ए. एन. राय
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पूरा नाम | अजीत नाथ राय |
जन्म | 29 जनवरी, 1912 |
मृत्यु | 25 दिसम्बर, 2009 |
मृत्यु स्थान | कोलकाता |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | न्यायाधीश |
पद | मुख्य न्यायाधीश, भारत- 26 अप्रैल, 1973 से 27 जनवरी, 1977 तक |
संबंधित लेख | भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय |
द्वारा नियुक्त | वी. वी. गिरि |
पूर्वाधिकारी | सर्व मित्र सिकरी |
उत्तराधिकारी | मिर्जा हमीदुल्ला बेग |
अजीत नाथ राय (अंग्रेज़ी: Ajit Nath Ray, जन्म- 29 जनवरी, 1912; मृत्यु- 25 दिसम्बर, 2009) भारत के भूतपूर्व 14वें मुख्य न्यायाधीश थे। वह 26 अप्रैल, 1973 से 27 जनवरी, 1977 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे। सन 1969 में बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम की संवैधानिकता की जांच करने वाले ग्यारह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों में से अजीत नाथ राय एकमात्र असंतुष्ट थे।
- अजीत नाथ राय के पुत्र न्यायमूर्ति अजय नाथ राय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे थे।
- अगस्त 1969 में अजीत नाथ राय को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। वह अप्रैल 1973 में भारत के मुख्य न्यायाधीश बने।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अजीत नाथ राय की नियुक्ति केशवानंद भारती मामले में एक असहमतिपूर्ण राय के बाद हुई, जिसने भारतीय संविधान के मूल संरचना सिद्धांत को जन्म दिया।
- यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों- जयशंकर मणिलाल शेलत, ए. एन. ग्रोवर और के. एस. हेगड़े पर वरीयता देते हुए की गई थी। इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमले के रूप में देखा गया। यह भारतीय कानूनी इतिहास में अभूतपूर्व था। इसे पूरे भारत में बार संघों और कानूनी समूहों द्वारा व्यापक विरोधों द्वारा चिह्नित किया गया। विरोध कई महीनों तक जारी रहा और 3 मई, 1976 को भारत के सभी कानूनी समूहों ने 'बार एकजुटता दिवस' मनाया और काम रोक दिया।
- सन 1977 में हंस राज खन्ना के स्थान पर न्यायमूर्ति बेग की विवादास्पद नियुक्ति के साथ यह प्रक्रिया जारी रही।
- अजीत नाथ राय सिर्फ अपनी नियुक्ति की वजह से ही विवादित नहीं रहे। उन्होंने केशवानंद मामले में अदालत के निर्णय की समीक्षा के लिए एक खंडपीठ का गठन किया था, जिसे बाद में भंग करना पड़ा।
- इसी तरह से आपात काल के समय संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 के तहत मिले नागरिक अधिकारों (व्यक्तिगत स्वतंत्रता व अदालत में अपील का अधिकार) को निलंबित करने का फैसला भी जस्टिस अजीत नाथ राय की खंडपीठ ने ही किया था। इनके लिए भी वे हमेशा आलोचनाओं के शिकार हुए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- जब परंपरा तोड़कर मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की गई और देश भर में इसका विरोध हुआ
- मुख्य न्यायाधीश का पद स्वीकार करने के लिए जस्टिस एएन रे को मिले थे दो घंटे
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