गोरी गरबीली उठी ऊँघत चकात गात , देव कवि नीलपट लपटी कपट सी । भानु की किरन उदैसान कँदरा ते कढ़ी, शोभा छवि कीन्ही तम तोम पै दपट सी । सोने की शलाका श्याम पेटी ते लपेटी कढ़ि, पन्ना ते निकारी पुखराज के झपट सी । नील घन तड़ित सुभाय धूम धुँधरित , धायकर धँसी दावा पावक लपट सी ।