मुरली सुनत बाम काम-जुर लीन भई धाई धुर लीक सुनि बिधीँ बिधुरनि सौँ । पावस न दीसी यह पावस नदी सी फिरै उमड़ी असँगत तरँगित उरनि सौँ । लाज काज सुख साज बँधन समाज नांघि निकसीँ निसँक सकुचैँ नहिँ गुरनि सौँ । मीन ज्यों अधीनी गुन कीनी खैँच लीनी देव बंसी वार बंसी डार बँसी के सुरनि सौँ ।