स्वामी रामदेव
स्वामी रामदेव
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पूरा नाम | स्वामी रामदेव |
अन्य नाम | रामकिशन यादव, बाबा रामदेव |
जन्म | 25 दिसंबर, 1965 |
जन्म भूमि | हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जनपद के अलीपुर गांव में |
अभिभावक | श्रीयुत राम निवास यादव |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी |
शिक्षा | योग और संस्कृत शिक्षा खानपुर गांव के गुरुकुल से प्राप्त की |
पुरस्कार-उपाधि | जनवरी, 2007 में कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडस्ट्रीयल टेक्नोलोजी, भुवनेश्वर, उड़ीसा ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। मार्च, 2010 में एमिटी विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट ऑफ़ साइंस की डिग्री से सम्मानित किया। |
प्रसिद्धि | योग गुरु |
विशेष योगदान | हरिद्वार के पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट के संस्थापक |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 13:03, 9 अप्रॅल 2011 (IST) |
- बाबा रामदेव विश्वप्रसिद्ध भारतीय योग-गुरु हैं जिनके लिए जनकल्याण धर्म से बड़ा है। उनके विचार अंधविश्वासी रूप से धार्मिक न होकर आधुनिक, तार्किक, व्यावहारिक, वैज्ञानिक और वास्तविकता से जुड़े हुए हैं।
- योग को लोकप्रिय संस्करण के रूप में जनता के बीच लाने वाले बाबा रामदेव के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि देश और समाज का कल्याण मज़हब से ज़्यादा ज़रूरी है। उनके सामाजिक सरोकारों की सीमा उन्हें वर्तमान के कई सन्न्यासियों से अलग पहचान देती है।
- बाबा रामदेव राष्ट्रवादी संन्यासी है। अपने देश और संस्कृति के प्रति उनका अगाध प्रेम है। वे देश को सांस्कृतिक और आर्थिक विश्वशक्ति बनाना चाहते हैं। बाबा रामदेव राष्ट्रीय और सांस्कृतिक मुद्दों पर अक्सर अपने विचार प्रकट करते रहते हैं। राष्ट्रहित और सामाजिक सरोकारों वाले विषयों पर वे खुलकर बोलते हैं।
- प्रशंसा की बात यह है कि इसके लिए रामदेव संविधान के तहत कार्य करने में यक़ीन रखते हैं। संविधान के प्रति उनकी ये आस्था और सम्मान सराहनीय है। रामदेव का सन्न्यास समाज से पलायन कर निजी मोक्ष के लिए नहीं है, बल्कि वे समाज में रहकर उसे सही दिशा देना चाहते हैं।
- सदियों पुराने योग के प्रचार-प्रसार में उनका प्रयास भी सराहनीय है। इसके पीछे उनका मक़सद धर्म से अधिक आम इंसान को शारीरिक और मानसिक से छुटकारा दिलाना है। इसी बात ने बड़ी संख्या में लोगों को उनकी ओर आकर्षित किया।[1]
जन्म और शिक्षा
बाबा रामदेव का जन्म 25 दिसंबर, 1965 को हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जनपद के अलीपुर गांव में श्रीयुत राम निवास यादव के एक कृषक परिवार में हुआ। उनका बचपन का नाम रामकिशन यादव / रामकृष्ण था। योग की धुन जब लगी तो उन्होंने सदियों से चली आ रही योग संस्कृति को पुनर्जीवन दिया तो उनका नया नाम पड़ा - स्वामी रामदेव। महेंद्रगढ़ के ही गांव शाहबाज़पुर में उन्होंने कक्षा आठ तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। आठवीं कक्षा के बाद वह पक्षाघात / लकवा से ग्रसित हो गये। उनके माता-पिता एलोपैथिक इलाज का ख़र्चा उठाने योग्य नहीं थे। सौभाग्य से रामकिशन को योगासनों के निरंतर अभ्यास व जड़ी- बूटियों से निर्मित औषधियों के अद्भुत प्रभाव से वह जल्द स्वस्थ्य हो गये और उनका सारा शरीर फिर से भलीभाँति काम करने लगा। इसके बाद उन्होंने योग और संस्कृत शिक्षा के लिए खानपुर गांव के गुरुकुल में दाखिला लिया। जहां स्वामी बल्देवाचार्य जी ने रामकृष्ण को शिक्षा दी। उन्होंने संस्कृत में पाणिनी की अष्टाध्यायी सहित वेद व उपनिषद आदि सभी ग्रन्थ मात्र डेढ़ वर्ष के अल्पकाल में कण्ठस्थ कर लिये। योग की पढ़ाई के दौरान ही उन्हें सन्न्यास शब्द के मायने मालूम हुए और यहीं से उन्होंने अपना नाम भी रामकिशन से बदलकर रामदेव रख लिया। गुरुओं ने दीक्षा के बाद उन्हें नया नाम दिया आचार्य रामदेव। उन्होंने युवास्था में ही सन्न्यास धारण कर लिया और स्वयं को योग को आम जनता तक पहुँचाने का प्रण लिया। तभी से उनका नाम बाबा रामदेव पड़ा। उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए ही 9 अप्रैल, 1995 को रामनवमी के दिन विधिवत सन्न्यास लेने के बाद वे आचार्य रामदेव से स्वामी रामदेव बन गए और ग्रहस्थ जीवन से दूर ही रहे। योग गुरु भाई बालदेव ने उन्हें योग की शिक्षा दी थी। इसके बाद खानपुर से वे ज़िंद ज़िला आ गए और कल्ब गुरुकुल से जुड़ गए। यहां से उन्होंने गांव के लोगों को निशुल्क योग की ट्रेनिंग देने का अभियान छेड़ा। इस अभियान को वे अन्य ज़िलों तक भी लेकर गये। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर योग का प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया। इसके लिए उन्होंने सन् 1995 से अधिक प्रयास शुरू किए। इसी दौरान बाबा ने सेल्फ-डिसीप्लिन और मेडिटेशन पर फोकस किया।[1]
कार्यक्षेत्र
रामदेव ने वर्ष 1995 में योग और प्राणायाम को लोकप्रिय बनाने तथा आम इंसान को आयुर्वेदिक चिकित्सा सुलभ कराने के उद्देश्य से उन्होंने आचार्य कर्मवीर के साथ हरिद्वार के कनखल स्थित कृपालुबाग़ आश्रम में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। इस अभियान में आयुर्वेद मनीषी स्वामी बालकृष्ण महाराज भी उनके साथ हैं। इस ट्रस्ट के माध्यम से बाबा आरोग्य, आध्यात्मिक एवं शैक्षणिक सेवा प्रकल्पों का संचालन तो कर ही रहे हैं, साथ ही वैदिक संस्कारों एवं आधुनिक शिक्षा पर आधारित रेवाड़ी में चल रहे गुरुकुल किशनगढ़ घासेड़ा का संचालन भी कर रहे हैं। रामदेव ने महेन्द्रगढ़, किशनगढ़ और घसेरा में गुरुकुलों की स्थापना की और अनेक स्थानों पर योग-शिविरों का आयोजन किया। हज़ारों की तादाद में लोग उनके शिविरों में शामिल होने लगे।
रामदेव सरल योग क्रियाओं के साथ सात प्राणायाम सिखाते हैं - अनुलोम-विलोम, बाह्य, कपालभाति, भस्त्रिका, भ्रामरी, उद्गीत और अग्निसार। बाबा ने योग और प्राणायाम के ज़रिए कैंसर, हैपेटाइटिस बी, ब्लड प्रेसर, शुगर सहित अनेक असाध्य बीमारियों के इलाज़ का दावा किया और अनेक पीड़ितों ने स्वीकार किया कि योग से उन्हें लाभ हुआ है और उनकी ऐसी बीमारियाँ भी जड़ से ख़त्म हो गईं। योग के साथ बाबा संतुलित आहार पर भी ज़ोर देते हैं। टेलीविज़न पर आस्था, ज़ी, सहारा आदि चैनलों पर प्रसारित उनके कार्यक्रमों ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया। देश-विदेश में भारी संख्या में लोग उनके अनुयायी बनने लगे। उनके टेलीविज़न कार्यक्रम समूचे एशिया, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका में बेहद लोकप्रिय है। उनका योग और प्राणायाम धार्मिक या राष्ट्रवादी न होकर चिकित्सकीय था और इसमें आयुर्वेद भी साथ था। उनके लंदन जाने पर ब्रिटेन की महारानी ने उन्हें चाय के लिए विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया। बाबा ने भारत में राष्ट्रपति भवन में भी योग शिविर आयोजित किया। ये सिद्ध करने के लिए कि जनकल्याण के लिए सारे धर्म साथ हैं, वे और भारत के मुस्लिम धर्मगुरु एक ही मंच पर साथ नज़र आए। वे कहते हैं, उनका किसी धर्म से विरोध नहीं है। सभी धर्मावलम्बी अपनी आस्था और विश्वास के साथ एकजुट होकर रह सकते हैं। स्वामी रामदेव की महत्वाकांक्षी परियोजना पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट का शुभारंभ हरिद्वार में 6 अगस्त, 2006 को हुआ। इसके ज़रिए वे विश्व का सबसे बड़ा योग, आयुर्वेद चिकित्सा और प्रयोग तथा प्रशिक्षण का केन्द्र बनाना चाहते हैं।[1]
विचारधारा
आर्यसमाज की विचारधारा में विश्वास रखने वाले रामदेव स्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अपना आदर्श मानते हैं। समाज को जागरूक करने और कुरीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के स्वामी विवेकानंद के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए बाबा रामदेव पहले भी बहुत कुछ कर चुके हैं। भले ही राजनीति में सफल हों या न हों लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक किया है। योग को कंदराओं और आश्रमों से निकाल कर आम आदमी से जोड़ा है, इसका श्रेय उन्हें दिया ही जाना चाहिए। वह भी ऐसे मौके पर जब बहुराष्ट्रिये कंपनियों के बढ़ते शिकंजे के चलते महंगी हुई आधुनिक चिकित्सा ग़रीब लोगों से दूर होती जा रही है। ऐसे में बाबा ने मुफ़्त का योग देकर देश के करोड़ों लोगों का भला किया है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जो काम तमाम सरकारी कोशिशें नहीं कर सकतीं, उस स्वास्थ्य चेतना का काम बाबा ने कर दिखाया।[1]
लोकप्रियता
शुरुआती दिनों में बाबा रामदेव को इतनी पहचान नहीं मिल पाई। क़रीब एक दशक पूर्व जब स्वामी रामदेव योग को जन-जन तक पहुंचाने की ज़िद पर आये तो उन्होंने इस कार्य को बखूबी कर दिखाया। बदलाव की बयार जब बही तो लोगों को धीरे-धीरे इस बात का आभास हुआ कि योग उनकी अनेक तरह की बीमारियों का इलाज बन सकता है। बस फिर क्या था, जिस किसी के भी मन में यह बात घर कर गई, उसके बाद वह योग में लीन हो गया और एक-एक कर यह आंकड़ा आज करोड़ों में पहुंच गया। देश का शायद ही कोई ऐसा शहर या क़स्बा होगा, जहां बाबा रामदेव योग की बुझी ज्योत को फिर से प्रज्ज्वलित करने न पहुंचे हों। देश के जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेश त्रेहन जैसे लोग भी कहने लगे हैं कि योग जीवन का अभिन्न अंग है और जब मैं अस्पताल से अपने घर लौटता हूं तो कार में ही योग क्रियाएं कर लेता हूं। यह बाबा की ही बदौलत है कि आज छोटे-बड़े हर शहर में पार्कों में सुबह-शाम लोग कपालभाति व अनुलोम-विलोम करते नज़र आते हैं। यहां तक कि बॉलीवुड भी अब योग के ग्लैमर से अछूता नहीं है। शिल्पा शेट्टी सरीखी अनेक अदाकारा योग सिखाने की कोशिश में लगी हुई हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने बाज़ार में इसकी सीडी तक उतार डाली हैं।[1]
व्यक्तित्व
बाबा रामदेव सादा जीवन और सात्विक खान-पान में यक़ीन रखते हैं। कुछ वर्ष पहले बीबीसी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा - मैं बहुत साधारण भोजन में विश्वास करता हूँ। ज़मीन पर दरी पर सोने में यक़ीन रखता हूँ और दो वक़्त खाना खाता हूँ। पहला भोजन सुबह लगभग 11 बजे और दूसरा शाम को सात से आठ के बीच होता है। उबली हुई सब्जी और उसमें भी ज़्यादातर लौकी, तुरई, परवल, टिंडे, हरी सब्जियाँ और गाजर आदि। गाय का दूध पीता हूँ। अनाज खाए हुए मुझे लगभग दस साल हो गए हैं। बाबा अंधविश्वास, चमत्कार और टोने-टोटके के कड़े विरोधी हैं। वे कहते हैं - मैं राशिफल को भी नहीं मानता। आप ही देख लीजिए, भगवान राम और रावण, कंस और कृष्ण की राशि एक ही थी। ज्योतिष और वास्तु को मैं उस रूप में नहीं मानता जिस तरह लोग इसे अंधविश्वास के रूप में मानते हैं। हर घड़ी, हर मुहूर्त शुभ है। हर दिशा में परमात्मा है। कौन सी दिशा ऐसी है जहाँ शैतान रहता है। धर्म और अध्यात्म को मैं विज्ञान की आँख से देखता हूँ, इसलिए मैं धर्म, संस्कृति और परंपराओँ का प्रखर संवाहक होने के साथ-साथ धर्म के नाम पर भ्रम, अज्ञान और पाखंड का आलोचक भी हूँ।[1]
योग और स्वास्थ्य
बाबा रामदेव ने जब दावा किया कि वे प्राणायाम के ज़रिए कैंसर का इलाज कर सकते हैं तो इस पर खूब बवाल मचा लेकिन बाबा ने इसे प्रमाणों सहित सिद्ध करके दिखाया। बाबा रामदेव अपनी बात पूरे तर्कों और प्रमाणों सहित कहते हैं। बाबा रामदेव का कहना है - विश्व में हर साल 48 लाख लोग तंबाकू के सेवन से मरते हैं और क़रीब इतने ही लोगों की मौत का कारण शराब होती है। महात्मा गाँधी ने सन् 1928 में कराची अधिवेशन में कहा था कि आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति घोषित किया जाएगा। उन्होंने कृषि के दौरान कीटनाशक और रसायनिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल की निंदा करते हुए कहा कि इससे फल, सब्जियाँ और अनाज ज़हरीले हो जाते हैं और स्वास्थ्य को नुक़सान पहुँचाते हैं। उन्होंने वर्तमान में लोकप्रिय हो रहे शीतल पेय की भी आलोचना की और आम लोगों को इससे दूर रहने की सलाह दी। उनका कहना है कि इन पेय पदार्थों में बड़ी मात्रा शरीर को नुक़सान पहुँचाने वाले तत्त्व शामिल होते हैं। उन्होंने फ़ास्ट फ़ूड और ज़ंक फ़ूड के बढ़ते प्रचलन की भी निंदा की। उन्होंने कहा कि ये खाद्य-पदार्थ बीमारियों को जन्म देते हैं। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में जिन किसानों का बहुत बड़ा योगदान है उनकी भलाई के लिए आवश्यक क़दम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने सरकार से देशी उद्योगों को बढ़ावा देने की भी अपील की। साथ ही उपभोक्ताओँ से भी विदेशी उत्पादों के बजाए देशी सामान ख़रीदने को कहा। [1]
रामदेव और समाज
बाबा रामदेव ने हिन्दी भाषा की उपेक्षा का मुद्दा भी उठाया उन्होंने कहा कि हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। उसके बावजूद उसे अपने ही देश में अंग्रेज़ी के बाद दूसरा दर्जा दिया जाता है। उन्होंने हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओँ को शासकीय कार्यों में उनका उचित स्थान दिए जाने की वक़ालत की। उन्होंने कहा कि आधुनिक विश्व में शायद ही कोई ऐसा देश हो जो अपनी राष्ट्रीय भाषा पर अंग्रेज़ी को तरजीह देता हो। बाबा रामदेव ने समलैंगिकता का भी खुलकर विरोध किया। जुलाई, 2009 में जब दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया तो रामदेव ने कहा कि ये फ़ैसला देश में इस बीमार मानसिकता को बढ़ावा देगा और भारतीय सामाजिक व्यवस्था को क्षति पहुँचाएगा। उन्होंने इसे अप्राकृतिक कृत्य बताते हुए पश्चिम के अंधानुकरण का नतीजा बताया। उन्होंने कहा कि इन मानसिक रोगियों को इलाज के ज़रिए ठीक किया जा सकता है।[1]
सम्मान
- बाबा रामदेव को जनवरी, 2007 में कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडस्ट्रीयल टेक्नोलोजी, भुवनेश्वर, उड़ीसा ने योग को लोकप्रिय बनाने के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।
- मार्च, 2010 में एमिटी विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट ऑफ़ साइंस की डिग्री से सम्मानित किया ।
भारत स्वाभिमान पार्टी
बाबा रामदेव ने समाज और राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार का मुखर विरोध किया। जिसके लिए उन्हें कई राजनीतिक दलों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि देश की कई समस्याओं का समाधान महज़ इसलिए नहीं हो पा रहा कि राजनीतिक दलों में भयानक भ्रष्टाचार व्याप्त है और इनसे निपटने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति का अभाव है। देश की राजनीति और समाज से इसी भ्रष्टाचार, अपराध, ग़रीबी इत्यादि बुराइयों को ख़त्म करने के उद्देश्य से उन्होंने भारत स्वाभिमान अभियान की शुरुआत की और राजनीतिक प्रणाली को स्वच्छ बनाने के लिए ‘भारत स्वाभिमान पार्टी’ नामक राजनीतिक दल की स्थापना की। ये उनका अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- बाबा रामदेव : राजनीतिक अस्त्र की तलाश में एक संन्यासी
- हर मर्ज की दवा : स्वामी रामदेव
- राजनीति के अखाड़े में अनुलोम-विलोम
- आधुनिक भारत का रहस्य-2
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