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'''शूद्रक''' [[गुप्तकाल]] में उत्पन्न हुए थे। उनका प्रसिद्ध नाटक '[[मृच्छकटिकम्]]' है, जिसे सामाजिक नाटकों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। इसके दस अंकों में [[ब्राह्मण]] 'चारुदत्त' जो समय-चक्र से निर्धन है तथा [[उज्जयिनी]] की प्रसिद्ध गणिका 'वसंतसेना' के आर्दश प्रेम की कहानी वर्णित है। | |||
शूद्रक [[गुप्तकाल]] में उत्पन्न हुए थे। उनका प्रसिद्ध नाटक '[[मृच्छकटिकम्]]' | |||
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पात्रों के चरित्र-चित्रण में शूद्रक को विशेष सफलता मिली है। शूद्रक ने चारुदत्त के माध्यम से [[भारत]] के आर्दश नागरिक का चित्रण किया है। | पात्रों के चरित्र-चित्रण में शूद्रक को विशेष सफलता मिली है। शूद्रक ने चारुदत्त के माध्यम से [[भारत]] के आर्दश नागरिक का चित्रण किया है। | ||
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मृच्छकटिकम् की शैली सरल तथा वर्णन विस्तृत है। [[प्राकृत भाषा]] की सभी शैलियों का प्रयोग इसमें एक साथ मिलता है। प्रथम बार [[संस्कृत]] में शूद्रक ने ही राज परिवार को छोड़कर समाज के मध्यम वर्ग के लोगों को अपने नाटक के पात्र बनाये। इसके कथानक तथा वातावरण में स्वाभाविकता है। इस दृष्टि से शूद्रक की नाट्य कला बड़ी प्रशंसनीय है। पाश्चात्य आलोचकों ने इसकी बड़ी सराहना की है तथा मृच्छकटिकम् को सार्वभौम आकर्षण का नाटक बताया है, जिसका सफल मंचन विश्व में कहीं भी किया जा सकता है। | मृच्छकटिकम् की शैली सरल तथा वर्णन विस्तृत है। [[प्राकृत भाषा]] की सभी शैलियों का प्रयोग इसमें एक साथ मिलता है। प्रथम बार [[संस्कृत]] में शूद्रक ने ही राज परिवार को छोड़कर समाज के मध्यम वर्ग के लोगों को अपने नाटक के पात्र बनाये। इसके कथानक तथा वातावरण में स्वाभाविकता है। इस दृष्टि से शूद्रक की नाट्य कला बड़ी प्रशंसनीय है। पाश्चात्य आलोचकों ने इसकी बड़ी सराहना की है तथा मृच्छकटिकम् को सार्वभौम आकर्षण का नाटक बताया है, जिसका सफल मंचन विश्व में कहीं भी किया जा सकता है। | ||
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08:49, 11 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
शूद्रक गुप्तकाल में उत्पन्न हुए थे। उनका प्रसिद्ध नाटक 'मृच्छकटिकम्' है, जिसे सामाजिक नाटकों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। इसके दस अंकों में ब्राह्मण 'चारुदत्त' जो समय-चक्र से निर्धन है तथा उज्जयिनी की प्रसिद्ध गणिका 'वसंतसेना' के आर्दश प्रेम की कहानी वर्णित है।
- चरित्र-चित्रण
पात्रों के चरित्र-चित्रण में शूद्रक को विशेष सफलता मिली है। शूद्रक ने चारुदत्त के माध्यम से भारत के आर्दश नागरिक का चित्रण किया है।
- भाषा शैली
मृच्छकटिकम् की शैली सरल तथा वर्णन विस्तृत है। प्राकृत भाषा की सभी शैलियों का प्रयोग इसमें एक साथ मिलता है। प्रथम बार संस्कृत में शूद्रक ने ही राज परिवार को छोड़कर समाज के मध्यम वर्ग के लोगों को अपने नाटक के पात्र बनाये। इसके कथानक तथा वातावरण में स्वाभाविकता है। इस दृष्टि से शूद्रक की नाट्य कला बड़ी प्रशंसनीय है। पाश्चात्य आलोचकों ने इसकी बड़ी सराहना की है तथा मृच्छकटिकम् को सार्वभौम आकर्षण का नाटक बताया है, जिसका सफल मंचन विश्व में कहीं भी किया जा सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख