरा]] के एक मामूली हस्ती के [[परिवार]] में फ़ैज़ी और अबुल फ़जल का जन्म हुआ। फ़ैज़ी ने अपनी शिक्षा काफ़ी हद तक अपने पिता शेख़ नागौरी से ही प्राप्त की थी। अपनी असाधारण योग्यता के बल पर ही दोनों भाइयों ने [[अकबर]] के रत्नों और मंत्रियों में स्थान पाया। बाप और बेटे  अकबर के [[दीन-ए-इलाही]] में दीक्षित हुए थे। कट्टर मुसलमान अकबर के साथ साथ इन फ़ैज़ी और [[अबुल फ़जल]] बंधुओं को भी काफ़िर मानते थे। इसमें सन्देह नहीं कि अकबर को धार्मिक पक्षपात से ऊपर उठाने में इन दोनों भाइयों का बहुत बड़ा हाथ था।
*फ़ैज़ी ने अपनी शिक्षा काफ़ी हद तक अपने पिता शेख़ नागौरी से ही प्राप्त की थी।
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==अकबर से मुलाक़ात==
*1567 ई. में फ़ैज़ी पहली बार [[अकबर]] से मिला था।
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1567 ई. में फ़ैज़ी पहली बार [[अकबर]] से मिला था। अकबर ने पहले से ही फ़ैज़ी के बारे में बहुत सुन रखा था, इसीलिए उसने फ़ैज़ी की अपने दरबार में बहुत आवभगत की। सम्राट अकबर ने फ़ैज़ी को गणित के शिक्षक के रूप में अपने बेटे के लिए नियुक्त किया था। 27 जून 1579 को पहली बार अकबर ने पुलपिट पर खड़े होकर जो ख़ुतबा पढ़ा था, उसकी रचना फ़ैज़ी ने ही की थी। इसके बाद ही अकबर ने नये [[धर्म]] का प्रवर्तन किया था, जो कि '[[दीन-ए-इलाही]]' के नाम से विख्यात हुआ। 1591 ई. में अकबर ने फ़ैज़ी को [[ख़ानदेश]] और [[अहमदनगर]] अपना दूत बनाकर भेजा। वह ख़ानदेश को अधीन करने में सफल हुआ, लेकिन [[अहमदनगर]] में उसे सफलता नहीं प्राप्त हुई। इस प्रकार राज दौत्यकर्म में उसे आंशिक सफलता प्राप्त हुई।
*अकबर ने पहले से ही फ़ैज़ी के बारे में बहुत सुन रखा था, इसीलिए उसने फ़ैज़ी की अपने दरबार में बहुत आव-भगत की।
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==महान कवि==
*सम्राट अकबर ने फ़ैज़ी को गणित के शिक्षक के रूप में अपने बेटे के लिए नियुक्त किया था।
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फ़ैज़ी की गणना [[फारसी भाषा|फारसी]] के महान कवियों में होती थी। उनके 'दीवान' में नौ हज़ार पंक्तियाँ हैं। फ़ैज़ी के कसीदे अकबर को बहुत प्रिय थे। फ़ैज़ी [[संस्कृत भाषा]] भी जानते थे। उन्होंने [[भास्कराचार्य]] की गणित की पुस्तक '''लीलावती''' का फारसी में अनुवाद किया था।
*27 जून 1579 को पहली बार अकबर ने पुलपिट पर खड़े होकर जो ख़ुतबा पढ़ा था, उसकी रचना फ़ैज़ी ने ही की थी।
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*इसके बाद ही अकबर ने नये धर्म का प्रवर्तन किया था, जो कि '[[दीन-ए-इलाही]]' के नाम से विख्यात हुआ।
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*1591 ई. में अकबर ने फ़ैज़ी को [[ख़ानदेश]] और [[अहमदनगर]] अपना दूत बनाकर भेजा।
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*वह ख़ानदेश को अधीन करने में सफल हुआ, लेकिन अहमदनगर में उसे सफलता नहीं प्राप्त हुई। इस प्रकार राज दौत्यकर्म में उसे आंशिक सफलता प्राप्त हुई।
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==निधन==
*फ़ैज़ी की 1595 ई. में उसकी मृत्यु हो गई थी।
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फ़ैज़ी की 1595 ई. में मृत्यु हो गई थी।
  
 
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10:28, 17 मार्च 2018 का अवतरण

फ़ैज़ी मध्यकालीन भारत का एक विद्वान् साहित्यकार और फ़ारसी का प्रसिद्ध कवि था। वह अकबर के नवरत्नों में से एक था, जिसका मुग़ल साम्राज्य में बहुत मान-सम्मान था।


अकबरी दरबार के महान रत्न फ़ैज़ी अपने समय के स्वतंत्र विचारक 'शेख़ मुबारक़ नागौरी' के पुत्र और अबुल फ़जल के बड़े भाई थे। फ़ैज़ी का पूरा नाम 'शेख अबु अल फ़ैज़' था। फ़ैज़ी का पिता शेख़ मुबारक़ नागौरी सिंध प्रदेश के 'सिस्तान', 'सहवान' के पास एक सिंधी, शेख़ मूसा की पीढ़ी से सम्बन्ध रखता थे। शेख़ नागौरी सभी लोगों से समानता का व्यवहार करते थे। उन्होंने शिया और सुन्नी में कभी कोई भेद नहीं किया।

परिचय

आगरा के एक मामूली हस्ती के परिवार में फ़ैज़ी और अबुल फ़जल का जन्म हुआ। फ़ैज़ी ने अपनी शिक्षा काफ़ी हद तक अपने पिता शेख़ नागौरी से ही प्राप्त की थी। अपनी असाधारण योग्यता के बल पर ही दोनों भाइयों ने अकबर के रत्नों और मंत्रियों में स्थान पाया। बाप और बेटे अकबर के दीन-ए-इलाही में दीक्षित हुए थे। कट्टर मुसलमान अकबर के साथ साथ इन फ़ैज़ी और अबुल फ़जल बंधुओं को भी काफ़िर मानते थे। इसमें सन्देह नहीं कि अकबर को धार्मिक पक्षपात से ऊपर उठाने में इन दोनों भाइयों का बहुत बड़ा हाथ था।

अकबर से मुलाक़ात

1567 ई. में फ़ैज़ी पहली बार अकबर से मिला था। अकबर ने पहले से ही फ़ैज़ी के बारे में बहुत सुन रखा था, इसीलिए उसने फ़ैज़ी की अपने दरबार में बहुत आवभगत की। सम्राट अकबर ने फ़ैज़ी को गणित के शिक्षक के रूप में अपने बेटे के लिए नियुक्त किया था। 27 जून 1579 को पहली बार अकबर ने पुलपिट पर खड़े होकर जो ख़ुतबा पढ़ा था, उसकी रचना फ़ैज़ी ने ही की थी। इसके बाद ही अकबर ने नये धर्म का प्रवर्तन किया था, जो कि 'दीन-ए-इलाही' के नाम से विख्यात हुआ। 1591 ई. में अकबर ने फ़ैज़ी को ख़ानदेश और अहमदनगर अपना दूत बनाकर भेजा। वह ख़ानदेश को अधीन करने में सफल हुआ, लेकिन अहमदनगर में उसे सफलता नहीं प्राप्त हुई। इस प्रकार राज दौत्यकर्म में उसे आंशिक सफलता प्राप्त हुई।

महान कवि

फ़ैज़ी की गणना फारसी के महान कवियों में होती थी। उनके 'दीवान' में नौ हज़ार पंक्तियाँ हैं। फ़ैज़ी के कसीदे अकबर को बहुत प्रिय थे। फ़ैज़ी संस्कृत भाषा भी जानते थे। उन्होंने भास्कराचार्य की गणित की पुस्तक लीलावती का फारसी में अनुवाद किया था।

हमारे देश में नल दमयन्ती का आख्यान बहुत प्रसिद्ध है। ‘नलोपाख्यान’ में यह कथा मिलती है। इस आख्यान के आधार पर त्रिविकिम ने ‘नल चम्पू’ और श्रीहर्ष ने अपने ‘नैषध’ काव्य की रचना की थी। अकबर को यह आख्यान बहुत पसंद आया। उसने इस आख्यान पर फारसी में काव्य रचने का फ़ैज़ी से आग्रह किया। फ़ैज़ी ने पाँच महीने में इस कथानक पर फारसी में ‘नल दमन’ नाम से एक काव्य लिखा। फैजी ने और भी कई ग्रंथ लिखे।[1]

निधन

फ़ैज़ी की 1595 ई. में मृत्यु हो गई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत इतिहास संस्कृति और विज्ञान |लेखक: गुणाकर मुले |प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन |पृष्ठ संख्या: 250 |

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