जैनुल अबादीन
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पूरा नाम | जैनुल अबादीन |
मृत्यु तिथि | 1470 ई. |
धार्मिक मान्यता | इस्लाम |
राज्याभिषेक | 1420 ई. |
सुधार-परिवर्तन | अबादीन ने 'जज़िया कर' हटाया और राज्य में गाय का वध निषिद्ध कर दिया। उसके प्रशासन में अनेक हिन्दुओं को ऊँचे पद प्राप्त थे। |
शासन काल | 1420-1470 ई. |
संबंधित लेख | कश्मीर, |
विशेष | जैनुल अबादीन को कश्मीरी अभी भी 'बडशाह' (महान सुल्तान) के नाम से पुकारते हैं। वह 'कुतुब' उपनाम से फ़ारसी में कविताएँ भी लिखा करता था। |
भाषा ज्ञान | फ़ारसी, कश्मीरी, संस्कृत और तिब्बती |
अन्य जानकारी | अबादीन को उसके द्वारा किये गए जनपिय कार्यों के कारण कश्मीर का अकबर कहा जाता है। मूल्य नियंत्रण की पद्धति चलाने के कारण ही उसे कश्मीर का अलाउद्दीन ख़िलजी भी कहा गया है। |
जैनुल अबादीन (1420-1470 ई.) अलीशाह का भाई और कश्मीर का सुल्तान था। सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का भाव रखने व अपने अच्छे कार्यों के कारण ही उसे 'कश्मीर का अकबर' कहा जाता है। अपने शासन के दौरान इसने हिन्दुओं को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की थी। जैनुल अबादीन ने हिन्दुओं के टूटे हुए मंदिरों का पुनर्निर्माण, गायों की सुरक्षा और सती होने पर लगे प्रतिबन्ध को हटाया और राज्य में एक बेहतर शासन व्यवस्था लागू की।
उदार व्यक्तित्व
जैनुल अबादीन ने अन्य क्षेत्रों में भी सहिष्णुता की उदार नीति अपनाई। उसने जज़िया कर हटा दिया। गाय का वध निषिद्ध कर दिया, हिन्दुओं की भावनाओं का आदर करते हुए सती प्रथा पर से प्रतिबन्ध हटा लिया। उसके प्रशासन में अनेक हिन्दुओं को ऊँचे पद प्राप्त थे। श्रीय भट्ट उसका न्यायमंत्री और दरबारी चिकित्सक था। उसकी पहली दो रानियाँ हिन्दू थीं। ये दोनों जम्मू के राजा की कन्याएँ थीं। उसके चार पुत्र उन्हीं से थे। उसने उन दोनों की मृत्यु के पश्चात् तीसरी शादी की।
प्रतिभा सम्पन्न
सुल्तान स्वयं एक विद्वान् व्यक्ति था और कविता करता था। वह फ़ारसी, कश्मीरी, संस्कृत और तिब्बती भाषाएँ भली-भाँति जानता था। वह संस्कृत और फ़रसी विद्वानों को संरक्षण देता था। उसके संकेत पर महाभारत जैसे अनेक संस्कृत ग्रंथों का तथा कल्हण के 'कश्मीर के इतिहास' (राजतरंगिणी) का फ़ारसी में अनुवाद हुआ। वह संगीत प्रेमी था। ग्वालियर के राजा ने उसके संगीत प्रेम के विषय में सुनकर उसे दो दुर्लभ संस्कृत संगीत ग्रंथ भेंट में भेजे थे।
आर्थिक उन्नति
सुल्तान ने कश्मीर की आर्थिक उन्नति पर भी ध्यान दिया। उसने दो आदमियों को काग़ज़ बनाने तथा जिल्दसाज़ी की कला सीखने के लिए समरकंद भेजा। उसने कश्मीर में कई कलाओं को प्रोत्साहन दिया। जैसे पत्थर तराशना और उस पर पालिश करना, बोतलें बनाना, स्वर्ण-पत्र बनाना इत्यादि। सम्भवतः उसी ने तिब्बत से शाल बनाने की कला का आयात किया, जिसके लिए कश्मीर आज तक प्रसिद्ध है। दस्ती बंदूक बनाने और आतिशबाज़ी बनाने की कला का भी वहाँ विकास हुआ। सुल्तान ने काफ़ी संख्या में बाँध और पुल बनवाकर कृषि को विकसित किया। वह उत्साही निर्माता था। उसकी सबसे बड़ी अभियात्रा की उपलब्धि जैना का लंका का निर्माण है, जो वुलर झील में नकली टापू के रूप में है। यहीं उसने अपना महल और मस्जिद बनवाई।
यश प्राप्ति
जैनुल अबादीन को कश्मीरी अभी भी 'बडशाह' (महान सुल्तान) के नाम से पुकारते हैं। यद्यपि वह महान् योद्धा नहीं था, फिर भी उसने लद्दाख पर मंगोल आक्रमण को विफल किया था। उसने बालटिस्तान क्षेत्र (जिसे तिब्बत-ए-ख़ुर्द कहा जाता है) को विजित किया, तथा जम्मू और राजौरी पर अपना अधिकार बनाये रखा। इस प्रकार उसने कश्मीर राज्य को एकता के सूत्र में पिरोया। जैनुल अबादीन का यश दूर-दूर तक फैल गया था। उसने भारत के अन्य बड़े शासकों तथा एशिया के बड़े शासकों से सम्पर्क बनाये रखा।
अबादीन ने अपने शासन काल में अनेक जनप्रिय कार्य किए थे। अपने इन्हीं कार्यों के कारण उसे 'कश्मीर का अकबर' कहा जाता है। मूल्य नियंत्रण की पद्धति चलाने के कारण ही उसे 'कश्मीर का अलाउद्दीन ख़िलजी' भी कहा गया है। अबादीन की 1470 ई. में मृत्यु हो गई। वह कश्मीरी, फ़ारसी, अरबी और संस्कृत भाषाओं का विद्वान् था। वह 'कुतुब उपनाम' से फ़ारसी में कविताएँ भी लिखा करता था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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