"श्राद्ध वर्जना": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{{पुनरीक्षण}} विष्णुधर्मसूत्र<ref>विष्णुधर्मसूत्र (अध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(7 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{अस्वीकरण}}
विष्णुधर्मसूत्र<ref>विष्णुधर्मसूत्र (अध्याय 84)</ref> ने व्यवस्था दी है कि म्लेच्छदेश में न तो [[श्राद्ध]] करना चाहिए और न ही जाना चाहिए; उसमें पुन: कहा गया है कि म्लेच्छदेश वह है जिसमें चार वर्णों की परम्परा नहीं पायी जाती है। वायु पुराण ने व्यवस्था दी है कि त्रिशंकु देश, जिसका बारह योजन विस्तार है, जो कि [[महानदी]] के उत्तर और कीकट (मगध) के दक्षिण में है, श्राद्ध के लिए योग्य नहीं हैं। इसी प्रकार कारस्कर, कलिंग, सिंधु के उत्तर का देश और वे सभी देश जहाँ वर्णाश्रम की व्यवस्था नहीं पायी जाती है, श्राद्ध के लिए यथासाध्य त्याग देने चाहिए। ब्रह्मपुराण<ref>ब्रह्मपुराण (220|8-10)</ref> ने कुछ सीमा तक एक विचित्र बात कही है कि निम्नलिखित देशों में श्राद्ध कर्म का यथासम्भव परिहार करना चाहिए–किरात देश, कलिंग, [[कोंकण]], क्रिमि (क्रिवि?), दशार्ण, कुमार्य (कुमारी अन्तरीप), तंगण, क्रथ, [[सिंधु नदी]] के उत्तरी तट, नर्मदा का दक्षिणी तट एवं करतोया का पूर्वी भाग।  
{{सूचना बक्सा त्योहार
|चित्र=Shradh-Kolaj.jpg
|चित्र का नाम= श्राद्ध कर्म में पूजा करते ब्राह्मण
|अन्य नाम =
|अनुयायी =सभी [[हिन्दू धर्म|हिन्दू धर्मावलम्बी]]
|उद्देश्य = [[श्राद्ध]] पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को 'श्राद्ध' कहते हैं।।
|प्रारम्भ = वैदिक-पौराणिक
|तिथि=[[भाद्रपद]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[पूर्णिमा]] से [[सर्वपितृ अमावस्या]] अर्थात [[आश्विन]] [[कृष्ण पक्ष]] [[अमावस्या]] तक
|उत्सव =
|अनुष्ठान =श्राद्ध-कर्म में पके हुए [[चावल]], [[दूध]] और [[तिल]] को मिश्रित करके जो 'पिण्ड' बनाते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं। यह प्रतीकात्मक अनुष्ठान जिन जिन लोगों के गुणसूत्र (जीन्स) श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में हैं, उनकी तृप्ति के लिए होता है।
|धार्मिक मान्यता =
|प्रसिद्धि =
|संबंधित लेख=[[पितृ पक्ष]], [[श्राद्ध के नियम]], [[अन्वष्टका कृत्य (श्राद्ध)|अन्वष्टका कृत्य]], [[अष्टका कृत्य (श्राद्ध)|अष्टका कृत्य]], [[अन्वाहार्य श्राद्ध]], [[विसर्जन (श्राद्ध)|श्राद्ध विसर्जन]], [[पितृ विसर्जन अमावस्या]], [[तर्पण (श्राद्ध)|तर्पण]], [[माध्यावर्ष कृत्य (श्राद्ध)|माध्यावर्ष कृत्य]], [[मातामह श्राद्ध]], [[पितर]], [[श्राद्ध और ग्रहण]], [[श्राद्ध करने का स्थान]], [[श्राद्ध की आहुति]], [[श्राद्ध की कोटियाँ]], [[श्राद्ध की महत्ता]], [[श्राद्ध प्रपौत्र द्वारा]], [[श्राद्ध फलसूची]], [[श्राद्ध विधि (संक्षिप्त)|श्राद्ध विधि]], [[पिण्ड (श्राद्ध)|पिण्डदान]], [[गया]], [[नासिक]], [[आदित्य देवता]] और [[रुद्र|रुद्र देवता]]
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=[[ब्रह्म पुराण]] के अनुसार श्राद्ध की परिभाषा- 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को दिया जाता है', श्राद्ध कहलाता है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
[[विष्णु धर्मसूत्र]]<ref>[[विष्णु धर्मसूत्र]] (अध्याय 84</ref> ने व्यवस्था दी है कि म्लेच्छदेश में न तो [[श्राद्ध]] करना चाहिए और न ही जाना चाहिए; उसमें पुन: कहा गया है कि म्लेच्छ देश वह है जिसमें [[वर्ण व्यवस्था|चार वर्णों]] की परम्परा नहीं पायी जाती है। [[वायु पुराण]] ने व्यवस्था दी है कि त्रिशंकु देश, जिसका बारह [[योजन]] विस्तार है, जो कि [[महानदी]] के उत्तर और कीकट<ref> [[मगध]]</ref> के दक्षिण में है, श्राद्ध के लिए योग्य नहीं हैं। इसी प्रकार कारस्कर, [[कलिंग]], सिंधु के उत्तर का देश और वे सभी देश जहाँ वर्णाश्रम की व्यवस्था नहीं पायी जाती है, श्राद्ध के लिए यथासाध्य त्याग देने चाहिए। [[ब्रह्मपुराण]]<ref>ब्रह्मपुराण (220|8-10</ref> ने कुछ सीमा तक एक विचित्र बात कही है कि निम्नलिखित देशों में श्राद्ध कर्म का यथासम्भव परिहार करना चाहिए–किरात देश, [[कलिंग]], [[कोंकण]], क्रिमि (क्रिवि?), दशार्ण, कुमार्य (कुमारी अन्तरीप), तंगण, क्रथ, [[सिंधु नदी]] के उत्तरी तट, [[नर्मदा नदी]] का दक्षिणी तट एवं करतोया का पूर्वी भाग।  


मार्कण्डेयपुराण<ref>मार्कण्डेयपुराण (29|19=श्राद्ध प्र., पृ. 139)</ref> ने व्यवस्था दी है कि श्राद्ध के लिए उस भूमि को त्याग देना चाहिए जो कि कीट-पतंगों से युक्त, रूक्ष, अग्नि से दग्ध है, जिसमें कर्णकटु ध्वनि होती है, जो कि देखने में भयंकर और दुर्गन्धपूर्ण है। प्राचीन काल से ही कुछ व्यक्तियों एवं पशुओं को श्राद्धस्थल से दूर रखने को कहा गया है, उन्हें श्राद्धकृत्य को देखने या अन्य प्रकारों से विघ्न डालने की अनुमति नहीं है। गौतम<ref>गौतम (15|25-28)</ref> ने व्यवस्था दी है कि कुत्तों, चाण्डालों एवं महापातकों के अपराधियों से देखा गया भोजन अपवित्र (अयोग्य) हो जाता है, इसलिए श्राद्ध कर्म कम घिरे हुए स्थल में किया जाना चाहिए; या कर्ता को उस स्थल के चतुर्दिक तिल बिखेर देने चाहिए या कियी योग्य ब्राह्मण को, जो अपनी उपस्थिति से पंक्ति को पवित्र कर देता है, उस दोष (कुत्ता या चाण्डाल द्वारा देखे गये भोजन आदि दोष) को दूर करने के लिए शान्ति का सम्पादन करना चाहिए।  
[[मार्कण्डेय पुराण]]<ref>[[मार्कण्डेय पुराण]] (29|19=श्राद्ध प्र., पृ. 139</ref> ने व्यवस्था दी है कि श्राद्ध के लिए उस भूमि को त्याग देना चाहिए जो कि कीट-पतंगों से युक्त, रूक्ष, अग्नि से दग्ध है, जिसमें कर्णकटु ध्वनि होती है, जो कि देखने में भयंकर और दुर्गन्धपूर्ण है। प्राचीन काल से ही कुछ व्यक्तियों एवं पशुओं को श्राद्धस्थल से दूर रखने को कहा गया है, उन्हें श्राद्धकृत्य को देखने या अन्य प्रकारों से विघ्न डालने की अनुमति नहीं है। [[गौतम]]<ref>गौतम (15|25-28</ref> ने व्यवस्था दी है कि कुत्तों, चाण्डालों एवं महापातकों के अपराधियों से देखा गया भोजन अपवित्र (अयोग्य) हो जाता है, इसलिए श्राद्ध कर्म कम घिरे हुए स्थल में किया जाना चाहिए; या कर्ता को उस स्थल के चतुर्दिक तिल बिखेर देने चाहिए या कियी योग्य ब्राह्मण को, जो अपनी उपस्थिति से पंक्ति को पवित्र कर देता है, उस दोष (कुत्ता या चाण्डाल द्वारा देखे गये भोजन आदि दोष) को दूर करने के लिए शान्ति का सम्पादन करना चाहिए।  


आपस्तम्ब धर्मसूत्र ने कहा है कि विद्वान लोगों ने कुत्तों, पतितों, कोढ़ी, खल्वाट व्यक्ति, परदारा से यौन सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति, आयुधजीवी ब्राह्मण के पुत्र तथा शूद्रा से उत्पन्न ब्राह्मणपुत्र द्वारा देखे गये श्राद्ध की भर्त्सना की है–यदि ये लोग श्राद्ध भोजन करते हैं तो वे उस पंक्ति में बैठकर खानेवाले व्यक्तियों को अशुद्ध कर देते हैं। मनु<ref>मनु (3|239-242)</ref> ने कहा है–चाण्डाल, गाँव के सूअर या मुर्गा, कुत्ता, रजस्वला एवं क्लीव को भोजन करते समय ब्राह्मणों को देखने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। इन लोगों के द्वारा यदि होम (अग्निहोत्र), दान ([[गाय]] एवं [[सोना|सोने]] का) कृत्य देख लिया जाए, या जब ब्राह्मण भोजन कर रहे हों या किसी धार्मिक कृत्य (दर्श-पूर्णमास आदि) के समय या श्राद्ध के समय ऐसे लोगों की [[दृष्टि]] पड़ जाये तो सब कुछ फलहीन हो जाता है। सूअर देवों या पितरों के लिए अर्पित भोजन को केवल सुँघकर, मुर्गा भागता हुआ उड़ता हुआ, कुत्ता केवल दृष्टि –निक्षेप से एवं नीच जाति स्पर्श से (उस भोजन को) अशुद्ध कर देते हैं। यदि कर्ता का नौकर लंगड़ा, ऐंचाताना, अधिक या कम अंगवाला (11 या 9 आदि अंगुलियों वाला) हो तो उसे श्राद्ध सम्पादन स्थल से बाहर कर देना चाहिए। अनुशासन पर्व में आया है कि रजस्वला या पुत्रहीन नारी या चरक ग्रस्त (श्वित्री) द्वारा श्राद्धभोजन नहीं देखा जाना चाहिए। विष्णुधर्मसूत्र<ref>विष्णुधर्मसूत्र (82|3)</ref> में श्राद्ध के निकट आने की अनुमति न पानेवाले 30 व्यक्तियों की सूची है। कूर्म पुराण<ref>कूर्म पुराण (2|22|34-35)</ref> का कथन हे कि किसी अंगहीन, पतित, कोढ़ी, पूयव्रण (पके हुए घाव) से ग्रस्त, नास्तिक, मुर्गा, सूअर, कुत्ता आदि को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए; घृणास्पर रूप वाले, अपवित्र, वस्त्रहीन, पागल, जुआरी, रजस्वला, नील रंग या पीत-लोहित वस्त्र धारण करने वालों एवं नास्तिकों को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए। मार्कण्डेयपुराण<ref>मार्कण्डेयपुराण (32|20-24)</ref>, वायु पुराण<ref>वायु पुराण (78|26-40)</ref>, विष्णुपुराण<ref>विष्णुपुराण (3|16|12-14)</ref> एवं अनुशासन पर्व<ref>अनुशासन पर्व (91|43-44)</ref> में भी लम्बी सूचियाँ दी हुई हैं। स्कन्दपुराण<ref>स्कन्दपुराण (6|217|43)</ref> ने भी लिखा है कि कुत्ते, रजस्वला, पतित एवं वराह (सूअर) को श्राद्धकृत्य देखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
[[आपस्तम्ब धर्मसूत्र]] ने कहा है कि विद्वान लोगों ने कुत्तों, पतितों, कोढ़ी, खल्वाट व्यक्ति, परदारा से यौन सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति, आयुधजीवी [[ब्राह्मण]] के पुत्र तथा शूद्रा से उत्पन्न ब्राह्मणपुत्र द्वारा देखे गये श्राद्ध की भर्त्सना की है–यदि ये लोग श्राद्ध भोजन करते हैं तो वे उस पंक्ति में बैठकर खानेवाले व्यक्तियों को अशुद्ध कर देते हैं। [[मनु]]<ref>मनु (3|239-242</ref> ने कहा है–चाण्डाल, गाँव के सूअर या मुर्गा, कुत्ता, रजस्वला एवं क्लीव को भोजन करते समय ब्राह्मणों को देखने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। इन लोगों के द्वारा यदि होम (अग्निहोत्र), दान ([[गाय]] एवं [[सोना|सोने]] का) कृत्य देख लिया जाए, या जब ब्राह्मण भोजन कर रहे हों या किसी धार्मिक कृत्य (दर्श-पूर्णमास आदि) के समय या श्राद्ध के समय ऐसे लोगों की [[दृष्टि]] पड़ जाये तो सब कुछ फलहीन हो जाता है। सूअर देवों या पितरों के लिए अर्पित भोजन को केवल सुँघकर, मुर्गा भागता हुआ उड़ता हुआ, कुत्ता केवल दृष्टि –निक्षेप से एवं नीच जाति स्पर्श से (उस भोजन को) अशुद्ध कर देते हैं। यदि कर्ता का नौकर लंगड़ा, ऐंचाताना, अधिक या कम अंगवाला (11 या 9 आदि अंगुलियों वाला) हो तो उसे श्राद्ध सम्पादन स्थल से बाहर कर देना चाहिए। अनुशासन पर्व में आया है कि रजस्वला या पुत्रहीन नारी या चरक ग्रस्त (श्वित्री) द्वारा श्राद्धभोजन नहीं देखा जाना चाहिए। विष्णुधर्मसूत्र<ref>विष्णुधर्मसूत्र (82|3</ref> में श्राद्ध के निकट आने की अनुमति न पानेवाले 30 व्यक्तियों की सूची है। [[कूर्म पुराण]]<ref>कूर्म पुराण (2|22|34-35</ref> का कथन हे कि किसी [[अंगहीन]], पतित, कोढ़ी, पूयव्रण (पके हुए घाव) से ग्रस्त, नास्तिक, मुर्गा, सूअर, कुत्ता आदि को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए; घृणास्पर रूप वाले, अपवित्र, वस्त्रहीन, पागल, जुआरी, रजस्वला, [[नीला रंग]] या पीत-लोहित वस्त्र धारण करने वालों एवं नास्तिकों को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए। [[मार्कण्डेयपुराण]]<ref>[[मार्कण्डेयपुराण]] (32|20-24</ref>, वायु पुराण<ref>वायु पुराण (78|26-40</ref>, विष्णुपुराण<ref>विष्णुपुराण (3|16|12-14</ref> एवं अनुशासन पर्व<ref>अनुशासन पर्व (91|43-44</ref> में भी लम्बी सूचियाँ दी हुई हैं। [[स्कन्दपुराण]]<ref>स्कन्दपुराण (6|217|43</ref> ने भी लिखा है कि कुत्ते, रजस्वला, पतित एवं वराह (सूअर) को श्राद्धकृत्य देखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
{{प्रचार}}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{श्राद्ध}}
{{श्राद्ध}}
[[Category:हिन्दू धर्मकाण्ड]]
[[Category:हिन्दू कर्मकाण्ड]]
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:संस्कृति कोश]][[Category:श्राद्ध]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

12:13, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण

यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में देखें अस्वीकरण
श्राद्ध वर्जना
श्राद्ध कर्म में पूजा करते ब्राह्मण
श्राद्ध कर्म में पूजा करते ब्राह्मण
अनुयायी सभी हिन्दू धर्मावलम्बी
उद्देश्य श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को 'श्राद्ध' कहते हैं।।
प्रारम्भ वैदिक-पौराणिक
तिथि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से सर्वपितृ अमावस्या अर्थात आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक
अनुष्ठान श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो 'पिण्ड' बनाते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं। यह प्रतीकात्मक अनुष्ठान जिन जिन लोगों के गुणसूत्र (जीन्स) श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में हैं, उनकी तृप्ति के लिए होता है।
संबंधित लेख पितृ पक्ष, श्राद्ध के नियम, अन्वष्टका कृत्य, अष्टका कृत्य, अन्वाहार्य श्राद्ध, श्राद्ध विसर्जन, पितृ विसर्जन अमावस्या, तर्पण, माध्यावर्ष कृत्य, मातामह श्राद्ध, पितर, श्राद्ध और ग्रहण, श्राद्ध करने का स्थान, श्राद्ध की आहुति, श्राद्ध की कोटियाँ, श्राद्ध की महत्ता, श्राद्ध प्रपौत्र द्वारा, श्राद्ध फलसूची, श्राद्ध विधि, पिण्डदान, गया, नासिक, आदित्य देवता और रुद्र देवता
अन्य जानकारी ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध की परिभाषा- 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है', श्राद्ध कहलाता है।

विष्णु धर्मसूत्र[1] ने व्यवस्था दी है कि म्लेच्छदेश में न तो श्राद्ध करना चाहिए और न ही जाना चाहिए; उसमें पुन: कहा गया है कि म्लेच्छ देश वह है जिसमें चार वर्णों की परम्परा नहीं पायी जाती है। वायु पुराण ने व्यवस्था दी है कि त्रिशंकु देश, जिसका बारह योजन विस्तार है, जो कि महानदी के उत्तर और कीकट[2] के दक्षिण में है, श्राद्ध के लिए योग्य नहीं हैं। इसी प्रकार कारस्कर, कलिंग, सिंधु के उत्तर का देश और वे सभी देश जहाँ वर्णाश्रम की व्यवस्था नहीं पायी जाती है, श्राद्ध के लिए यथासाध्य त्याग देने चाहिए। ब्रह्मपुराण[3] ने कुछ सीमा तक एक विचित्र बात कही है कि निम्नलिखित देशों में श्राद्ध कर्म का यथासम्भव परिहार करना चाहिए–किरात देश, कलिंग, कोंकण, क्रिमि (क्रिवि?), दशार्ण, कुमार्य (कुमारी अन्तरीप), तंगण, क्रथ, सिंधु नदी के उत्तरी तट, नर्मदा नदी का दक्षिणी तट एवं करतोया का पूर्वी भाग।

मार्कण्डेय पुराण[4] ने व्यवस्था दी है कि श्राद्ध के लिए उस भूमि को त्याग देना चाहिए जो कि कीट-पतंगों से युक्त, रूक्ष, अग्नि से दग्ध है, जिसमें कर्णकटु ध्वनि होती है, जो कि देखने में भयंकर और दुर्गन्धपूर्ण है। प्राचीन काल से ही कुछ व्यक्तियों एवं पशुओं को श्राद्धस्थल से दूर रखने को कहा गया है, उन्हें श्राद्धकृत्य को देखने या अन्य प्रकारों से विघ्न डालने की अनुमति नहीं है। गौतम[5] ने व्यवस्था दी है कि कुत्तों, चाण्डालों एवं महापातकों के अपराधियों से देखा गया भोजन अपवित्र (अयोग्य) हो जाता है, इसलिए श्राद्ध कर्म कम घिरे हुए स्थल में किया जाना चाहिए; या कर्ता को उस स्थल के चतुर्दिक तिल बिखेर देने चाहिए या कियी योग्य ब्राह्मण को, जो अपनी उपस्थिति से पंक्ति को पवित्र कर देता है, उस दोष (कुत्ता या चाण्डाल द्वारा देखे गये भोजन आदि दोष) को दूर करने के लिए शान्ति का सम्पादन करना चाहिए।

आपस्तम्ब धर्मसूत्र ने कहा है कि विद्वान लोगों ने कुत्तों, पतितों, कोढ़ी, खल्वाट व्यक्ति, परदारा से यौन सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति, आयुधजीवी ब्राह्मण के पुत्र तथा शूद्रा से उत्पन्न ब्राह्मणपुत्र द्वारा देखे गये श्राद्ध की भर्त्सना की है–यदि ये लोग श्राद्ध भोजन करते हैं तो वे उस पंक्ति में बैठकर खानेवाले व्यक्तियों को अशुद्ध कर देते हैं। मनु[6] ने कहा है–चाण्डाल, गाँव के सूअर या मुर्गा, कुत्ता, रजस्वला एवं क्लीव को भोजन करते समय ब्राह्मणों को देखने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। इन लोगों के द्वारा यदि होम (अग्निहोत्र), दान (गाय एवं सोने का) कृत्य देख लिया जाए, या जब ब्राह्मण भोजन कर रहे हों या किसी धार्मिक कृत्य (दर्श-पूर्णमास आदि) के समय या श्राद्ध के समय ऐसे लोगों की दृष्टि पड़ जाये तो सब कुछ फलहीन हो जाता है। सूअर देवों या पितरों के लिए अर्पित भोजन को केवल सुँघकर, मुर्गा भागता हुआ उड़ता हुआ, कुत्ता केवल दृष्टि –निक्षेप से एवं नीच जाति स्पर्श से (उस भोजन को) अशुद्ध कर देते हैं। यदि कर्ता का नौकर लंगड़ा, ऐंचाताना, अधिक या कम अंगवाला (11 या 9 आदि अंगुलियों वाला) हो तो उसे श्राद्ध सम्पादन स्थल से बाहर कर देना चाहिए। अनुशासन पर्व में आया है कि रजस्वला या पुत्रहीन नारी या चरक ग्रस्त (श्वित्री) द्वारा श्राद्धभोजन नहीं देखा जाना चाहिए। विष्णुधर्मसूत्र[7] में श्राद्ध के निकट आने की अनुमति न पानेवाले 30 व्यक्तियों की सूची है। कूर्म पुराण[8] का कथन हे कि किसी अंगहीन, पतित, कोढ़ी, पूयव्रण (पके हुए घाव) से ग्रस्त, नास्तिक, मुर्गा, सूअर, कुत्ता आदि को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए; घृणास्पर रूप वाले, अपवित्र, वस्त्रहीन, पागल, जुआरी, रजस्वला, नीला रंग या पीत-लोहित वस्त्र धारण करने वालों एवं नास्तिकों को श्राद्ध से दूर रखना चाहिए। मार्कण्डेयपुराण[9], वायु पुराण[10], विष्णुपुराण[11] एवं अनुशासन पर्व[12] में भी लम्बी सूचियाँ दी हुई हैं। स्कन्दपुराण[13] ने भी लिखा है कि कुत्ते, रजस्वला, पतित एवं वराह (सूअर) को श्राद्धकृत्य देखने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णु धर्मसूत्र (अध्याय 84
  2. मगध
  3. ब्रह्मपुराण (220|8-10
  4. मार्कण्डेय पुराण (29|19=श्राद्ध प्र., पृ. 139
  5. गौतम (15|25-28
  6. मनु (3|239-242
  7. विष्णुधर्मसूत्र (82|3
  8. कूर्म पुराण (2|22|34-35
  9. मार्कण्डेयपुराण (32|20-24
  10. वायु पुराण (78|26-40
  11. विष्णुपुराण (3|16|12-14
  12. अनुशासन पर्व (91|43-44
  13. स्कन्दपुराण (6|217|43

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख