"नादिरशाह का आक्रमण": अवतरणों में अंतर

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*[[भारत]] पर '''नादिरशाह का आक्रमण''' [[16 फ़रवरी]], 1739 को हुआ था।
'''नादिरशाह''' [[फ़ारस]] का शासक था। उसे "ईरान का नेपोलियन" कहा जाता है। [[भारत]] पर नादिरशाह का आक्रमण [[16 फ़रवरी]], 1739 को हुआ था। वह बहुत ही महत्वाकांक्षी चरित्र का व्यक्ति था और भारत की अपार धन-सम्पदा के कारण ही इस ओर आकर्षित हुआ। [[मुग़ल]] सेना के साथ हुए नादिरशाह के युद्ध को '[[करनाल का युद्ध|करनाल के युद्ध]]' के नाम से जाना जाता है।
*[[मुग़ल]] साम्राज्य के विघटन के साथ-साथ उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर सुरक्षा प्रबन्ध भी ढीले हो गए थे।
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*इस दौरान [[भारत]] पर पश्चिम से दो विदेशी आक्रमण हुए।
==भारत की ओर आकर्षित==
*पहले का नेतृत्व [[नादिरशाह]] ने और दूसरे का नेतृत्व [[अहमदशाह अब्दाली]] ने किया।
नादिरशाह के आक्रमण के समय [[मुग़ल साम्राज्य]] के विघटन के साथ-साथ उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर सुरक्षा प्रबन्ध भी ढीले हो गए थे। इस दौरान [[भारत]] पर पश्चिम से दो विदेशी आक्रमण हुए। पहले का नेतृत्व नादिरशाह ने और दूसरे का नेतृत्व [[अहमदशाह अब्दाली]] ने किया। नादिरशाह [[फ़ारस]] का शासक था और भारत के अपार धन ने ही उसे आक्रमण करने के लिए आकर्षित किया था। अपनी भाड़े की फ़ौज को बनाए रखने के लिए उसे पैसों की आवश्यकता थी। भारत से लूटा गया धन इस समस्या का हल हो सकता था। साथ ही मुग़ल साम्राज्य की कमज़ोरी ने इस लूट को और भी आसान कर दिया।
*नादिरशाह [[फ़ारस]] का शासक था। उसे '''ईरान का नेपोलियन''' कहा जाता था।
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*वह एक महत्वाकांक्षी शासक था। भारत के अपार धन ने नादिरशाह को आक्रमण करने के आकर्षित किया था।
[[11 जून]], 1738 को नादिरशाह ने [[ग़ज़नी]] नगर में प्रवेश किया। इसके फलस्वरूप [[29 जून]], 1738 को उसने [[काबुल]] पर अधिकार कर लिया। इसके बाद आगे बढ़ते हुए नादिरशाह ने [[अटक]] के स्थान पर [[सिन्धु नदी]] को पार कर [[लाहौर]] में प्रवेश किया। [[मुग़ल]] गर्वनर 'जकारिया ख़ाँ' ने बिना युद्ध किए ही हथियार डाल दिये और 20 लाख रुपये तथा अपने [[हाथी]] नज़राने में देकर स्वयं को और लाहौर का और 'नासिर ख़ाँ' को काबुल और [[पेशावर]] का गर्वनर नियुक्त किया। [[16 फ़रवरी]], 1739 को नादिरशाह [[सरहिन्द]] पहुँचा। सरहिन्द से [[अम्बाला]], अम्बाला से अजीमाबाद और फिर करनाल की ओर कूच किया, जहाँ उसका मुग़ल सेना के साथ युद्ध हुआ। यह युद्ध '[[भारत का इतिहास|भारतीय इतिहास]]' में '[[करनाल का युद्ध|करनाल के युद्ध]]' के नाम से प्रसिद्ध है।
*अपनी भाड़े की फौज को बनाए रखने के लिए उसे पैसों की आवश्यकता थी।
*[[भारत]] से लूटा गया धन इस समस्या का हल हो सकता था। साथ ही [[मुग़ल]] साम्राज्य की कमज़ोरी ने इस लूट को और आसान कर दिया।
*[[11 जून]], 1738 को नादिरशाह ने [[ग़ज़नी]] नगर में प्रवेश किया।
*फलस्वरूप [[29 जून]], 1738 को उसने [[काबुल]] पर अधिकार कर लिया।
*इसके बाद आगे बढ़ते हुए नादिरशाह ने [[अटक]] के स्थान पर [[सिन्धु नदी]] को पार कर [[लाहौर]] में प्रवेश किया।
*मुग़ल गर्वनर 'जकारिया ख़ाँ' ने बिना युद्ध किए ही हथियार डाल दिये और 20 लाख रुपये तथा अपने [[हाथी]] नज़राने में देकर स्वयं को और लाहौर का और 'नासिर ख़ाँ' को काबुल और [[पेशावर]] का गर्वनर नियुक्त किया।
*16 फ़रवरी, 1739 को नादिरशाह [[सरहिन्द]] पहुँचा।
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14:13, 6 मार्च 2013 के समय का अवतरण

नादिरशाह फ़ारस का शासक था। उसे "ईरान का नेपोलियन" कहा जाता है। भारत पर नादिरशाह का आक्रमण 16 फ़रवरी, 1739 को हुआ था। वह बहुत ही महत्वाकांक्षी चरित्र का व्यक्ति था और भारत की अपार धन-सम्पदा के कारण ही इस ओर आकर्षित हुआ। मुग़ल सेना के साथ हुए नादिरशाह के युद्ध को 'करनाल के युद्ध' के नाम से जाना जाता है।

भारत की ओर आकर्षित

नादिरशाह के आक्रमण के समय मुग़ल साम्राज्य के विघटन के साथ-साथ उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर सुरक्षा प्रबन्ध भी ढीले हो गए थे। इस दौरान भारत पर पश्चिम से दो विदेशी आक्रमण हुए। पहले का नेतृत्व नादिरशाह ने और दूसरे का नेतृत्व अहमदशाह अब्दाली ने किया। नादिरशाह फ़ारस का शासक था और भारत के अपार धन ने ही उसे आक्रमण करने के लिए आकर्षित किया था। अपनी भाड़े की फ़ौज को बनाए रखने के लिए उसे पैसों की आवश्यकता थी। भारत से लूटा गया धन इस समस्या का हल हो सकता था। साथ ही मुग़ल साम्राज्य की कमज़ोरी ने इस लूट को और भी आसान कर दिया।

आक्रमण

11 जून, 1738 को नादिरशाह ने ग़ज़नी नगर में प्रवेश किया। इसके फलस्वरूप 29 जून, 1738 को उसने काबुल पर अधिकार कर लिया। इसके बाद आगे बढ़ते हुए नादिरशाह ने अटक के स्थान पर सिन्धु नदी को पार कर लाहौर में प्रवेश किया। मुग़ल गर्वनर 'जकारिया ख़ाँ' ने बिना युद्ध किए ही हथियार डाल दिये और 20 लाख रुपये तथा अपने हाथी नज़राने में देकर स्वयं को और लाहौर का और 'नासिर ख़ाँ' को काबुल और पेशावर का गर्वनर नियुक्त किया। 16 फ़रवरी, 1739 को नादिरशाह सरहिन्द पहुँचा। सरहिन्द से अम्बाला, अम्बाला से अजीमाबाद और फिर करनाल की ओर कूच किया, जहाँ उसका मुग़ल सेना के साथ युद्ध हुआ। यह युद्ध 'भारतीय इतिहास' में 'करनाल के युद्ध' के नाम से प्रसिद्ध है।


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