"असंगति अलंकार": अवतरणों में अंतर

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जब कारण और कार्य में संगति न हो, तब वहाँ पर '''असंगति अलंकार''' होता है।
जहाँ आपातत: विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरण्य वर्णित हो, वहाँ '''असंगति अलंकार''' होता है।<ref>विरुद्धत्वेनापाततो भासमानं हेतुकार्यपोर्वेयधिकरण्यमसंगति:॥ -रसगंगाधर, पृ0 589</ref>


;उदाहरण -
*इसमें दो वस्तुओं का वर्णन होता है, जिनमें कारण कार्य सम्बन्ध होता है। इन वस्तुओं की एकदेशीय स्थिति आवश्यक है, लेकिन वर्णन भिन्नदेशत्व का किया जाता है।
*[[रसखान]] के साहित्य में असंगति की योजना अत्यन्त सीमित रूप में हुई है। एक प्रभाव-व्यंजक उदाहरण अवलोकनीय है। [[गोकुल]] के ग्वाल ([[कृष्ण]]) की मनोहर चेष्टाओं पर मुग्ध हुई [[गोपी]] कहती है-


"हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।"
<blockquote><poem>पिचका चलाइ और जुवती भिजाइ नेह,
लोचन नचाइ मेरे अंगहि नचाइ गौ।<ref>सुजान रसखान, 194</ref></poem></blockquote>
 
उपरोक्त पंक्तियों में क्रिया [[कृष्ण]] के नेत्रों में होती है, परन्तु प्रभाव गोपी के अंग पर होता है। उसका अंग-अंग उसके लोल लोचनों के कटाक्ष में नाच उठता है।
 
;अन्य उदाहरण-
 
<blockquote>"हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।"</blockquote>


घाव तो [[लक्ष्मण]] के [[हृदय]] में हैं, पर पीड़ा [[राम]] को है, अत: यहाँ असंगति अलंकार है।<ref>{{cite web |url= http://www.hindigrammarlearn.com/2013/12/hindi-alankaar-figure-of-speech.html|title= हिन्दी व्याकरण|accessmonthday=15|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= हिन्दीग्रामरलर्न.कॉम|language=हिन्दी}}</ref>
घाव तो [[लक्ष्मण]] के [[हृदय]] में हैं, पर पीड़ा [[राम]] को है, अत: यहाँ असंगति अलंकार है।<ref>{{cite web |url= http://www.hindigrammarlearn.com/2013/12/hindi-alankaar-figure-of-speech.html|title= हिन्दी व्याकरण|accessmonthday=15|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= हिन्दीग्रामरलर्न.कॉम|language=हिन्दी}}</ref>

10:42, 15 जुलाई 2014 के समय का अवतरण

जहाँ आपातत: विरोध दृष्टिगत होते हुए, कार्य और कारण का वैयाधिकरण्य वर्णित हो, वहाँ असंगति अलंकार होता है।[1]

  • इसमें दो वस्तुओं का वर्णन होता है, जिनमें कारण कार्य सम्बन्ध होता है। इन वस्तुओं की एकदेशीय स्थिति आवश्यक है, लेकिन वर्णन भिन्नदेशत्व का किया जाता है।
  • रसखान के साहित्य में असंगति की योजना अत्यन्त सीमित रूप में हुई है। एक प्रभाव-व्यंजक उदाहरण अवलोकनीय है। गोकुल के ग्वाल (कृष्ण) की मनोहर चेष्टाओं पर मुग्ध हुई गोपी कहती है-

पिचका चलाइ और जुवती भिजाइ नेह,
लोचन नचाइ मेरे अंगहि नचाइ गौ।[2]

उपरोक्त पंक्तियों में क्रिया कृष्ण के नेत्रों में होती है, परन्तु प्रभाव गोपी के अंग पर होता है। उसका अंग-अंग उसके लोल लोचनों के कटाक्ष में नाच उठता है।

अन्य उदाहरण-

"हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै।"

घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं, पर पीड़ा राम को है, अत: यहाँ असंगति अलंकार है।[3]


इन्हें भी देखें: अलंकार, रस एवं छन्द


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विरुद्धत्वेनापाततो भासमानं हेतुकार्यपोर्वेयधिकरण्यमसंगति:॥ -रसगंगाधर, पृ0 589
  2. सुजान रसखान, 194
  3. हिन्दी व्याकरण (हिन्दी) हिन्दीग्रामरलर्न.कॉम। अभिगमन तिथि: 15, 2014।

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