विश्व सामाजिक न्याय दिवस
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विवरण | 'विश्व सामाजिक न्याय दिवस' विश्व भर में मनाये जाने वाले महत्त्वपूर्ण दिवसों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र के आह्वान पर यह दिवस प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। |
तिथि | 20 फ़रवरी |
स्थापना | 2007 |
उद्देश्य | बहिष्कार, बेरोजगारी तथा ग़रीबी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए। |
विशेष | भारत में आज भी कई लोग अपनी कई मूल जरुरतों के लिए न्याय प्रकिया को नहीं जानते, जिसके अभाव में कई बार उनके मानवाधिकारों का हनन होता है और उन्हें अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है। |
अन्य जानकारी | भारत में अशिक्षा, ग़रीबी, बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक असमानता ज्यादा है। इन्हीं भेदभावों के कारण सामाजिक न्याय बेहद विचारणीय विषय हो गया है। |
विश्व सामाजिक न्याय दिवस (World Day of Social Justice) प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण विश्व में 20 फ़रवरी को मनाया जाता है। यह दिवस विभिन्न सामाजिक मुद्दों, जैसे- बहिष्कार, बेरोजगारी तथा ग़रीबी से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर विभिन्न संगठनों, जैसे- संयुक्त राष्ट्र एवं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा लोगों से सामाजिक न्याय हेतु अपील जारी की जाती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सामाजिक न्याय देशों के मध्य समृद्ध और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए एक अंतर्निहित सिद्धांत है। सामाजिक न्याय का अर्थ है- लिंग, आयु, धर्म, अक्षमता तथा संस्कृति की भावना को भूलकर समान समाज की स्थापना करना।
मनाने की पहल
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2007 में इस दिवस की स्थापना की गयी। इसके तहत वैश्विक सामाजिक न्याय विकास सम्मेलन आयोजित कराने तथा 24वें महासभा सत्र का आह्वान करने की घोषणा की गयी। इस अवसर पर यह घोषणा की गयी कि 20 फ़रवरी को प्रत्येक वर्ष विश्व न्याय दिवस मनाया जायेगा। प्रत्येक वर्ष विभिन्न कार्यों एवं क्रियाकलापों का आयोजन किया जायेगा। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि- "इस दिवस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ग़रीबी उन्मूलन के लिए कार्य करना चाहिए। सभी स्थानों पर लोगों के लिए सभ्य काम एवं रोजगार की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए तभी सामाजिक न्याय संभव है।[1]
समाज में फैली भेदभाव और असमानता की वजह से कई बार हालात इतने बुरे हो जाते हैं कि मानवाधिकारों का हनन भी होने लगता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 20 फ़रवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। सन 2009 से इस दिवस को पूरे विश्व में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से मनाया जाता है। रोटी, कपड़ा, मकान, सुरक्षा, चिकित्सा, अशिक्षा, ग़रीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की ज़रूरत को पहचानने के लिए विश्व सामाजिक न्याय दिवस मनाने की शुरूआत की गयी है। अन्तर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में तीन करोड़ बच्चे युद्ध या अन्य कारणों से पैदा होने वाले संकटों की वजह से शिक्षा नहीं ले पाते हैं। हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार मध्य अफ्रीकी गणराज्य में लगभग एक तिहाई स्कूलों को या तो गोलियों से छलनी किया गया था या आग लगाई गई अथवा लूटा या सशस्त्र समूहों द्वारा क़ब्ज़ा कर लिया गया। यूनिसेफ के वैश्विक शिक्षा कार्यक्रम के प्रमुख जोसफिन बॉर्न, ने कहा- "आपात स्थिति के माध्यम से रहने वाले बच्चों के लिए, शिक्षा एक जीवन रेखा है।"[2]
अभिभावकों की गलत धारणा
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने बालिकाओं के बारे में कुछ चौकाने वाले आँकड़े प्रस्तुत किए। इन आँकड़ों के अनुसार भारत की आबादी में 50 मिलियन बालिकाएँ व महिलाओं की गिनती ही नहीं है। प्रत्येक वर्ष पैदा होने वाली 12 मिलियन लड़कियों में से 1 मिलियन अपना पहला जन्मदिन नहीं देख पाती हैं। 4 वर्षों से कम आयु की बालिकाओं की मृत्यु दर बालकों से अधिक है। 5 से 9 वर्षों की 53 प्रतिशत बालिकाएँ अनपढ़ हैं। 4 वर्षों से कम आयु की बालिकाओं में 4 में से 1 के साथ दुर्व्यवहार होता है। प्रत्येक 6ठीं बालिका की मृत्यु लिंग भेद के कारण होती है। इस सबके पीछे मुख्य कारण अभिभावकों की यह गलत धारणा भी है कि लड़कों से ही उनका वंश आगे बढ़ता है।
विश्व में सामाजिक न्याय का सपना
आज 4 में से 1 बालक ग़रीबी, कुपोषण, अशिक्षा, बढ़ती हुई हिंसा, असुरक्षा और भेदभाव का शिकार हैं। 11 सितम्बर, 2001 को हुए न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर आतंकवादी हमले के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद आज मानव सभ्यता का सबसे घातक शत्रु बन गया है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पूरे संसार में फैली अराजकता का ही दुष्परिणाम है। यह एक ऐसी गम्भीर स्थिति है जहाँ लोग हिंसात्मक और विध्वंसकारी गतिविधियों द्वारा अपनी शिकायतों या दुखों का काल्पनिक समाधान खोजते हैं और इनके लिए वे व्यवस्था को दोषी ठहराते हैं। इंसान एक सामाजिक प्राणी माना जाता है। लेकिन इंसान की इस मुख्य विशेषता को तब चुनौती मिलती है, जब भेदभाव की वजह से एक इंसान दूसरे इंसान से जाति, रंग, धर्म, भाषा, प्रदेश, राष्ट्र, लिंग आदि के कारण नफरत करता है। समाज में फैले इस भेदभाव का एक बहुत बड़ा नुकसान उस समय नजर आता है, जब समाज में इससे हमारी न्याय व्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है।
सामाजिक न्याय का अर्थ
समाज में हर तबका एक अलग महत्व रखता है। कई बार समाज की संरचना इस प्रकार होती है कि आर्थिक स्तर पर भेदभाव हो ही जाता है। ऐसे में न्यायिक व्यवस्था पर भी इसका असर पड़े, यह सही बात नहीं है। समाज में फैली असमानता और भेदभाव से सामाजिक न्याय की मांग और तेज हो जाती है। सामाजिक न्याय के बारे में कार्य और उस पर विचार तो बहुत पहले से शुरू हो गया था, लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी विश्व के कई लोगों के लिए सामाजिक न्याय सपना बना हुआ है। सामाजिक न्याय का अर्थ निकालना बेहद मुश्किल कार्य है। सामाजिक न्याय का मतलब समाज के सभी वर्गों को एक समान विकास और विकास के मौकों को उपलब्ध कराना है। सामाजिक न्याय यह सुनिश्चित करता है कि समाज का कोई भी शख्स वर्ग, वर्ण या जाति की वजह से विकास की दौड़ में पीछे न रह जाए। यह तभी संभव हो सकता है जब समाज से भेदभाव को हटाया जाए।[2]
भारत में सामाजिक न्याय के प्रयास
सामाजिक न्याय के संदर्भ में जब भी भारत की बात होती है तो हम पाते हैं कि हमारे संविधान की प्रस्तावना और अनेकों प्रावधानों के द्वारा इसे सुनिश्चित करने की बात कही गई है। भारत में फैली जाति प्रथा और इस पर होने वाला स्वार्थपूर्ण भेदभाव सामाजिक न्याय को रोकने में एक अहम कारक सिद्ध होता है। भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास आयोग जैसी कई सरकारी तंत्र एवं लाखों स्वयं सेवी संगठन हमेशा इस बात की कोशिश करते हैं कि समाज में भेदभाव से कोई आम इंसान पीड़ित न हो। भारत में आज भी कई लोग अपनी कई मूल जरुरतों के लिए न्याय प्रकिया को नहीं जानते जिसके अभाव में कई बार उनके मानवाधिकारों का हनन होता है और उन्हें अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है। आज भारत में अशिक्षा, ग़रीबी, बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक असमानता ज्यादा है। इन्हीं भेदभावों के कारण सामाजिक न्याय बेहद विचारणीय विषय हो गया है।
लक्ष्य
यूनेस्को के शान्ति शिक्षा पुरस्कार एवं ‘गिनीज बुक ऑफ़ रिकार्ड’ में नामित, वर्तमान में लगभग 50,000 छात्र संख्या वाले सिटी मोन्टेसरी स्कूल का लक्ष्य सामाजिक न्याय के तहत विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों को सुरक्षित भविष्य का अधिकार दिलाना है, जो कि सम्पूर्ण विश्व में ‘एकता व शान्ति’ की स्थापना से ही संभव है। न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में 27 से 29 अगस्त, 2014 तक ‘द रोल ऑफ सिविल सोसाइटी इन पोस्ट 2015 डेवलपमेन्ट एजेण्डा’ विषय पर आयोजित हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के 65वें वार्षिक सम्मेलन में मैं अपनी बेटी व विद्यालय की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर प्रो. गीता गाँधी किंगडन के साथ प्रतिभाग किया। साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में ‘कन्टेन्ट ऑफ एजुकेशन फॉर ट्वेन्टी फर्स्ट सेन्चुरी’ विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन भारत में आयोजित करने की संभावनाओं पर विचार-विमर्श किया। न्यूयार्क यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ में इस बात को मजबूती से रखा गया कि ‘विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों को सुरक्षित भविष्य का अधिकार’ सभी सरकारों की प्राथमिकता में होना चाहिए।’ अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने सिटी मोन्टेसरी स्कूल को अपना ‘ऑफिसियल एन.जी.ओ.’ घोषित किया है एवं यह उपलब्धि अर्जित करने वाला सी.एम.एस. विश्व का पहला विद्यालय है। यह उपलब्धि सी.एम.एस. के सामाजिक जागरूकता के प्रयासों का प्रमाण है, जिसका सम्पूर्ण श्रेय सी.एम.एस. के लगभग 50,000 छात्रों, उनके 3000 शिक्षकों व कार्यकर्ताओं को जाता है।
वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र संघ को और मजबूत किये जाने की आवश्यकता है, जिससे यह संस्था युद्धों को रोकने, अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा करने, आतंकवाद को रोकने नाभिकीय हथियारों की समाप्ति एवं पर्यावरण संरक्षण आदि तमाम वैश्विक समस्याओं को प्रभावशाली ढंग से सुलझाने में सक्षम हो सकें। क्योंकि तभी विश्व में शान्ति व एकता की स्थापना संभव हो सकेगी। विश्व एकता व विश्व शान्ति के प्रयासों के तहत ही सी.एम.एस. विगत 14 वर्षों से लगातार प्रतिवर्ष ‘मुख्य न्यायाधीशों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ आयोजित करता आ रहा है, जिसमें अभी तक दुनिया के दो-तिहाई से अधिक देशों की भागीदारी हो चुकी है। इसके अलावा 30 अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक समारोह के माध्यम से भी सी.एम.एस. विश्व के बच्चों को एक मंच पर एकत्रित करके विश्व एकता व शान्ति का संदेश देता है। इसके अलावा सी.एम.एस. विभिन्न सामाजिक जागरूकता के कार्यक्रमों जैसे पर्यावरण, बालिकाओं की शिक्षा, किशोरों व युवाओं के चारित्रिक उत्थान आदि अनेकानेक ज्वलन्त मुद्दों पर भी पुरजोर ढंग से अपनी आवाज उठाता रहा है।[2]
विश्व एकता व विश्व शान्ति
सी.एम.एस. विगत 55 वर्षों से लगातार विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के सुरक्षित भविष्य हेतु विश्व एकता व विश्व शान्ति का बिगुल बजा रहा है, परन्तु यू.एन.ओ. के ऑफिसियल एन.जी.ओ. का दर्जा मिलने के बाद विश्व पटल पर इसकी प्रतिध्वनि और जोरदार ढंग से सुनाई देगी। सी.एम.एस. की सम्पूर्ण शिक्षा पद्धति का मूल यही है कि सभी को सामाजिक न्याय सहजता से मिल सके, मानवाधिकारों का संरक्षण हो, भावी पीढ़ी के सम्पूर्ण मानव जाति की सेवा के लिए तैयार किया जा सके, यही कारण है सर्वधर्म समभाव, विश्व मानवता की सेवा, विश्व बन्धुत्व व विश्व एकता के सद्प्रयास इस विद्यालय को एक अनूठा रंग प्रदान करते हैं, जिसकी मिसाल शायद ही विश्व में कहीं और मिल सके। कानून को न्यायालय की चार दीवारी से बाहर आना होगा। जो व्यक्ति अशिक्षा, आर्थिक अभाव या किसी भी अन्य कारणों से न्यायालय नहीं पहुंच पाता है, उसे भी न्याय मिले इस बात को सभी को मिलकर सुनिश्चित करना है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विश्व सामाजिक न्याय दिवस (हिंदी) jagranjosh.com। अभिगमन तिथि: 28 फ़रवरी, 2017।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 गाँधी, डॉ. जगदीश। विश्व सामाजिक न्याय दिवस (20 फ़रवरी) (हिंदी) sahityashilpi.com। अभिगमन तिथि: 28 फ़रवरी, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
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