No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=पाशुपत|लेख का नाम=कालिंदी (बहुविकल्पी)}} | |||
'''कालिंदी''' [[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की आठवीं पत्नी थी। इसे [[सूर्य देव|सूर्य]] की पुत्री कहा गया है, जो श्रीकृष्ण की खोज में वनों में घूमती थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= |संपादन=राणा प्रसाद शर्मा|पृष्ठ संख्या=107|url=}}</ref> | '''कालिंदी''' [[श्रीकृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की आठवीं पत्नी थी। इसे [[सूर्य देव|सूर्य]] की पुत्री कहा गया है, जो श्रीकृष्ण की खोज में वनों में घूमती थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= |संपादन=राणा प्रसाद शर्मा|पृष्ठ संख्या=107|url=}}</ref> | ||
07:17, 23 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
पाशुपत | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- कालिंदी (बहुविकल्पी) |
कालिंदी भगवान श्रीकृष्ण की आठवीं पत्नी थी। इसे सूर्य की पुत्री कहा गया है, जो श्रीकृष्ण की खोज में वनों में घूमती थी।[1]
- कालिंदी ने अर्जुन से कह श्रीकृष्ण से विवाह किया था।
- द्रौपदी ने कालिंदी का हस्तिनापुर में स्वागत किया था, जिससे इसने अपने विवाह का रहस्य कहा।[2]
इन्हें भी देखें: रुक्मिणी, सत्यभामा एवं जांबवती
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
|