हे बप्पा मोरया !
तुम कोई साज सज्जा नहीं करते
गज का आनन, लंबा उदर
और एक दंत लिए
अपनी छोटी सी सवारी के साथ
चुपचाप बैठे रहते हो,
कभी लिखते हो
कभी पढ़ते हो
हर थोड़े अंतराल पर
सामने थाली में सजाकर रखे गए
मोदकों की कतार से
एक उठा लेते हो
मुस्कुराकर खा लेते हो...
हे गौरीसुता !
तुम मौन रहकर भी
कितना कुछ कहते हो !
तुम सबको बताते हो कि
"जो सहज मिला है,
उसमें खुश रहो
मुझे देखो,
आकार में छोटा हूं
शरीर से कितना मोटा हूं
मृगछाल पहनने वाले
कैलाश पर्वत पर
खुले आकाश तले सोने वाले
भस्म रमाने वाले
संपत्ति के नाम पर
एक भांग घोटना रखने वाले
भूतों के संग वास करने वाले
गंगाधर, शशिधर, हरिहर का
पुत्र हूं मैं !
परिस्थितियां ऐसी बनीं
कि पिता ने क्रोध में
पहले तो
मेरा सिर धड़ से छिन्न कर दिया
फिर गजराज का सिर लगा दिया
उसमें भी एक ही दांत !!!
फिर भी,
मैं शिवनंदन
गजानन का नाम पाकर
सदा खुश रहता हूं
कभी सोचा भी नहीं
कि अपनी शक्ति के बल पर
मुखाकृति बदल लूं,
कार्तिकेय की तरह
सुदर्शन बन जाऊं... !
औरों के विघ्न हर सकता हूं
तो अपने विघ्न को भी
हर सकता था ना !
चाहता तो
कर सकता था ना !
औरों की समृद्धि देखकर
और बड़ा घर,
दूसरों के वाहन से
बड़ा वाहन
संसार की सारी सुविधाएं
पाने के पीछे मत्त होते हो तुम
मेरा वाहन सबसे छोटा है
नारायण देव शेषनाग पर सवार
पिता नंदी पर
भ्राता मयूर पर
दिवाली में
मेरे साथ होने वाली
लक्ष्मी मइया
सबसे विवेकशील उलूक पर
सरस्वती मां
नीर क्षीर न्याय करने वाले
न्यायमूर्ति हंस पर
माता दुर्गा सिंह पर
और मैं !
मेरा वाहन मूषक
पर मैंने उसे कभी नहीं बदला
तीनों लोक की यात्रा की
भाई से स्पर्धा हुई
तब भी-
किसी तीव्र गति वाले
वाहन का विचार नहीं किया,
बुद्धि का आश्रय लिया
और जा बैठा,
माता पिता के चरणो में...
तुम मुझे प्रति वर्ष बुलाते हो
सिद्धि विनायक तक
पैदल चलकर जाते हो
गला फाड़कर चिल्लाते हो -
गणपति बप्पा मोरया...
क्या लगता है तुम्हें ?
यदि मैं बुद्धिमान हूं
तो ऐसी बातों से
तुम्हारी चढ़ाई गई सौगातों से
प्रसन्न होता हूं ?
सुनो,
मुझ जैसा बनो
औरों को देखकर
स्वांग मत रचो
मैं बप्पा हूं वत्स,
उत्कोच ग्रहण करने वाला
अधिकारी नहीं हूं
पार्वतीतनय हूं,
क्रय विक्रय करने वाला
व्यापारी नहीं हूं
श्रीगणेश हूं ना मैं
जिसमें आरंभ निहित है
तो अपने मोदकों का प्रबंध
स्वयं कर सकता हूं ...
तुम बस इतना करो
कि मेरी स्थापना के स्थान पर
अपने सहज, सरल व्यक्तित्व
और आत्मगौरव की
पूरे मन से स्थापना करो
और सुनो,
मेरा विसर्जन तो कर देते हो,
उसका विसर्जन मत करना
मेरे कहे का
इतना मान ज़रूर रखना।"
नीलम प्रभा