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'''नीरजा''' [[महादेवी वर्मा]] का तीसरा कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन 1934 में हुआ। इसमें 1931 से 1934 तक की रचनाएँ हैं। नीरजा में [[रश्मि -महादेवी वर्मा|रश्मि]] का चिन्तन और दर्शन अधिक स्पष्ट और प्रौढ़ होता है। कवयित्री सुख-दु:ख में समन्वय स्थापित करती हुई पीड़ा एवं वेदना में आनन्द की अनुभूति करती है। | '''नीरजा''' [[महादेवी वर्मा]] का तीसरा कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन [[1934]] में हुआ। इसमें [[1931]] से 1934 तक की रचनाएँ हैं। नीरजा में [[रश्मि -महादेवी वर्मा|रश्मि]] का चिन्तन और दर्शन अधिक स्पष्ट और प्रौढ़ होता है। कवयित्री सुख-दु:ख में समन्वय स्थापित करती हुई पीड़ा एवं वेदना में आनन्द की अनुभूति करती है। महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिए 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, प्राप्त हुआ। | ||
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‘नीरजा’ में बिलकुल परिपक्व भाषा में एक समर्थ कवि बड़े अधिकार के साथ और बड़े सहज भाव से अपनी बात कहता है। महादेवी जी के अनुसार ‘नीरजा’ में जाकर गीति का तत्त्व आ गया मुझमें और मैंने मानों दिशा भी पा ली है।’’ | ‘नीरजा’ में बिलकुल परिपक्व [[भाषा]] में एक समर्थ [[कवि]] बड़े अधिकार के साथ और बड़े सहज भाव से अपनी बात कहता है। महादेवी जी के अनुसार ‘नीरजा’ में जाकर गीति का तत्त्व आ गया मुझमें और मैंने मानों दिशा भी पा ली है।’’ | ||
प्रस्तुत गीत-काव्य ‘नीरजा’ में ‘निहार’ का उपासना-भाव और भी सुस्पष्टता और तन्मयता से जाग्रत हो उठा है। इसमें अपने उपास्य के लिए केवल आत्मा की करुण अधीरता ही नहीं, अपितु हृदय की विह्लल प्रसन्नता भी मिश्रित है। ‘नीरजा’ यदि अश्रुमुख वेदना के कणों से भीगी हुई है, तो साथ ही आत्मानन्द के मधु से मधुर भी है। मानो, कवि की वेदना, कवि की करुणा, अपने उपास्य के चरण–स्पर्श से पूत होकर आकाश-गंगा की भाँति इस छायामय जग को सींचने में ही अपनी सार्थकता समझ रही है।<br /> | प्रस्तुत गीत-काव्य ‘नीरजा’ में ‘निहार’ का उपासना-भाव और भी सुस्पष्टता और तन्मयता से जाग्रत हो उठा है। इसमें अपने उपास्य के लिए केवल आत्मा की करुण अधीरता ही नहीं, अपितु हृदय की विह्लल प्रसन्नता भी मिश्रित है। ‘नीरजा’ यदि अश्रुमुख वेदना के कणों से भीगी हुई है, तो साथ ही आत्मानन्द के मधु से मधुर भी है। मानो, कवि की वेदना, कवि की करुणा, अपने उपास्य के चरण–स्पर्श से पूत होकर आकाश-गंगा की भाँति इस छायामय जग को सींचने में ही अपनी सार्थकता समझ रही है।<br /> | ||
‘नीरजा’ के गीतों में संगीत का बहुत सुन्दर प्रवाह है। [[हृदय]] के अमूर्त भावों को भी, नव–नव उपमाओं एवं रूपकों द्वारा कवि ने बड़ी मधुरता से एक-एक सजीव स्वरूप प्रदान कर दिया है। भाषा सुन्दर, कोमल, मधुर और सुस्निग्ध है। इसके अनेक गीत अपनी मार्मिकता के कारण सहज ही हृदयंगम हो जाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=3271# |title=नीरजा |accessmonthday=31 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language= हिंदी}} </ref> | ‘नीरजा’ के गीतों में संगीत का बहुत सुन्दर प्रवाह है। [[हृदय]] के अमूर्त भावों को भी, नव–नव उपमाओं एवं रूपकों द्वारा कवि ने बड़ी मधुरता से एक-एक सजीव स्वरूप प्रदान कर दिया है। भाषा सुन्दर, कोमल, मधुर और सुस्निग्ध है। इसके अनेक गीत अपनी मार्मिकता के कारण सहज ही हृदयंगम हो जाते हैं।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=3271# |title=नीरजा |accessmonthday=31 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language= हिंदी}} </ref> | ||
04:37, 2 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
नीरजा -महादेवी वर्मा
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कवि | महादेवी वर्मा |
प्रकाशन तिथि | 1934 (पहला संस्करण) |
ISBN | 0000 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
प्रकार | काव्य संग्रह |
मुखपृष्ठ रचना | अजिल्द |
नीरजा महादेवी वर्मा का तीसरा कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन 1934 में हुआ। इसमें 1931 से 1934 तक की रचनाएँ हैं। नीरजा में रश्मि का चिन्तन और दर्शन अधिक स्पष्ट और प्रौढ़ होता है। कवयित्री सुख-दु:ख में समन्वय स्थापित करती हुई पीड़ा एवं वेदना में आनन्द की अनुभूति करती है। महादेवी वर्मा को ‘नीरजा’ के लिए 1934 में ‘सक्सेरिया पुरस्कार’, प्राप्त हुआ।
सारांश
‘नीरजा’ में बिलकुल परिपक्व भाषा में एक समर्थ कवि बड़े अधिकार के साथ और बड़े सहज भाव से अपनी बात कहता है। महादेवी जी के अनुसार ‘नीरजा’ में जाकर गीति का तत्त्व आ गया मुझमें और मैंने मानों दिशा भी पा ली है।’’
प्रस्तुत गीत-काव्य ‘नीरजा’ में ‘निहार’ का उपासना-भाव और भी सुस्पष्टता और तन्मयता से जाग्रत हो उठा है। इसमें अपने उपास्य के लिए केवल आत्मा की करुण अधीरता ही नहीं, अपितु हृदय की विह्लल प्रसन्नता भी मिश्रित है। ‘नीरजा’ यदि अश्रुमुख वेदना के कणों से भीगी हुई है, तो साथ ही आत्मानन्द के मधु से मधुर भी है। मानो, कवि की वेदना, कवि की करुणा, अपने उपास्य के चरण–स्पर्श से पूत होकर आकाश-गंगा की भाँति इस छायामय जग को सींचने में ही अपनी सार्थकता समझ रही है।
‘नीरजा’ के गीतों में संगीत का बहुत सुन्दर प्रवाह है। हृदय के अमूर्त भावों को भी, नव–नव उपमाओं एवं रूपकों द्वारा कवि ने बड़ी मधुरता से एक-एक सजीव स्वरूप प्रदान कर दिया है। भाषा सुन्दर, कोमल, मधुर और सुस्निग्ध है। इसके अनेक गीत अपनी मार्मिकता के कारण सहज ही हृदयंगम हो जाते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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