जेम्स प्रिंसेप

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जेम्स प्रिंसेप

जेम्स प्रिंसेप (अंग्रेज़ी: James Prinsep, जन्म- 20 अगस्त, 1799; मृत्यु- 22 अप्रॅल, 1840) ब्राह्मी लिपि भाषाविद् एवं सम्राट अशोक के शिलालेखों को पढ़ने वाले प्रथम अंग्रेज़ व्यक्ति थे।

परिचय

जेम्स प्रिंसेप ईस्ट इण्डिया कम्पनी में एक अधिकारी के पद पर नियुक्त थे। उन्होंने 1837 ई. में सर्वप्रथम ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की। इन लिपियों का उपयोग सबसे आरम्भिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है। प्रिंसेप को यह जानकारी प्राप्त हुई कि अभिलेखों और सिक्कों पर 'पियदस्सी' अर्थात् 'सुन्दर मुखाकृति' वाले राजा का नाम लिखा है। कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम सम्राट अशोक भी लिखा था। नैनिमेटिक्स, धातु विज्ञान, मौसम विज्ञान के कई पहलुओं का अध्ययन, दस्तावेज और सचित्र कार्य जेम्स प्रिंसेप ने किया, बंटारे में टकसाल में एक परख मास्टर के रूप में भारत में काम भी किया।

प्रिन्सेपिया

जेम्स प्रिंसेप, यह एक नाम भर नहीं है, जो इतिहास बन गया। हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में अब वह 'प्रिन्सेपिया' के नाम से लहलहा रही पत्तियों और उसके चेरी की तरह सुर्ख लाल फलों में मौजूद है। इतिहासकार कहते हैं अगर मानव इतिहास के 10 विलक्षण व्यक्तियों की सूची बनाई जाये तो उसमें आइन्स्टीन और गांधी के साथ एक नाम जेम्स प्रिंसेप का होगा। यह वही जेम्स प्रिंसेप था, जिसने आधुनिक बनारस को बसाया। जेम्स प्रिंसेप के वंशज इवान प्रिन्सेप ने उनसे जुड़े दस्तावेजों को दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय को सौंप दिया है। सन 1799 में जन्मे जेम्स प्रिंसेप की महज 41 वर्ष की उम्र में 1840 में मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में मिलने वाली एक वनस्पति को उनकी स्मृति में 'प्रिन्सेपिया' का नाम दे दिया गया।[1]

बनारस की जनगणना

बहुत कम लोगों को पता है कि बनारस की पहली जनगणना जेम्स प्रिंसेप ने कराई थी। जेम्स प्रिंसेप आर्किटेक्ट, वैज्ञानिक ,आविष्कारक होने के साथ साथ हिन्दुस्तानी संगीत का ग़जब का जानकार था। वह जेम्स प्रिंसेप ही था, जिसने पहली बार वजन मापने वाली मशीन बनाई थी, जिससे धूल का भी वजन लिया जा सके। जेम्स प्रिंसेप ने वापरेटोमीटर, फ्लुवियोमीटर, पैरोमीटर और एसेबैलेंस का आविष्कार किया था। वह ब्राह्मी भाषा के ग़जब के जानकार थे। उन्होंने ही पहली बार बनारस में मिले कुछ यूनानी सिक्कों को देखकर बताया था कि इनमे ब्राह्मी भाषा में भी सन्देश लिखे हैं।

बनारस शहर की अलग-अलग तस्वीरों के साथ जेम्स प्रिंसेप के द्वारा 'बनारस इलस्ट्रेटेड' नामक एक किताब भी लिखी गई, जो आज भी बनारस के इतिहास के बारे में रूचि रखने वालों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इस किताब में उन्होंने खुद के द्वारा बनाए गए स्केच डाल रखे थे। उनकी मौत के इतने वर्षों बाद भी उनके द्वारा बनाया गया बनारस शहर का नक्शा सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता है। जेम्स प्रिंसेप की शख्सियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन 1830 में जब प्रसिद्ध फ़्रांसीसी यात्री विक्टर जाकेमो बनारस आया तो उसने लिखा कि "जेम्स प्रिंसेप सबसे अलग है, उसकी सुबह भवन के नक्शों और मानचित्रों को तैयार करने में गुजरती है, उसका दिन टकसाल में सिक्कों के मूल्यांकन में और उसकी शाम संगीत सभाओं में।"[1]

बनारस का ड्रेनेज सिस्टम

बनारस शहर में जेम्स प्रिंसेप केवल 10 वर्षों तक रहे, लेकिन उन्होंने पूरे शहर की काया पलट कर दी। ड्रेनेज सिस्टम की कल्पना उनके दिमाग की उपज थी। उन्होंने गंदे पानी की निकासी के लिए यहाँ कई नालों का निर्माण कराया। आज भी यह नाले काम करते हैं। पीने के पानी के लिए भी जेम्स प्रिंसेप नगर में पाइप का जाल बिछवाना चाहते थे, लेकिन यह काम पूरा नहीं हो पाया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पत्तियों में बदल गया बनारस को बसाने वाला यह अधिकारी (हिंदी) patrika.com। अभिगमन तिथि: 29 फरवरी, 2020।

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