असंगति अलंकार
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जहाँ आपातत: विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरण्य वर्णित हो, वहाँ असंगति अलंकार होता है।[1]
- इसमें दो वस्तुओं का वर्णन होता है, जिनमें कारण कार्य सम्बन्ध होता है। इन वस्तुओं की एकदेशीय स्थिति आवश्यक है, लेकिन वर्णन भिन्नदेशत्व का किया जाता है।
- रसखान के साहित्य में असंगति की योजना अत्यन्त सीमित रूप में हुई है। एक प्रभाव-व्यंजक उदाहरण अवलोकनीय है। गोकुल के ग्वाल (कृष्ण) की मनोहर चेष्टाओं पर मुग्ध हुई गोपी कहती है-
पिचका चलाइ और जुवती भिजाइ नेह,
लोचन नचाइ मेरे अंगहि नचाइ गौ।[2]
उपरोक्त पंक्तियों में क्रिया कृष्ण के नेत्रों में होती है, परन्तु प्रभाव गोपी के अंग पर होता है। उसका अंग-अंग उसके लोल लोचनों के कटाक्ष में नाच उठता है।
- अन्य उदाहरण-
"हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।"
घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं, पर पीड़ा राम को है, अत: यहाँ असंगति अलंकार है।[3]
इन्हें भी देखें: अलंकार, रस एवं छन्द
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विरुद्धत्वेनापाततो भासमानं हेतुकार्यपोर्वेयधिकरण्यमसंगति:॥ -रसगंगाधर, पृ0 589
- ↑ सुजान रसखान, 194
- ↑ हिन्दी व्याकरण (हिन्दी) हिन्दीग्रामरलर्न.कॉम। अभिगमन तिथि: 15, 2014।