कृष्ण पट्टाभि जोइस

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कृष्ण पट्टाभि जोइस
कृष्ण पट्टाभि जोइस
कृष्ण पट्टाभि जोइस
पूरा नाम कृष्ण पट्टाभि जोइस
जन्म 26 जुलाई, 1915
जन्म भूमि ग्राम कोशिकवा, कर्नाटक
मृत्यु 18 मई, 2009
मृत्यु स्थान मैसूर
पति/पत्नी सवित्रमा
संतान तीन- सरस्वती, मंजू व रमेश
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र योग
प्रसिद्धि योगाचार्य
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी कृष्ण पट्टाभि जोइस के शिक्षक रूपी जीवन की शुरुआत मसूरी से हुई। यहां उन्होंने एक संस्कृत महाविद्यालय से योग का ज्ञान दिया और योग कक्षाएं भी जारी रखीं। उन्होंने लगभग 36 साल तक इसी महाविद्यालय में शिक्षा प्रदान की

कृष्ण पट्टाभि जोइस (अंग्रेज़ी: Krishna Pattabhi Jois, जन्म- 26 जुलाई, 1915; मृत्यु- 18 मई, 2009) प्रसिद्ध भारतीय योगाचार्य थे। भारतीय योग के इतिहास में उनका नाम सबसे ऊंचे स्थान पर रहेगा। उन्होंने भारत में योग के महत्व को समझाया। वह प्रथम भारतीय योग गुरु थे, जिन्होंने स्तंग विन्यास जैसी योग की शुरुआत की। इसके अलावा कृष्ण पट्टाभि जोइस ने तमाम प्रकार की योग विकसित किये। उनके द्वारा 19वीं सदी के दौरान योग शोध संस्थान भी खोला गया, जिसमें छात्रों को प्रशिक्षित किया जाता था।

परिचय

कृष्ण पट्टाभि जोइस का जन्म 26 जुलाई सन 1915 में कर्नाटक के कोशिकवा नामक गांव में हुआ था। इनका जन्म इस स्थान के कन्नड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता पेशे से ज्योतिषी थे जो कि जमीन कांटेक्ट का भी कार्य करते थे। शुरुआती समय से कृष्ण पट्टाभि जोइस ने संस्कृत में शिक्षा प्राप्त की तथा बाद में भारत के सर्वश्रेष्ठ योग गुरुओं में से एक बने और योग गुरु के तौर पर समाज में उभर कर सामने आए।

इनके ब्राह्मण परिवार में लगभग 15 सदस्य थे जिनमें से 9 बच्चे थे। कृष्ण पट्टाभि जोइस इस परिवार के 5वें बेटे थे। मात्र 5 वर्ष की आयु में प्रवेश करते ही कृष्ण पट्टाभि जोइस को उनके पिता द्वारा शिक्षित किया जाने लगा। यह ब्राह्मण परिवार सामान्यत: कोआशिका गांव का एक सर्वोत्तम शिक्षित परिवार माना जाता था। इसी के चलते इस परिवार के बच्चों को भी शिक्षा का माहौल मिला और शिक्षा पर ध्यान भी दिया गया। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि कृष्ण पट्टाभि जोइस आगे चलकर योग गुरु बने जबकि परिवार में योग से संबंधित कोई भी निशानी नहीं थी और उनका परिवार योग से कोई संबंध भी नहीं रखता था।

विवाह

जून 1933 में जब कृष्ण पट्टाभि जोइस की उम्र लगभग 18 साल थी, तब उन्होंने सवित्रमा नामक युवती से विवाह किया, जिनसे इनको तीन संतान प्राप्त हुईं जिनके नाम सरस्वती, मंजू व रमेश हैं।

शैक्षणिक योग्यता

कृष्ण पट्टाभि जोइस की शैक्षणिक योग्यता उस समय के अनुसार काफी बेहतर थी जो कि मुश्किल से मात्र 5 प्रतिशत लोग ही हासिल कर पाते थे। उनके जीवन में छात्र जीवन का लंबा समय रहा और इस समय अंतराल में उन्होंने सैकड़ों हुनर को सीखा और सिखाया भी। उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में काम किया, जैसे- शिक्षा, कला, संस्कृति, योग आदि। कृष्ण पट्टाभि जोइस की शिक्षा की शुरुआत उनके जन्म स्थान से ही हुई। आचार्य जी के साथ उन्होंने लगभग 2 वर्ष तक गांव में शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात उच्च शिक्षा हेतु दूसरी जगह रवाना हुए। सन 1930 में कृष्ण पट्टाभि जोइस संस्कृत की पढ़ाई के लिए घर से बाहर अकेले ही निकल गए। इस समय उनकी उम्र मात्र 15 साल थी और जब घर से बाहर निकले, तब इनके पास कुल ₹ 2 ही थे। 15 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ा और इसका कारण शिक्षा ही थी। यह रास्ता मसूरी का था जो कि वर्तमान में भारत के कर्नाटक राज्य में आता है, जिस पर जोइस जी अकेले ही निकल पड़े। कहीं न कहीं इसी जीवन के कदम को कृष्ण पट्टाभि जोइस का योग प्रारंभ होने का चरण माना जाता है।

योग आश्रम की शुरुआत

जब कृष्ण पट्टाभि जोइस मसूरी पहुंचे तब मसूरी के महाराज किसी बीमारी से ग्रसित थे और इसी समय इनका प्रवेश मसूरी में हुआ था। पता चलते ही इन्होंने महाराज से संपर्क किया और अपने आचार्य का परिचय देते हुए योग के महत्व को बताया। बीमारी से ग्रसित महाराज ने योग आश्रम खुलवाया और योग करना शुरू किया। सन 1994 में कृष्ण पट्टाभि जोइस ने योग टेक्निक को खोज निकाला था, जो कि वास्तव में काफी सराहनीय बात थी।

कॅरियर

कृष्ण पट्टाभि जोइस के शिक्षक रूपी जीवन की शुरुआत मसूरी से हुई। यहां उन्होंने एक संस्कृत महाविद्यालय से योग का ज्ञान दिया और योग कक्षाएं भी जारी रखीं। उन्होंने लगभग 36 साल तक इसी महाविद्यालय में शिक्षा प्रदान की जो कि सन 1937 से शुरू होकर 1973 तक चली।

यह सौभाग्य उन्हीं राजा ने दिया था जिसे कृष्ण पट्टाभि जोइस ने योग करने को प्रेरित किया था। महाराजा ने इनको सारी सुविधाएं दिलाईं, जिनमें उनकी मासिक तनख्वाह, घर एवं अन्य सुविधाएं सम्मिलित थीं। इस महाविद्यालय से कृष्ण पट्टाभि जोइस को शिक्षक का काफी अनुभव प्राप्त हुआ, जिसके बाद उन्हें सरकार द्वारा ‘योगा प्रोफेसर’ की उपाधि प्राप्त हुई और कानूनी तौर पर कृष्ण पट्टाभि जोइस योगा प्रोफेसर बने जो कि हिंदी में योग विद्वान के नाम से जाना जाता है।

सन 1948 के समीप इनके द्वारा ‘अष्टांग योगा शोध संस्थान’ खोला गया, जिसे लक्ष्मीपुरम नामक स्थान पर स्थापित किया गया था। 19वीं सदी पूरी होते-होते इनके द्वारा कई बड़े कार्य किए जा चुके थे। इसके बाद 2002 में उन्होंने ‘गोकुलम’ नामक स्कूल भी खोला, जहां मुफ्त में योगाभ्यास एवं प्रशिक्षण दिया जाता रहा है। इनके द्वारा विदेश में भी संस्कृत भाषा के कई शैक्षणिक कार्य किए गए तथा सन 1974 की बात है जब कृष्ण पट्टाभि जोइस ने दक्षिण अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय योग बैठक पर अपना भाषण दिया तथा लगभग 5 महीने तक अमेरिका के कैलिफोर्निया नामक स्थान पर रुके और अष्टांग विन्यास योगा को वहां पर स्थापित किया।

पुरस्कार व सम्मान

  • योग की पहल शुरू करने के लिए सम्मानित किया गया।
  • संस्कृत महाविद्यालय द्वारा विद्वान योग गुरु के नाम से नवाजा गया।
  • अमेरिका में हेल्थ वैल्थ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

कृष्ण पट्टाभि जोइस का निधन 18 मई, 2009 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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