अदहम ख़ाँ बादशाह अकबर की दूध माँ माहम अनगा का पुत्र था। उसने तथा माहम अनगा ने अकबर को बैरम ख़ाँ के विरुद्ध भड़काने में मुख्य रूप से भाग लिया था, जिस कारण अकबर ने 1560 ई. में बैरम ख़ाँ को बर्ख़ास्त कर दिया। इसके बाद दो वर्ष तक अकबर पर अदहम ख़ाँ का भारी प्रभाव रहा। अकबर ने मालवा जीतने के लिए जो सेना भेजी थे, उसका प्रधान सेनापति भी अदहम ख़ाँ का बनाया। 1562 ई. में उसने शम्शुद्दीन अतगा ख़ाँ को, जिसे अकबर ने अपना मंत्री बनाया था, महल के अन्दर क़त्ल कर दिया। इससे बादशाह इतना नाराज़ हुआ कि उसने अदहम ख़ाँ को क़िले की दीवार से नीचे फेंककर मार डालने का हुक़्म दिया।
मालवा की विजय
1560 ई. की शरद में माहम अनगा के पुत्र अदहम ख़ाँ की अधीनता में मालवा पर आक्रमण करने की तैयारी की गई। पीर मुहम्मद शिरवानी कहने के लिए तो सहायक सेनापति था, नहीं तो वही सर्वेसर्वा था। नौजवान अदहम ख़ाँ अपनी माँ के कारण ही प्रधान सेनापति बनाया गया था। सारंगपुर के पास 1561 ई. में बाजबहादुर की हार हुई। मालवा का ख़ज़ाना शाही सेना के हाथ में आया। बाजबहादुर ने अपने अफ़सरों को कह रखा था कि हार होने पर दुश्मन के हाथ में जाने से बचाने के लिए बेगमों को मार डालना। अपने सौंदर्य के लिए जगत् प्रसिद्ध रूपमती पर तलवार चलाई गई, लेकिन वह मरी नहीं।
माहम अनगा की चालाकी
अदहम ख़ाँ ने लूट के माल को अपने हाथ में रखना चाहा और थोड़े से हाथी भर अकबर के पास भेजे। पीर मुहम्मद और अदहम ख़ाँ ने मालवा में भारी क्रूरता की। मालवा के हिन्दू-मुस्लिमों में कोई अन्तर नहीं था। मालवा पर पहले से हुकूमत करने वाले भी मुस्लिम थे। विद्वान् शेख़ों और सम्माननीय सैय्यदों को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। यह ख़बर अकबर के पास पहुँची। वह जानता था कि माहम अपने पुत्र के लिए कुछ भी करने से उठा नहीं रखेगी, इसीलिए बिना सूचना दिए वह एक दिन (27 अप्रॅल, 1561 ई.) को थोड़े से आदमियों को लेकर आगरा से चल पड़ा। ख़बर मिलते ही माहम अनगा ने अपने लड़के (अदहम ख़ाँ) के पास दूत भेजा, लेकिन अकबर उससे पहले ही वहाँ पर पहुँच गया था। अदहम ख़ाँ अकबर को देखते ही हक्का-बक्का रह गया। उसने अकबर के सामने आत्म-समर्पण करके छुट्टी लेनी चाही। अकबर को मालूम हुआ कि उसने बाजबहादुर के अन्त:पुर की दो सुन्दरियों को छिपा रखा है। माहम अनगा घबराई। उसने सोचा, यदि ये दोनों अकबर के सामने हाजिर हुईं तो बेटे का भेद खुल जायेगा। इसीलिए उसने दोनों सुन्दरियों को ज़हर देकर मरवा दिया।
अदहम ख़ाँ की हत्या
16 मई, 1562 ई. की दोपहर को अकबर महल में आराम कर रहा था। शम्शुद्दीन मुहम्मद अतगा के मंत्री बनाये जाने से माहम अनगा बहुत नाराज़ थी। उसका नालायक़ बेटा अदहम ख़ाँ गुस्से से पागल हो गया था। अनगा के सम्बन्धी और हितमित्र डरने लगे कि शासन उनके हाथ में नहीं रहेगा, इसीलिए कुछ करना चाहिए। मुनअम ख़ाँ और अफ़सरों के साथ शम्शुद्दीन दरबार में बैठा कार्य करने में लगा हुआ था। इसी समय वहाँ पर अदहम ख़ाँ आ धमका। शम्शुद्दीन उसके सम्मान के लिए खड़ा हो गया, लेकिन उसे स्वीकार करने की जगह अदहम ख़ाँ ने कटार निकाल ली। उसके इशारे पर उसके दो आदमियों ने शम्शुद्दीन मुहम्मद अतगा पर वार किया। अतगा वहीं आँगन में गिर पड़ा। हल्ला-गुल्ला अकबर के कमरे तक पहुँचा। अदहम ख़ाँ ने चाहा कि अकबर को भी इसी समय समाप्त कर दूँ, लेकिन शाही नौकरों ने दरवाज़े को भीतर से बन्द कर दिया। अकबर को ख़बर मिली, तो वह दूसरे दरवाज़े से तलवार लिए बाहर निकला। अदहम ख़ाँ को देखते ही उसने पूछा- "शम्शुद्दीन मुहम्मद अतगा को तुमने क्यों मारा?" अदहम ख़ाँ ने बहाना करते हुए अकबर का हाथ पकड़ लिया। अकबर ने हाथ खींचना चाहा, अदहम ख़ाँ ने बादशाह की तलवार पकड़नी चाही। अकबर ने ज़ोर का मुक्का मारा, जिससे अदहम ख़ाँ बेहोश होकर गिर पड़ा। अकबर ने आदमियों को हुक्म दिया- "इसे बाँधकर महल के परकोटे से नीचे गिरा दो।" हुकुम की पाबन्दी आधे दिल से की गई, जिससे अदहम ख़ाँ मरा नहीं। अकबर ने दुबारा हुकुम दिया और आदमियों ने पकड़कर फिर से अदहम ख़ाँ को नीचे गिराया। अदहम ख़ाँ की गर्दन टूट गई, खोपड़ी फाड़कर उसका भेजा बाहर निकल आया। अदहम ख़ाँ के काम में सहानुभूति रखने वाले मुनअम ख़ाँ, उसका दोस्त शहाबुद्दीन और दूसरे अमीर जान बचाकर भाग गए।
माहम अनगा की मृत्यु
अकबर अन्त:पुर में गया। माहम अनगा चारपाई पर बीमार पड़ी थी। उसने संक्षेप में सारी बात बतला दी, यद्यपि साफ़ नहीं कहा कि अदहम ख़ाँ मर चुका है। माहम अनगा ने इतना ही कहा- "हुज़ूर ने अच्छा किया।" माहम अनगा को इसका इतना ज़बर्दस्त आघात लगा कि चालीस दिन बाद उसने भी अपने बेटे का अनुगमन किया। अकबर ने कुतुबमीनार के पास माँ बेटे के लिए एक सुन्दर मक़बरा बनवा दिया। अदहम ख़ाँ और उसकी माँ के मरने के साथ अब अकबर पूरी तरह से स्वतंत्र हो गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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