न निकले कभी भी तेरा प्यार झूठा
रहे तो रहे सारा संसार झूठा
अकेले में तू मुझको कह लेता कुछ भी
सरे-बज़्म बोला है मक्कार झूठा
ये आँखें तो कुछ और ही कह रही हैं
ज़ुबाँ पर तुम्हारे है इन्कार झूठा
छपी चापलूसी, तो सच्ची ख़बर थी
जो तनक़ीद निकली, तो अख़बार झूठा
वो नादाँ हैं जो सच का थामे हैं दामन
मिलेगा यहाँ हर समझदार झूठा
सचाई के उजले लिबासों में होगा
सियासत का हर एक किरदार झूठा
न सोचा था हमने कभी ऐ ‘अकेला’
कि निकलेगा यूँ हर मददगार झूठा