आवन सुन्यो है मनभावन को भावती ने आँखिन अनँद आँसू ढरकि ढरकि उठैं । देव दृग दोऊ दौरि जात द्वार देहरी लौँ केहरी सी साँसे खरी खरकि-खरकि उठैँ । टहलैँ करति टहलैँ न हाथ पाँय रँग महलै निहारि तनी तरकि तरकि उठैं । सरकि सरकि सारी दरकि दरकि आँगी औचक उचौहैँ कुच फरकि फरकि उठैँ ।