सातौ सबद जु बाजते -कबीर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
| ||||||||||||||||||||
|
सातौ सबद जु बाजते, घरि घरि होते राग। |
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि हे मानव! जिन मंदिरों और प्रासादों में सातों स्वर के बाजे बजते थे और विभिन्न प्रकार के राग गाए जाते थे, वे आज ख़ाली पड़े हुए हैं और उन पर कौए बैठते हैं। सांसारिक वैभव की यही क्षणभंगुरता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख