वृत्त्यनुप्रास अलंकार

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वृत्त्यनुप्रास अलंकार - जहाँ वृत्तियों[1] के अनुसार एक या अनेक वर्णों की आवृत्ति क्रमपूर्वक अनेक बार हो, वहाँ वृत्त्यनुप्रास अलंकार होता है।

  • रसखान के काव्य में अनुप्रास की बड़ी चित्ताकर्षक योजना हुई है। अनुप्रास की नियोजना से कविता सुनने में भली लगती है। उससे कविता का प्रभाव परिवर्धित हो जाता है।
  • रसखान के कवित्त और सवैयों की वर्णयोजना भावक के मन को तरंगित करती रहती है। भावानुकूल अनुप्रास का प्रयोग सफल कवि ही कर सकते हैं।
  • स्वयं को रसखान ने इस कला में पारंगत सिद्ध किया है। उनकी कविता में वृत्यानुप्रासयुक्त अनेकानेक सुंदर सवैये और कवित्त हैं। ऐसा लगता है कि कवि शब्दों को नचाता हुआ चल रहा है।

सेष गनेस महेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।
जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सु बेद बतावैं।[2]

अथवा

छकि छैल छबीली छटा छहराइ के कौतुक कोटि दिखाइ रही।[3]


इन्हें भी देखें: रस, अलंकार एवं छन्द


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उपनागरिका, परुषा और कोमला
  2. सुजान रसखान, 13
  3. सुजान रसखान, 154

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