कब देखौगी नयन वह मधुर मूरति? राजिवदल-नयन, कोमल-कृपा-अयन, मयननि बहु छबि अंगनि दूरति॥1॥ सिरसि जटाकलाप पानि सायक चाप उरसि रुचिर बनमाल मूरति। तुलसीदास रघुबीर की सोभा सुमिरि, भई है मगन नहिं तन की सूरति॥2॥