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*बसव (जन्म- 1134; मृत्यु- 1196) 12वीं शताब्दी के धार्मिक सुधारक, उपदेशक, धर्म मीमांसक और चालुक्य राजा बिज्जला प्रथम<ref>शासनकाल, 1156-67</ref> के राजसी कोषागार के प्रबंधक थे।  
*बसव (जन्म- 1134; मृत्यु- 1196) 12वीं शताब्दी के धार्मिक सुधारक, उपदेशक, धर्म मीमांसक और [[चालुक्य]] राजा बिज्जला 1<ref>शासनकाल, 1156-67</ref> के राजसी कोषागार के प्रबंधक थे।  
 
 
*बसव [[हिंदू]] वीरशैव (लिंगायत) मत के पवित्र [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में से एक, बसव पुराण के रचयिता हैं।  
 
*बसव [[हिंदू]] वीरशैव (लिंगायत) मत के पवित्र [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में से एक, बसव पुराण के रचयिता हैं।  
*परंपरा के अनुसार, वह वीरशैव के वास्तविक संस्थापक थे, परंतु चालुक्य अभिलेखों से पता चलता है कि उन्होंने वास्तव में पहले से मौजूद मत को पुनर्जीवित किया।  
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*परंपरा के अनुसार, वह वीरशैव के वास्तविक संस्थापक थे, परंतु [[चालुक्य]] [[अभिलेख|अभिलेखों]] से पता चलता है कि उन्होंने वास्तव में पहले से मौजूद मत को पुनर्जीवित किया।  
 
*बसव ने वीरशैव संस्थाओं को सहायता देकर और वीरशैव मत की शिक्षा देकर प्रचार में सहायता दी थी।  
 
*बसव ने वीरशैव संस्थाओं को सहायता देकर और वीरशैव मत की शिक्षा देकर प्रचार में सहायता दी थी।  
 
*बसव के चाचा [[प्रधानमंत्री]] थे और उन्होंने बसव को कोषागार प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था।  
 
*बसव के चाचा [[प्रधानमंत्री]] थे और उन्होंने बसव को कोषागार प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था।  
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06:18, 8 अक्टूबर 2011 का अवतरण

  • बसव (जन्म- 1134; मृत्यु- 1196) 12वीं शताब्दी के धार्मिक सुधारक, उपदेशक, धर्म मीमांसक और चालुक्य राजा बिज्जला प्रथम[1] के राजसी कोषागार के प्रबंधक थे।
  • बसव हिंदू वीरशैव (लिंगायत) मत के पवित्र ग्रंथों में से एक, बसव पुराण के रचयिता हैं।
  • परंपरा के अनुसार, वह वीरशैव के वास्तविक संस्थापक थे, परंतु चालुक्य अभिलेखों से पता चलता है कि उन्होंने वास्तव में पहले से मौजूद मत को पुनर्जीवित किया।
  • बसव ने वीरशैव संस्थाओं को सहायता देकर और वीरशैव मत की शिक्षा देकर प्रचार में सहायता दी थी।
  • बसव के चाचा प्रधानमंत्री थे और उन्होंने बसव को कोषागार प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था।
  • कई वर्ष तक उनके गुट को काफ़ी लोकप्रियता मिली, परंतु दरबार में अन्य गुट उनकी शक्तियों और उनकी शह में वीरशैल मत के प्रसार से क्षुब्ध थे।
  • उनके द्वारा लगाए गए आरोपों के कारण वह राज्य छोड़ कर चले गए और शीघ्र ही उनकी मृत्यु हो गई।
  • भगवान शिव की स्तुति में उनके रचित भजनों से उन्हें कन्नड़ साहित्य में प्रमुख स्थान तथा हिंदू भक्ति साहित्य में भी स्थान मिला।

 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शासनकाल, 1156-67

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख