बूटा सिंह

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बूटा सिंह
बूटा सिंह
बूटा सिंह
पूरा नाम सरदार बूटा सिंह
जन्म 21 मार्च, 1934
जन्म भूमि मुस्तफापुर गांव, जालंधर, पंजाब
मृत्यु 2 जनवरी, 2021, नई दिल्ली
पति/पत्नी मनजीत कौर
संतान अरविंद सिंह लवली
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ
पार्टी कांग्रेस
कार्य काल राज्यपाल, बिहार - 2004 से 2006

गृह मंत्री, भारत - 1986 से 1989
कृषि मंत्री - 1984 से 1986

उपाधि दलितों के मसीहा
अन्य जानकारी सन 1984 में हुए चुनाव में बूटा सिंह पहली ही मर्तबा में चुनाव जीत गए। लेकिन 1989 में दोबारा जब चुनाव लड़ा तो इस रोमांचक मुकाबले में जीत कैलाश मेघवाल की हुई।

बूटा सिंह (अंग्रेज़ी: Buta Singh, जन्म- 21 मार्च, 1934, जालंधर, पंजाब; मृत्यु- 2 जनवरी, 2021, नई दिल्ली) कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता थे। सरदार बूटा सिंह को "दलितों का मसीहा" कहा जाता था। नेहरू और गांधी परिवार के काफी करीब रहे सरदार बूटा सिंह अपने लंबे राजनीतिक सफर के दौरान भारत सरकार में केंद्रीय गृह मंत्री, कृषि मंत्री, रेल मंत्री और खेल मंत्री रहे। इसके साथ ही उन्होंने बिहार के राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण विभागों का संचालन किया।

जन्म

21 मार्च, 1934 को पंजाब के जालंधर जिले के मुस्तफापुर गांव में सरदार बूटा सिंह का जन्म हुआ था। वे 8 बार लोक सभा के लिए चुने गए थे।

राजनीतिक सफ़र

राजस्थान से बूटा सिंह का खास नाता रहा। सन 1984 से बूटा सिंह राजस्थान की जालोर सीट से चुनाव लड़ते आ रहे थे। 1999 तक उनका यहां बड़ा लंबा राजनैतिक इतिहास रहा है। लेकिन राजस्थान से उनका नाता कैसे जुड़ा, इसके पीछे एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। दरअसल नेहरू-गांधी परिवार के खास और विश्वासपात्र माने जाने वाले सरदार बूटा सिंह का राजस्थान की राजनीति में आना संयोग मात्र ही माना जा सकता है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि जब राजस्थान से उनका नाता जुड़ा तो राजनैतिक सफऱ के आखिर चुनाव तक उन्होंने राजस्थान को और राजस्थान ने उनका साथ नहीं छोड़ा।[1]

राजनीति के जानकारों की माने तो 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी चाहते थे कि बूटा सिंह को ऐसी सीट से चुनाव लड़वाया जाए, जहां से उनकी जीत निश्चित हो। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस और बूटा सिंह दोनों जानते थे कि पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरावाले के ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे जाने के बाद पंजाब प्रांत के कई सिखों में कांग्रेस के खिलाफ नाराजगी है। लिहाजा बूटा सिंह को कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली जालोर-सिरोही सीट से सीट दी गई। इससे पहले बूटा सिंह 1966 से पंजाब की रोपड की सीट से चुनाव लड़ रहे थे। वहीं पंजाब के दलित कांग्रेसी नेता बूटा सिंह ने हरियाणा की साधना सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा था।

सन 1984 में हुए चुनाव में बूटा सिंह पहली ही मर्तबा में चुनाव जीत गए। लेकिन 1989 में दोबारा जब उन्होंने चुनाव लड़ा तो बीजेपी और वरिष्ठ नेता भैरोंसिंह शेखावत को उस दौर के वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल को उनके सामने उतारा गया। लेकिन इस रोमांचक मुकाबले में जीत मेघवाल की हुई। कैलाश मेघवाल चुनाव जीत गए। बूटा सिंह जैसे दिग्गज नेता को हराने के बाद मेघवाल का कद भी बीजेपी में बढ़ गया। लेकिन खास बात यह रही कि बूटा सिंह ने अपनी सीट नहीं छोड़ी, दोबारा 1991 में जालोर से ही चुनाव जीता। इसी तरह आगे 1999 में सिरोही से सांसद रहे। हालांकि 2004 में जालोर से चुनाव जीतने के बाद उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया।

मृत्यु

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बूटा सिंह का शनिवार के दिन 2 जनवरी, 2021 को नई दिल्ली में निधन हुआ। वह 86 साल के थे। बूटा सिंह को 2020 में ब्रेन हेमरेज के बाद अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था और वह गत वर्ष अक्टूबर महीने से कोमा में थे।

बूटा सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत अन्य नेताओं ने शोक जताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बूटा सिंह के निधन पर दु:ख जताते हुए कहा कि "बूटा सिंह जी एक अनुभवी प्रशासक थे। उन्होंने गरीबों के साथ-साथ समाज में हाशिये पर पड़े लोगों की आवाज उठाई। उनके निधन से दु:खी हूं। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं"।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी के कई अन्य नेताओं ने बूटा सिंह के निधन पर दु:ख जताया। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, "सरदार बूटा सिंह जी के देहांत से देश ने एक सच्चा जनसेवक और निष्ठावान नेता खो दिया है। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा और जनता की भलाई के लिए समर्पित कर दिया, जिसके लिए उन्हें सदैव याद रखा जाएगा। इस मुश्किल समय में उनके परिवारजनों को मेरी संवेदनाएं"।'


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजीव गांधी नहीं चाहते थे 'बूटा' हारें चुनाव (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 02 जनवरी, 2020।

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