"दिशाकाक": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Crow-on-boat.jpg|thumb|300px|नाव पर बैठा कौआ]]
* पुराने समय में जब नाविक समुद्री यात्राओं पर जाते थे तो अपने साथ काक (कौए) लेकर जाते थे।
* पुराने समय में जब नाविक समुद्री यात्राओं पर जाते थे तो अपने साथ काक (कौए) लेकर जाते थे।
* दिशा काक समुद्र यात्रा के समय किनारे का पता लगाने के लिए छोड़ा जाता था।
* दिशा काक समुद्र यात्रा के समय किनारे का पता लगाने के लिए छोड़ा जाता था।
* बीच समुद्र में कौए छोड़कर पास में भूमि के होने का पता लगाया जाता था।
* बीच समुद्र में कौए छोड़कर पास में भूमि के होने का पता लगाया जाता था।
* यदि काक वापस जहाज पर लौटकर आ जाता था तो यह समझ लिया जाता था कि पास में भूमि नहीं है। इसी से सम्भवत: यह कहावत बनी - ''जैसे उरि जहाज को पंछी फिर जहाज को आवे'<ref>मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे... जैसे उरि जहाज को पंछी फिर जहाज को आवे....[[सूरदास]]</ref>
* यदि काक वापस जहाज़ पर लौटकर आ जाता था तो यह समझ लिया जाता था कि पास में भूमि नहीं है। इसी से सम्भवत: यह कहावत बनी - ''जैसे उरि जहाज़ को पंछी फिर जहाज़ को आवे'<ref>मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे... जैसे उरि जहाज़ को पंछी फिर जहाज़ को आवे....[[सूरदास]]</ref>
* कौए के ना लौटकर आने की स्थिति में नाव या जहाज को उसी दिशा में ले जाते थे, जिधर कौआ गया था।   
* कौए के ना लौटकर आने की स्थिति में नाव या जहाज़ को उसी दिशा में ले जाते थे, जिधर कौआ गया था।   
* प्राचीन समय में [[वाराणसी]] से [[गंगा नदी]] के द्वारा सुदूर तक वाणिज्य व्यापार किया जाता था।
* प्राचीन समय में [[वाराणसी]] से [[गंगा नदी]] के द्वारा सुदूर तक [[वाणिज्य]] व्यापार किया जाता था।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|प्रारम्भिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
{{भूले बिसरे शब्द}}
{{भूले बिसरे शब्द}}
[[Category:वाराणसी]][[Category:वाणिज्य व्यापार कोश]]
[[Category:वाराणसी]][[Category:वाणिज्य व्यापार कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

09:52, 10 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

नाव पर बैठा कौआ
  • पुराने समय में जब नाविक समुद्री यात्राओं पर जाते थे तो अपने साथ काक (कौए) लेकर जाते थे।
  • दिशा काक समुद्र यात्रा के समय किनारे का पता लगाने के लिए छोड़ा जाता था।
  • बीच समुद्र में कौए छोड़कर पास में भूमि के होने का पता लगाया जाता था।
  • यदि काक वापस जहाज़ पर लौटकर आ जाता था तो यह समझ लिया जाता था कि पास में भूमि नहीं है। इसी से सम्भवत: यह कहावत बनी - जैसे उरि जहाज़ को पंछी फिर जहाज़ को आवे'[1]
  • कौए के ना लौटकर आने की स्थिति में नाव या जहाज़ को उसी दिशा में ले जाते थे, जिधर कौआ गया था।
  • प्राचीन समय में वाराणसी से गंगा नदी के द्वारा सुदूर तक वाणिज्य व्यापार किया जाता था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे... जैसे उरि जहाज़ को पंछी फिर जहाज़ को आवे....सूरदास

संबंधित लेख