पूर्वी गंग वंश

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पूर्वी गंग वंश (शासनकाल - 1028 से 1434-35 ई. तक) भारतीय उपमहाद्वीप का एक हिन्दू राजवंश था। इस वंश के शासक कोणार्क के सूर्य मन्दिर के निर्माण के लिये प्रसिद्ध हैं।

  • भारत में गंग वंश नाम के दो अलग-अलग, लेकिन दूर के संबंधी राजवंश थे।
  1. पश्चिमी गंग वंश (250 से लगभग 1004 ई)
  2. पूर्वी गंग वंश (1028 से 1434-35 ई.)
  • पूर्वी गंग वंश धर्म और कला का महान् संरक्षक था और उसके शासनकाल में निर्मित मंदिर हिन्दू वास्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • पूर्वी गंग वंशों में अंतर्विवाह की शुरुआत हुई और उन्होंने ऐसे समय में चोलों और चालुक्य वंशों को चुनौती देना आरंभ किया, जब पश्चिमी गंग वंश यह सब छोड़ने पर विवश हो चुके थे।
  • पूर्वी गंगों का आरंभिक वंश आठवीं शताब्दी से उड़ीसा में सत्तासीन था; लेकिन वज्रास्त तृतीय, जिन्होंने 1028 ई. में 'त्रिकलिंगाधिपति'[1] की उपाधि धारण की थी, शायद ये पहले शासक थे, जिन्होंने कलिंग के तीनों हिस्सों पर एक साथ शासन किया। उनके पुत्र राजराज प्रथम ने चालों और पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण किया और चोल राजकुमारी राजसुंदरी से विवाह करके अपनी सत्ता मज़बूत की। उनके पुत्र अनंतवर्मन कोडगंगदेव का शासन उत्तर में गंगा के उद्गम स्थल से लेकर दक्षिण में गोदावरी के उद्गम स्थल तक फैला हुआ था; उन्होंने 11वीं शताब्दी के अंत में पुरी में विशाल जगन्नाथ मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया।
  • अनंगभीम के पुत्र नरसिंहदेव प्रथम ने 1243 ई. में दक्षिण बंगाल के मुसलमान शासक को हराकर उनकी राजधानी (गौडा) पर क़ब्जा कर लिया और विजय स्मारक के रूप में कोणार्क में सूर्य मंदिर बनवाया। 1264 ई. में नरसिंह की मृत्यु के साथ ही पूर्वी गंग वंश का पतन शुरू हो गया।




इन्हें भी देखें: गंग वंश


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