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[[भारत]] में कृषि करने वाला किसान जब खेत में हल चलाता है तब हल जोतने के लिए दो बैल या दो भैंसे चाहिए होते हैं। सामान्यत: हल चलाते समय बाँये (अंदर वाले) बैल को ‘आ:' और दाँये (बाहरी) को तिक कहा जाता है और यही दोनों शब्द इनको क़ाबू करने के लिए भी बोले जाते हैं। बैल ज़्यादा समझदार होते हैं वे अधिक आसानी से समझ लेते हैं।<ref>भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी की फ़ेसबुक वॉल से उद्धृत </ref> | [[भारत]] में कृषि करने वाला किसान जब खेत में [[हल]] चलाता है तब हल जोतने के लिए दो बैल या दो भैंसे चाहिए होते हैं। सामान्यत: हल चलाते समय बाँये (अंदर वाले) बैल को ‘आ:' और दाँये (बाहरी) को तिक कहा जाता है और यही दोनों शब्द इनको क़ाबू करने के लिए भी बोले जाते हैं। बैल ज़्यादा समझदार होते हैं वे अधिक आसानी से समझ लेते हैं।<ref>भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी की फ़ेसबुक वॉल से उद्धृत </ref> | ||
09:26, 27 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
भारत में कृषि करने वाला किसान जब खेत में हल चलाता है तब हल जोतने के लिए दो बैल या दो भैंसे चाहिए होते हैं। सामान्यत: हल चलाते समय बाँये (अंदर वाले) बैल को ‘आ:' और दाँये (बाहरी) को तिक कहा जाता है और यही दोनों शब्द इनको क़ाबू करने के लिए भी बोले जाते हैं। बैल ज़्यादा समझदार होते हैं वे अधिक आसानी से समझ लेते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी की फ़ेसबुक वॉल से उद्धृत