जो मोहि राम लागते मीठे। तौ नवरस, षटरस-रस अनरस ह्वै जाते सब सीठे॥1॥ बंचक बिषय बिबिध तनु धरि अनुभवे, सुने अरु डीठे। यह जानत हौं हृदय आपने सपने न अघाइ उबीठे॥2॥ तुलसीदास प्रभु सो एकहिं बल बचन कहत अति ढीठे। नामकी लाज राम करुनाकर केहि न दिये कर चीठे॥3॥