योगासन
योगासन योग के करने की क्रियाओं व आसनों को कहते हैं। भारत के प्राचीन ग्रंथों में इसका विवरण प्राप्त होता है। विश्व की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है।
प्राचीन भारतीय विरासत
'योग' की उत्पत्ति भारत में हुई है। यह प्राचीन भारतीय विरासत है, जिसे हमारे ऋषि-मुनियों, तपस्वियों तथा योगियों ने सम्भाले रखा। आधुनिक समय में योग का प्रचार-प्रसार विदेशों में भी बहुत हुआ, इसलिए पाश्चात्य सभ्यता की नकल करने वाले 'योग' शब्द को 'योगा' बोलने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। योग एक ऐसी विद्या है, जिसे रोगी-निरोगी, बच्चे-बूढ़े सभी कर सकते हैं। महिलाओं के लिए योग बहुत ही लाभप्रद है। चेहरे पर लावण्य बनाए रखने के लिए बहुत-से आसन और कर्म हैं।
आसन करने से पूर्व
योग के अंतर्गत आने वाले योगासनों को प्रारम्भ करने से पहले उन्हें सीखना आवश्यक है। आसन करते समय उचित सावधानियों का ध्यान भी रखना अत्यंत आवश्यक है। कोई भी आसन प्रभावकारी तथा लाभदायक तभी हो सकता है, जबकि उसको उचित रीति से किया जाए। योगासन के समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- योगासन शौच क्रिया एवं स्नान से निवृत्त होने के बाद ही किया जाना चाहिए। इसे करने के एक घंटे पश्चात् भी स्नान करें।
- समतल भूमि पर आसन बिछाकर इसे करना चाहिए। मौसम के अनुसार ही ढीले वस्त्र पहनना चाहिए।
- खुले एवं हवादार कमरे योगासन के लिय उचित रहते हैं, ताकि श्वास के साथ स्वतंत्र रूप से शुद्ध वायु ले सकें। अभ्यास बाहर भी कर सकते हैं, परन्तु आसपास का वातावरण शुद्ध तथा मौसम सुहावना हो।
- आसन करते समय अनावश्यक जोर न लगाएँ। यद्धपि प्रारम्भ में मांसपेशी कड़ी महसूस होती हैं, लेकिन कुछ ही सप्ताह के नियमित अभ्यास से शरीर लचीला हो जाता है।
- आसनों को आसानी से संयमपूर्वक करना चाहिए, कठिनाई से नहीं। यदि किसी आसन को करने में परेशानी तथा पीड़ा हो तो उसे नहीं करना चाहिए।
- मासिक धर्म, गर्भावस्था, बुखार, गंभीर रोग आदि के दौरान आसन न करें।
- योगाभ्यासी को सम्यक आहार अर्थात भोजन प्राकृतिक और उतना ही लेना चाहिए, जितना कि पचने में आसानी हो। वज्रासन को छोड़कर सभी आसन ख़ाली पेट ही करना ठीक रहता है।
- आसन के प्रारंभ और अंत में विश्राम करना चाहिए। आसन विधिपूर्वक ही करें। प्रत्येक आसन दोनों ओर से करें एवं उसके पूर्व अभ्यास करें।
- यदि आसन को करने के दौरान किसी अंग में अत्यधिक पीड़ा होती है तो किसी योग चिकित्सक से सलाह लेकर ही आसन करें।
- यदि वातों में वायु, अत्यधिक उष्णता या रक्त अत्यधिक अशुद्ध हो तो सिर के बल किए जाने वाले आसन नहीं करने चाहिए। विषैले तत्व मस्तिष्क में पहुँचकर उसे क्षति न पहुँचा सकें, इसके लिए सावधानी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- योग प्रारम्भ करने के पूर्व अंग संचालन करना आवश्यक है। इससे अंगों की जकड़न समाप्त होती है तथा आसनों के लिए शरीर तैयार होता है।
गुण तथा लाभ
योगासन के गुण तथा उससे होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-
- सबसे बड़ा गुण यह है कि योगासन सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। यह एक ऐसी व्यायाम पद्धति है, जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न ही इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।
- योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।
- आसनों में जहाँ मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियाएँ करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर तनाव-खिंचाव दूर करने वाली क्रियाएँ भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है।
- मानव शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।
- योगासनों से भीतरी ग्रंथियाँ अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती हैं।
- पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई भी योगासन से होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन संस्थान में गड़बड़ियाँ उत्पन्न नहीं होतीं।
- योगासन मेरुदण्ड (रीढ़ की हड्डी) को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।
- विभिन्न प्रकार के योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।
- स्त्रियों की शरीर रचना के लिए योगासन विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।
- योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियाँ जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।
- स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाने में योगासन विशेष भूमिका निभाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य मिलता है।
- योगासन श्वसन क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।
- शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी योगासन वरदान स्वरूप हैं, क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।
- आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।
- आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। इनका निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्मे की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।
- योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र तथा श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं, जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता।
- शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियाँ केवल बाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जबकि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।
आसनों के प्रकार
ऋषि-मुनियों ने स्वास्थ और आध्यात्मिक प्रश्नों की खोज के दौरान प्रकृति, पशु और पक्षियों का गहन अध्ययन कर यह जानने का प्रयास किया कि सहज रूप से किस तरह से स्वस्थ और चैतन्य रहा जा सकता है। इन ऋषियों द्वारा विभिन्न प्रकार के आसनों को अविष्कृत किया गया। योग के आसनों को मुख्यत: छ: भागों में बाँटा जा सकता है[1]-
पशुवत आसन
वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने और चलने-फिरने के ढंग के आधार पर बनाये गए हैं, वे पशुवत आसन कहे जाते हैं, जैसे-
वृश्चिक आसन, भुजंगासन, मयूरासन, सिंहासन, शलभासन, मत्स्यासन, बकासन, कुक्कुटासन, मकरासन, हंसासन, काकआसन, उष्ट्रासन, कुर्मासन, कपोत्तासन, मार्जरासन, क्रोंचासन, शशांकासन, तितली आसन, गौमुखासन, गरुड़ासन, खग आसन, चातक आसन, उल्लुक आसन, श्वानासन, अधोमुख श्वानासन, पार्श्व बकासन, भद्रासन या गोरक्षासन, कगासन, व्याघ्रासन, एकपाद राजकपोतासन आदि।
वस्तुवत आसन
वे आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं, जैसे-
हलासन, धनुरासन, आकर्ण अर्ध धनुरासन, आकर्ण धनुरासन, चक्रासन या उर्ध्व धनुरासन, वज्रासन, सुप्त वज्रासन, नौकासन, विपरित नौकासन, दंडासन, तोलंगासन, तोलासन, शिलासन आदि।
प्रकृति आसन
इसके अंतर्गत वे आसन आते हैं, जो वनस्पति, वृक्ष और प्रकृति के अन्य तत्वों पर आधारित होते हैं, जैसे-
वृक्षासन, पद्मासन, लतासन, ताड़ासन, पद्म पर्वतासन, मंडूकासन, पर्वतासन, अधोमुख वृक्षासन, अनंतासन, चंद्रासन, अर्ध चंद्रासन, तालाबासन आदि।[1]
अंग या अंग मुद्रावत आसन
वे आसन जो विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं, जैसे-
शीर्षासन, सर्वांगासन, पादहस्तासन या उत्तानासन, अर्ध पादहस्तासन, विपरीतकर्णी सर्वांगासन, सलंब सर्वांगासन, मेरुदंडासन, एकपादग्रीवासन, पाद अँगुष्ठासन, उत्थिष्ठ हस्तपादांगुष्ठासन, सुप्त पादअँगुष्ठासन, कटिचक्रासन, द्विपाद विपरित दंडासन, जानुसिरासन, जानुहस्तासन, परिवृत्त जानुसिरासन, पार्श्वोत्तानासन, कर्णपीड़ासन, बालासन या गर्भासन, आनंद बालासन, मलासन, प्राण मुक्तासन, शवासन, हस्तपादासन, भुजपीड़ासन आदि।
योगीनाम आसन
ये वे आसन हैं, जो किसी योगी या भगवान के नाम पर आधारित हैं, जैसे-
महावीरासन, ध्रुवासन, हनुमानासन, मत्स्येंद्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, भैरवासन, गोरखासन, ब्रह्ममुद्रा, भारद्वाजासन, सिद्धासन, नटराजासन, अंजनेयासन, अष्टवक्रासन, मारिचियासन (मारिच आसन), वीरासन, वीरभद्रासन, वशिष्ठासन आदि।
अन्य आसन
कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण आसन भी होते हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-
स्वस्तिकासन, पश्चिमोत्तनासन, सुखासन, योगमुद्रा, वक्रासन, वीरासन, पवनमुक्तासन, समकोणासन, त्रिकोणासन, वतायनासन, बंध कोणासन, कोणासन, उपविष्ठ कोणासन, चमत्कारासन, उत्थिष्ठ पार्श्व कोणासन, उत्थिष्ठ त्रिकोणासन, सेतुबंध आसन, सुप्त बंधकोणासन, पासासन आदि।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 योग आसनों के प्रकार (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 02 जुलाई, 2015।