मैं केहि कहौ बिपति अति भारी। श्रीरघुबीर धीर हितकारी॥ मम हृदय भवन प्रभु तोरा। तहँ बसे आइ बहु चोरा॥ अति कठिन करहिं बर जोरा। मानहिं नहिं बिनय निहोरा॥ तम, मोह, लोभ अहँकारा। मद, क्रोध, बोध रिपु मारा॥ अति करहिं उपद्रव नाथा। मरदहिं मोहि जानि अनाथा॥