भूल कर भेदभाव की बातें
आ करें कुछ लगाव की बातें
जाने क्या हो गया है लोगों को
हर समय बस दुराव की बातें
सैकड़ों बार पार की है नदी
वा रे काग़ज़ की नाव की बातें
है जो उपलब्ध उसकी बात करो
कष्ट देंगी अभाव की बातें
दो क़दम क़ाफ़िला चला भी नहीं
लो अभी से पड़ाव की बातें
तोड़ डाला है अल्प वर्षा ने
नदियाँ भूलीं बहाव की बातें
मेरे नासूर दरकिनार हुए
छा गयीं उनके घाव की बातें
ऐ ‘अकेला’ वो मोम के पुतले
कर रहे हैं अलाव की बातें