मैं हरि, पतित पावन सुने। मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥ ब्याध गनिक अगज अजामिल, साखि निगमनि भने। और अधम अनेक तारे, जात कापै गने॥ जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने। दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥