"परिमल -सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (परिमल निराला का नाम बदलकर परिमल -निराला कर दिया गया है)
छो (Text replacement - "संगृहीत" to "संग्रहीत")
 
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''परिमल''' [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला|सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']] का काव्य-संग्रह है। 1922 ई. में 'अनामिका' नाम से उनका एक काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुका था। इस दृष्टि से यह द्वितीय काव्य-ग्रंथ है। पर इसमें संग्रहीत कविताओं की रचना-तिथियों को देखते हुए इसे प्रथम संग्रह माना जा सकता है।  
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Blank-image-book.jpg
|चित्र का नाम=
|लेखक= [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']]
|कवि=
|मूल शीर्षक = परिमल
|मुख्य पात्र = 
|कथानक = 
|अनुवादक =
|संपादक =
|प्रकाशक = 
|प्रकाशन_तिथि = [[1921]] ई.
|भाषा = [[हिंदी]]
|देश = [[भारत]]
|विषय =
|शैली =
|मुखपृष्ठ_रचना = 
|विधा = [[काव्य संग्रह|काव्य-संग्रह]]
|प्रकार =
|पृष्ठ = 
|ISBN =
|भाग =
|विशेष = निराला जी का यह द्वितीय काव्य-ग्रंथ है पर इसमें संग्रहीत [[कविता|कविताओं]] की रचना-तिथियों को देखते हुए इसे प्रथम संग्रह माना जा सकता है।
|टिप्पणियाँ =
}}
'''परिमल''' [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला|सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']] का काव्य-संग्रह है। इससे पहले 'अनामिका' नाम से उनका एक काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुका था। इस दृष्टि से यह द्वितीय काव्य-ग्रंथ है। पर इसमें संग्रहीत [[कविता|कविताओं]] की रचना-तिथियों को देखते हुए इसे प्रथम संग्रह माना जा सकता है।  
;प्रकाशन
;प्रकाशन
परिमल का प्रकाशन 1921 ई. में हुआ। इस संग्रह में 'जुही की कली' जैसी कविता भी, जो 1916 ई. में लिखी गयी, संगृहीत है। पर सामान्यत: 'मतवाला'<ref>सन 1924-1925 ई.</ref> में प्रकाशित अधिकांश कविताओं का ही संग्रह इसमें किया गया है।  
परिमल का प्रकाशन 1921 ई. में हुआ। इस संग्रह में 'जुही की कली' जैसी कविता भी, जो 1916 ई. में लिखी गयी, संग्रहीत है। पर सामान्यत: 'मतवाला'<ref>सन 1924-1925 ई.</ref> में प्रकाशित अधिकांश कविताओं का ही संग्रह इसमें किया गया है।  
;निराला का प्रगतिशील दृष्टिकोण
;निराला का प्रगतिशील दृष्टिकोण
'निराला' की बहुवस्तु-स्पर्शिनी प्रतिभा, प्रगतिशील दृष्टिकोण, दर्शनिक तथा बौद्धिक विचारधारा का परिचय 'परिमल' में संगृहीत रचनाओं से मिलने लगता है। [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] ने छायावादियों के सम्बन्ध में भाव-भूमि के संकोच का जो उल्लेख किया है, वह 'निराला' में नहीं पाया जाता। इस काव्य-संग्रह के तीन खण्ड में स्वच्छन्द [[छन्द]] का प्रयोग किया गया है तो तृतीय में मुक्तवृत का।
'निराला' की बहुवस्तु-स्पर्शिनी प्रतिभा, प्रगतिशील दृष्टिकोण, दार्शनिक तथा बौद्धिक विचारधारा का परिचय 'परिमल' में संग्रहीत रचनाओं से मिलने लगता है। [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] ने छायावादियों के सम्बन्ध में भाव-भूमि के संकोच का जो उल्लेख किया है, वह 'निराला' में नहीं पाया जाता। इस काव्य-संग्रह के तीन खण्ड में स्वच्छन्द [[छन्द]] का प्रयोग किया गया है तो तृतीय में मुक्तवृत का।
;नवीन दृष्टिकोण
;नवीन दृष्टिकोण
भारतीय लोकहितवाद के आन्दोलन की ओर अपने सम-सामयिक कवियों में 'निराला' सबसे पहले उन्मुख हुए। 'परिमल' की भिक्षुक, दीन, विधवा, बादल राग आदि कविताएँ उनके नवीन दृष्टिकोण की सूचना देने के साथ-साथ उनके अप्रतिम भावोन्मेष को भी प्रकट करती है। यह उनके उद्दाम यौवन का काल था। उसकी प्रखर धारा में अवरोधों का टिकना सम्भव न था-"बहने दो, रोक-टोक से कभी नहीं रुकती है, यौवन मदकी बाढ़ नदी की, किसे देख झुकती है।"  
भारतीय लोकहितवाद के आन्दोलन की ओर अपने सम-सामयिक कवियों में 'निराला' सबसे पहले उन्मुख हुए। 'परिमल' की भिक्षुक, दीन, विधवा, बादल राग आदि कविताएँ उनके नवीन दृष्टिकोण की सूचना देने के साथ-साथ उनके अप्रतिम भावोन्मेष को भी प्रकट करती है। यह उनके उद्दाम यौवन का काल था। उसकी प्रखर धारा में अवरोधों का टिकना सम्भव न था-"बहने दो, रोक-टोक से कभी नहीं रुकती है, यौवन मदकी बाढ़ नदी की, किसे देख झुकती है।"  
पंक्ति 10: पंक्ति 35:




 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{आधुनिक साहित्यिक रचनाएँ}}
[[Category:नया पन्ना अक्टूबर-2011]]
[[Category:साहित्य कोश]][[Category:काव्य कोश]]
 
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:छायावादी युग]]
[[Category:आधुनिक साहित्य]]
[[Category:आधुनिक साहित्य]]
[[Category:सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला]]
[[Category:सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला]]
__INDEX__
__INDEX__

08:24, 21 मई 2017 के समय का अवतरण

परिमल -सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
लेखक सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
प्रकाशन तिथि 1921 ई.
देश भारत
भाषा हिंदी
विधा काव्य-संग्रह
विशेष निराला जी का यह द्वितीय काव्य-ग्रंथ है पर इसमें संग्रहीत कविताओं की रचना-तिथियों को देखते हुए इसे प्रथम संग्रह माना जा सकता है।

परिमल सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का काव्य-संग्रह है। इससे पहले 'अनामिका' नाम से उनका एक काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुका था। इस दृष्टि से यह द्वितीय काव्य-ग्रंथ है। पर इसमें संग्रहीत कविताओं की रचना-तिथियों को देखते हुए इसे प्रथम संग्रह माना जा सकता है।

प्रकाशन

परिमल का प्रकाशन 1921 ई. में हुआ। इस संग्रह में 'जुही की कली' जैसी कविता भी, जो 1916 ई. में लिखी गयी, संग्रहीत है। पर सामान्यत: 'मतवाला'[1] में प्रकाशित अधिकांश कविताओं का ही संग्रह इसमें किया गया है।

निराला का प्रगतिशील दृष्टिकोण

'निराला' की बहुवस्तु-स्पर्शिनी प्रतिभा, प्रगतिशील दृष्टिकोण, दार्शनिक तथा बौद्धिक विचारधारा का परिचय 'परिमल' में संग्रहीत रचनाओं से मिलने लगता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने छायावादियों के सम्बन्ध में भाव-भूमि के संकोच का जो उल्लेख किया है, वह 'निराला' में नहीं पाया जाता। इस काव्य-संग्रह के तीन खण्ड में स्वच्छन्द छन्द का प्रयोग किया गया है तो तृतीय में मुक्तवृत का।

नवीन दृष्टिकोण

भारतीय लोकहितवाद के आन्दोलन की ओर अपने सम-सामयिक कवियों में 'निराला' सबसे पहले उन्मुख हुए। 'परिमल' की भिक्षुक, दीन, विधवा, बादल राग आदि कविताएँ उनके नवीन दृष्टिकोण की सूचना देने के साथ-साथ उनके अप्रतिम भावोन्मेष को भी प्रकट करती है। यह उनके उद्दाम यौवन का काल था। उसकी प्रखर धारा में अवरोधों का टिकना सम्भव न था-"बहने दो, रोक-टोक से कभी नहीं रुकती है, यौवन मदकी बाढ़ नदी की, किसे देख झुकती है।"

भाषा शैली

'परिमल' के भाषा सहज, मधुर तथा आकर्षक है। अभी उससे अलंकृति का स्पर्श नहीं हो पाया है। संस्कृत के बहुप्रचलित तत्सम शब्दों का उन्होंने धड़ल्ले से प्रयोग किया है। सामासिक पदावली तथा नाद-योजना उनकी शैली की प्रमुख पहचान है। 'तुम और मैं' भाषा की दृष्टि से उनकी प्रतिनिधि रचना कही जा सकती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सन 1924-1925 ई.

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख