सम्पादन- आधुनिक हिंदी लघुकथाएँ, कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर, कुण्डलिया कानन
टिक टिक करती घड़ियाँ कहतीं मूल्य समय का पहचानो । पल पल का उपयोग करो तुम यह संदेश मेरा मानो ।। जो चलते हैं सदा, निरंतर, बाज़ी जीत वही पाते । और आलसी रहते पीछे मन मसोस कर पछताते ।। कुछ भी नहीं असंभव जग में यदि मन में विश्वास अटल । शीश झुकायेंगे पर्वत भी, चरण धोयेगा सागर-जल ।। बहुत सो लिये अब तो जागो, नया सवेरा लाना तुम । फिर वह समय नहीं आता है कभी भूल मत जाना तुम ।।
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