हल्दी-घाटी किधर पिताजी,
मैं भी लड़ने जाऊँगा ।
घोड़ा, भाला मुझे दिला दो,
मैं राणा बन जाऊँगा ।।
बैरी के छक्के छूटेंगे,
जब भाला चमकाऊँगा ।
शत्रु भाग जायेंगे डर कर
समर-भूमि जब जाऊँगा ।।
इतने पर भी डटे रहे वह
तो फिर रण होगा भारी ।
कट कर शीश अनेक गिरेंगे ,
देखेगी दुनिया सारी ।।
चाहे शीश कटे मेरा भी
तनिक नहीं घबराऊँगा ।
पिता, आपका वीर-पुत्र हूँ,
वर दो, लड़ने जाऊँगा ।।