भारतीय संग्रहालय
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विवरण | यह एशिया के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक है। |
राज्य | पश्चिम बंगाल |
नगर | कोलकाता |
निर्माण | 1814 ई. |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 22° 33' 29.00", पूर्व- 88° 21' 3.00" |
मार्ग स्थिति | भारतीय संग्रहालय हावड़ा जंक्शन से लगभग 4 किमी की दूरी पर स्थित है। |
प्रसिद्धि | यहाँ जीवाश्म, प्राचीन सिक्के, पत्थर, गांधार कलाकृति, उल्कापिंड इत्यादि महत्वपूर्ण चीज़ें रखी हुई हैं। |
एस.टी.डी. कोड | 033 |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | मार्बल पैलेस, संत जॉन चर्च, हावड़ा पुल, अलीपुर चिडि़याघर, मिशनरीज ऑफ चैरिटी, काल कोठरी |
अन्य जानकारी | इस संग्रहालय में एक 4000 साल पुराना पुराशव भी है। इसके अलावा यहाँ एक कलश भी है। कहा जाता है कि इस कलश में भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे हुए हैं। |
बाहरी कड़ियाँ | भारतीय संग्रहालय |
अद्यतन | 18:57, 4 जनवरी 2015 (IST)
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भारतीय संग्रहालय पश्चिम बंगाल के शहर कोलकाता में स्थित है। यह एशिया के सबसे पुराने संग्रहालयों में से एक है। इसकी स्थापना 1814 ई. में की गई थी। यहाँ जीवाश्म, प्राचीन सिक्के, पत्थर, गांधार कलाकृति, उल्कापिंड इत्यादि महत्वपूर्ण चीज़ें रखी हुई हैं। इस संग्रहालय में एक 4000 साल पुराना पुराशव भी है। इसके अलावा यहाँ एक कलश भी है। कहा जाता है कि इस कलश में भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे हुए हैं।
भारत का पहला संग्रहालय
पुरातत्व विषय अवशेषों को संग्रहित करने की सबसे पहले 1796 ई. में आवश्यकता महसूस की गर्इ, जब बंगाल की एशियाटिक सोसायटी ने पुरातत्वीय, नृजातीय, भूवैज्ञानिक, प्राणि-विज्ञान की दृष्टि से महत्व रखने वाले विशाल संग्रह को एक जगह पर एकत्र करने की आवश्यकता महसूस की। किंतु उनके द्वारा पहला संग्रहालय 2 फ़रवरी, 1814 ई. में प्रारंभ किया गया। इस एशियाटिक सोसायटी संग्रहालय के नाभिक से ही बाद में भारतीय संग्रहालय, कोलकाता का जन्म हुआ।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में भी इसके प्रथम महानिदेशक एलेक्जेंडर कनिंघम के समय से प्रारंभ किए गए विभिन्न खोजी अन्वेषणों के कारण विशाल मात्रा में पुरातत्व विषयक अवशेष एकत्रित किए गए। स्थल संग्रहालयों का सृजन सर जॉन मार्शल के आने के बाद हुआ, जिन्होंने सारनाथ (1904), आगरा (1906), अजमेर (1908), दिल्ली क़िला (1909), बीजापुर (1912), नालंदा (1917) तथा सांची (1919) जैसे स्थानीय संग्रहालयों की स्थापना करना प्रारंभ किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के एक पूर्व महानिदेशक हरग्रीव्स द्वारा स्थल-संग्रहालयों की अवधारणा की बड़ी अच्छी तरह से व्याख्या की गई है।
उद्देश्य
इस संग्रहालय का उद्देश्य, राष्ट्रीय महत्व की सभी पुरावस्तुओं का अर्जन, संरक्षण और अध्ययन करने के साथ-साथ इनके माध्यम से ज्ञान का प्रसार करना तथा मनोरंजन करना है। इसके संग्रह की मुख्य विशेषताओं में प्राच्य संस्कृति, इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ अन्य देशों के भी कुछ नमूने शामिल हैं।
भारत सरकार की नीति
भारत सरकार की यह नीति रही है कि प्राचीन स्थलों से प्राप्त किए गए छोटे और लाने एवं ले जा सकने योग्य पुरावशेषों को उन खंडहरों के निकट संपर्क में रखा जाए, जिससे वे संबंधित हैं ताकि उनके स्वाभाविक वातावरण में उनका अध्ययन किया जा सके और स्थानांतरित हो जाने के कारण उन पर से ध्यान हट नहीं जाए। मॉर्टिन व्हीलर द्वारा 1946 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए एस आई) में एक पृथक् संग्रहालय शाखा का सृजन किया गया। आज़ादी के बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में स्थल-संग्रहालयों के विकास में बहुत तेज़ीआई। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रणाधीन 41 स्थल संग्रहालय हैं।[1]
संग्रह
पुरातत्त्व खंड में 5वीं ई.पू. से 17वीं शताब्दी तक के संग्रह शामिल हैं। प्राचीन, मध्य काल और आधुनिक काल के भारतीय सिक्के भी प्रदर्शित किए गए हैं। कला खंड को चित्रकला, वस्त्र और भारतीय सज्जा कला खंड में विभक्त किया गया है। मानव विज्ञान खंड में मानव विकास और सांस्कृतिक मानव विज्ञान वीथियां शामिल हैं, जिनमें मत्स्य, सरीसृप, पक्षी, स्तनधारी, जीवाश्म, शिला एवं खनिज और औषधीय पादप, वनस्पति तंतु, रंजक एवं चर्म, गोंद तथा राल, काष्ठ, तैल तथा तैल बीज संग्रह प्रदर्शित की गई हैं। लगभग एक मिलियन होल्डिंगस के साथ इस संग्रहालय के 6 खंडों से युक्त लगभग 8 हज़ार वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले अनेक वीथियों में प्रदर्शित कला और प्रकृति की असंख्य पुरा वस्तुओं और विशाल विविधता के साथ, भारतीय संग्रहालय को इसके बहु-विषयक कार्यकलापों के साथ भारतीय गणतंत्र की संविधान में एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संस्थान के रूप में समाहित किया गया है।
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वीथिका
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संग्रहालय - Museums (हिंदी) भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण। अभिगमन तिथि: 4 जनवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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