"वाचिक कविता भोजपुरी -विद्यानिवास मिश्र": अवतरणों में अंतर
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वाचिक कविता भोजपुरी -विद्यानिवास मिश्र
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लेखक | विद्यानिवास मिश्र |
मूल शीर्षक | वाचिक कविता भोजपुरी |
प्रकाशक | भारतीय ज्ञानपीठ |
प्रकाशन तिथि | 1 फ़रवरी, 2003 |
ISBN | 81-263-0954-7 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 96 |
भाषा | हिंदी |
विधा | निबंध संग्रह |
विशेष | विद्यानिवास मिश्र जी के अभूतपूर्व योगदान के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था। |
वाचिक कविता भोजपुरी हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और जाने माने भाषाविद विद्यानिवास मिश्र का निबंध संग्रह है।
सारांश
भारतीय काव्य किसी न किसी रूप में वाचिक संस्कार से अभी तक सुवसित है। कविता की वाचिकता अभी भी है, और वह लोक में आदर भी पाती है। लेकिन साथ ही वाचिकता का जो सम्बन्ध अनुष्ठान की पवित्रता से था, वह कम भी हुआ है। बहुत कम लोग हैं जो रस लेकर वाचिक काव्य को सुनते हैं। ऐसी स्थिति में ‘वाचिक कविताः भोजपुरी’ के प्रकाशन का एक विशेष अर्थ है। प्रख्यात विद्वान डॉ. विद्यानिवास मिश्र द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में अवधी की वाचिक परंपरा से जीवन्त-जाग्रत कविताएँ संकलित हैं। ये कविताएँ हृदयस्पर्शी तो हैं ही, अभिव्यक्ति के सलोनेपन के कारण अच्छी से अच्छी, बाँकी से बाँकी कविता के सामने एक चुनौती भी हैं। गीत की दृष्टि से समृद्ध अवधी की वाचिक परम्परा का यह संकलन सर्वथा प्रासंगिक है।
भूमिका
भारतीय संस्कृति-मात्र वाचिक परम्परा की परिणित है, पर भारतीय काव्य किसी-न-किसी रूप में वाचिक संस्कार से अभी तक सुवासित है। कविता की वाचिकता किसी-न-किसी रूप में अभी भी है, लोक में आदर पाती है। यह अवश्य है कि वाचिकता का सम्बन्ध अनुष्ठान की पवित्रता से था वह काफ़ी-कुछ कम हो गया है। लोकगीतों को लोग अब अनुष्ठान के साथ सुनने के बजाय या तो कैसेट पर सुनना चाहते हैं या फिर उसकी सामाजिक शव-परीक्षा करना चाहते हैं। रस लेकर उन गीतों को तभी सुना जा सकता है जब उचित सन्दर्भ में रखकर देखें। वह होता नहीं इसलिए अधिक-से-अधिक हमारी दया-दृष्टि ही ऐसे साहित्य पर पड़ती है; थोड़े-से लोग हैं जिनकी कृपा-दृष्टि भी पड़ती है पर वे उसका उपयोग छिछली रूमानियत में ही करके सन्तुष्ट हो जाते हैं या फिर, उनमें अगर कोई करुण कथा है तो उसका उपयोग समाजशास्त्रीय व्याख्या के लिए करने लगते हैं। बहुत कम लोग हैं जो लेकर इस वाचिक काव्य को सुनते हैं और सुनते हैं तो उनकी आँखें नम होती हैं। ऐसे ही लोगों पर भरोसा करके प्रस्तुत संकलन तैयार हुआ है। हमारी कोशिश वाचिक परम्परा से जीवन्त-जाग्रत रचनाएं सुनने की रही है; अभिव्यक्ति के सलोनेपन से अच्छी-से-अच्छी, बाँकी-से-बाँकी कविता को पानी भरानेवाले हैं। कोई चाहे तो इन रचनाओं के शिल्प और बिम्ब-विधान में ही रमे, अभी तक उसमें भी रमने का कोई सिलसिला चला नहीं है। बरसों पहले मैंने सत्यव्रत अवस्थी की पुस्तक की भूमिका के रूप में शिल्प-विधान पर कुछ लिखा था, पर वह शास्त्र तो था नहीं वह लोक-साहित्य के अध्येताओं द्वारा भी अनदेखा ही रहा। आज हिन्दी क्षेत्र की लोकभाषाओं में गीत की दृष्टि से सबसे समृद्ध भोजपुरी की वाचिक परम्परा का संकलन तैयार करते हुए प्रासंगिक लगता है कि उस निबन्ध का एक बड़ा अंश यहां देखा जाए। [1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाचिक कविता भोजपुरी (हिंदी) pustak.org। अभिगमन तिथि: 9 अगस्त, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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