"हर्षत माता मंदिर": अवतरणों में अंतर
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'''हर्षत माता मंदिर''' [[राजस्थान]] के [[दौसा ज़िला|दौसा ज़िले]] में स्थित [[आभानेरी|आभानेरी गाँव]] में '[[चाँद बावड़ी]]' के ठीक विपरीत दिशा में स्थित है। ये मंदिर [[हिन्दू]] देवी हर्षत माता को समर्पित है, जो हर्ष और उल्लास की देवी हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि देवी सदैव खुश रहती हैं और सब पर अपनी कृपा बरसाती हैं। यहाँ हर्षत माता देवी को सम्मान देते हुए हर [[वर्ष]] एक तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान यहाँ भारी संख्या में श्रद्धालु और आसपास के ज़िलों के व्यापारी एकत्र होते हैं। ये मंदिर जो अपनी पत्थर की [[वास्तुकला]] के लिए जाना जाता है, अब '[[भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग]]' के नियंत्रण में है। | {{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | ||
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==निर्माण== | |||
इस विशाल मंदिर का निर्माण [[चौहान वंश|चौहान वंशीय]] राजा चांद ने आठवीं-नवीं सदी में करवाया था। राजा चांद तत्कालीन [[आभानेरी]] के शासक थे। उस समय आभानेरी आभा नगरी' के नाम से जानी जाती थी। | |||
हर्षत माता का अर्थ है "हर्ष देने वाली"। कहा जाता है कि राजा चांद अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे। साथ ही वे स्थापत्य कला के पारखी और प्रेमी थे। वे दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजते थे। अपने राज्य पर माता की कृपा मानते थे। अपने शासन काल के दौरान उन्होंने यहां दुर्गा माता का मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि आभानगरी में उस समय सुख शांति और वैभव की कोई कमी नहीं थी और राजा चांद सहित रियासत की प्रजा यह मानती थी कि राज्य की खुशहाली और हर्ष दुर्गा माँ की देन है। इसी सोच के साथ दुर्गा का यह मंदिर हर्षत अर्थात 'हर्ष की दात्री' के नाम से भी जाना जाने लगा।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.pinkcity.com/hi/places-to-visit/harshat-mata/|title= हर्षत माता का मन्दिर|accessmonthday= 06 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= पिंक सिटी.कॉम|language= हिन्दी}}</ref> | |||
====संरक्षित राष्ट्रीय स्मारक==== | |||
हर्षत माता का पूर्वमुखी मंदिर '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]' द्वारा चारों ओर से [[लोहा|लोहे]] की मेढ़ बनाकर संरक्षित किया गया है। मंदिर के सामने [[हनुमान|हनुमानजी]] का एक छोटा मंदिर है। यह मंदिर प्रसिद्ध '[[चाँद बावड़ी]]' और हर्षत माता मंदिर के बीच में है। लोहे के गेट से मंदिर में प्रवेश करने पर बायें ओर मंदिर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी और पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा है, जिसमें उल्लेख है कि यह संरक्षित राष्ट्रीय स्मारक है। | |||
==मंदिर स्थापत्य== | |||
महामेरू शैली का यह पूर्वाभिमुख मंदिर दोहरी जगती पर स्थित है। मंदिर गर्भगृह योजना में प्रदक्षिणापथ युक्त पंचरथ है, जिसके अग्रभाग में स्तंभों पर आधारित मंडप है। गर्भगृह एवं मण्डप गुम्बदाकार छत युक्त हैं, जिसकी बाहरी दीवार पर भद्र ताखों में [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]], [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवताओं]] की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। ऊपरी जगती के चारों ओर ताखों में रखी सुंदर मूर्तियां जीवन के धार्मिक और लौकिक दृश्यों को दर्शाती हैं। यही इस मंदिर की मुख्य विशेषता है।<ref name="aa"/> | |||
====शैली==== | |||
[[चित्र:Carving-at-Harshat-Mata-Temple.jpg|180px|thumb|left|मंदिर पर शानदार नक़्क़ाशी]] | |||
मंदिर पुरातन द्रविड़ शैली में बना है। हालांकि जिस मौलिक रूप में यह आठवीं-नवीं सदी में गढ़ा गया था, वैसा नहीं है। बल्कि मंदिर के पाषाण खंडों को आपस में जोड़कर मंदिर का मूल रूप देने का प्रयास किया गया है। मंदिर की प्रथम जगती पर चारों ओर प्राचीन नक़्क़ाशीनुमा पत्थरों को सजाया गया है। कुछ पाषाण खंडों के ढेर यहां वहां घास पर भी लगे दिखाई देते हैं। दूसरी जगती कुछ सात-आठ फीट का चौरस धरातल है। मुख्य द्वार के ठीक सामने से बनी सीढ़ियाँ इस धरातल और इससे ऊपर की जगती पर स्थित मंदिर तक पहुंचाती हैं। इस जगती के दायें ओर छोटा शिवालय 'शिव-पंचायत' सहित मौजूद है। दूसरी जगती एक तरह की खुली परिक्रमा है, जिसके बीच एक ऊंचे आयाताकार स्तर पर मंदिर का गर्भगृह और मंडप बना है। | |||
परिक्रमा जगती के चारों ओर एक जैसी पाषाण द्वारशाखाओं को संजोया गया है। बीच-बीच में स्तंभों पर उत्कीर्ण मूर्तियों को रखा गया है। चारों ओर हजारों की संख्या में ये टूटे हुए शैल अपनी कला से आनंद भी देते हैं तो दु:ख भी होता है कि इतनी खूबसूरत कला को खंडित क्यों किया गया। मंदिर का मुख्य मंडप शानदार मूर्तियों और स्तंभों से अचंभित करता है। शैल खंडों को बस एक के ऊपर एक जमा दिया गया है। इनके बीच चूना या सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है। स्तंभों पर उत्कीर्ण कला लाजवाब है। मंडप की गुम्बदाकार छत ईंटों से बनाई गई है। यह स्थानीय लोगों का प्रयास है, जो मंदिर के पुनर्निमाण की ललक दिखाता है। मंदिर का गर्भगृह छोटा है। | |||
====माता की प्रतिमा==== | |||
[[लोहा|लोहे]] की सलाखों वाले छोटे गेट के भीतर हर्षत माता की प्राचीन मूर्ति नजर नहीं आती, बल्कि नए शिल्प की पाषाण की [[दुर्गा]] प्रतिमा को [[पूजा]] जाता है। संभवत: मुख्य मूर्ति पूर्ण रूप से खंडित कर दी गई थी अथवा हजारों खंडित मूर्तियों में उसकी पहचान नहीं हो सकी।<ref name="aa"/> | |||
==आक्रमणकारियों द्वारा खण्डित== | |||
[[चित्र:Temple-at-Abhaneri.jpg|thumb|250px|माता का मंदिर]] | |||
जब देश पर [[तुर्क]] और [[मुग़ल]] आक्रांताओं का जोर बढ़ा, तब तुर्क शासकों ने पूरे देश की धार्मिक आस्थाओं को खंडित करना आरंभ किया। उसी दौर में तुर्क शासक [[महमूद ग़ज़नवी]] ने [[उत्तर भारत]] के कई राज्यों पर फ़तेह हासिल की और इस आंधी में जहाँ-जहाँ [[हिन्दू]] धार्मिक आस्थाओं के प्रतीक दिखाई दिए, उन्हें नष्ट कर दिया गया। हर्षत माता के भव्य मंदिर को भी खंड-खंड कर दिया गया था। पाषाण पर उत्कीर्ण अजूबा कलाकृतियों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। एक-एक शिला के छोटे-छोटे टुकड़े कर शिल्प का पहाड़ लगा दिया गया। कालान्तर में स्थानीय लोगों ने उन टुकड़ों को एकत्र किया। उनकी जगह की पहचान की और जमा-जमा कर पुन: माता का मंदिर निर्मित कर दिया। आज पत्थरों के ये टुकड़े एक के ऊपर एक रखे हैं और हर्षत माता की वास्तविक मूर्ति भी यहाँ नहीं है। जबकि पत्थर और सीमेंट से बनी आधुनिक शिल्प की मूर्ति को यहाँ प्रतिष्ठित किया गया है। | |||
====शानदार इमारत==== | |||
हर्षत माता का मंदिर [[गुप्त काल]] से [[मध्य काल]] के बीच निर्मित अद्वितीय इमारतों में से एक मानी जाती है। दुनिया भर के संग्रहालयों में यहाँ से प्राप्त मूर्तियां [[आभानेरी]] का नाम रोशन कर रही हैं। इस मंदिर के [[खंडहर]] भी दसवीं सदी की वास्तुशिल्प और मूर्तिकला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं। | |||
==लोगों की आस्था== | |||
लगभग तीन हजार साल पुराने माने जाने वाले इस [[ग्राम]] के लोग भी मंदिर की प्राचीनता को जानते समझते हैं और भरपूर संरक्षण करते हैं। स्थानीय लोग मंदिर में पूरी आस्था और श्रद्धा संजोये हुए हैं। यहाँ तीन दिवसीय वार्षिक मेले में इन स्मारकों के प्रति उनकी श्रद्धा और प्रेम देखते ही बनता है। वर्तमान में हर्षत माता मंदिर और '[[चाँद बावड़ी]]' दोनों '[[भारत सरकार]]' के '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]' द्वारा संरक्षित स्मारक हैं।<ref name="aa"/> | |||
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हर्षत माता मंदिर
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विवरण | 'हर्षत माता मंदिर' राजस्थान के आभानेरी नामक ग्राम में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर अब 'भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' के नियंत्रण में है। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | दौसा |
निर्माण काल | आठवीं-नौवीं सदी |
निर्माणकर्ता | राजा चाँद |
स्थापत्य शैली | महामेरू |
प्रतिमा | मंदिर के भीतर हर्षत माता की प्राचीन मूर्ति नजर नहीं आती, बल्कि नए शिल्प की पाषाण की दुर्गा प्रतिमा को पूजा जाता है। संभवत: आक्रमणकारियों द्वारा मुख्य मूर्ति पूर्ण रूप से खंडित कर दी गई थी। |
संबंधित लेख | आभानेरी, चाँद बावड़ी, राजस्थान का इतिहास |
अन्य जानकारी | 'हर्षत माता का मंदिर' गुप्त काल से मध्य काल के बीच निर्मित अद्वितीय इमारतों में से एक मानी जाती है। दुनिया भर के संग्रहालयों में यहाँ से प्राप्त मूर्तियां आभानेरी का नाम रोशन कर रही हैं। |
हर्षत माता मंदिर राजस्थान के दौसा ज़िले में स्थित आभानेरी गाँव में 'चाँद बावड़ी' के ठीक विपरीत दिशा में स्थित है। ये मंदिर हिन्दू देवी हर्षत माता को समर्पित है, जो हर्ष और उल्लास की देवी हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि देवी सदैव खुश रहती हैं और सब पर अपनी कृपा बरसाती हैं। यहाँ हर्षत माता देवी को सम्मान देते हुए हर वर्ष एक तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान यहाँ भारी संख्या में श्रद्धालु और आसपास के ज़िलों के व्यापारी एकत्र होते हैं। ये मंदिर जो अपनी पत्थर की वास्तुकला के लिए जाना जाता है, अब 'भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' के नियंत्रण में है।
निर्माण
इस विशाल मंदिर का निर्माण चौहान वंशीय राजा चांद ने आठवीं-नवीं सदी में करवाया था। राजा चांद तत्कालीन आभानेरी के शासक थे। उस समय आभानेरी आभा नगरी' के नाम से जानी जाती थी।
हर्षत माता का अर्थ है "हर्ष देने वाली"। कहा जाता है कि राजा चांद अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे। साथ ही वे स्थापत्य कला के पारखी और प्रेमी थे। वे दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजते थे। अपने राज्य पर माता की कृपा मानते थे। अपने शासन काल के दौरान उन्होंने यहां दुर्गा माता का मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि आभानगरी में उस समय सुख शांति और वैभव की कोई कमी नहीं थी और राजा चांद सहित रियासत की प्रजा यह मानती थी कि राज्य की खुशहाली और हर्ष दुर्गा माँ की देन है। इसी सोच के साथ दुर्गा का यह मंदिर हर्षत अर्थात 'हर्ष की दात्री' के नाम से भी जाना जाने लगा।[1]
संरक्षित राष्ट्रीय स्मारक
हर्षत माता का पूर्वमुखी मंदिर 'भारतीय पुरातत्त्व विभाग' द्वारा चारों ओर से लोहे की मेढ़ बनाकर संरक्षित किया गया है। मंदिर के सामने हनुमानजी का एक छोटा मंदिर है। यह मंदिर प्रसिद्ध 'चाँद बावड़ी' और हर्षत माता मंदिर के बीच में है। लोहे के गेट से मंदिर में प्रवेश करने पर बायें ओर मंदिर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी और पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा है, जिसमें उल्लेख है कि यह संरक्षित राष्ट्रीय स्मारक है।
मंदिर स्थापत्य
महामेरू शैली का यह पूर्वाभिमुख मंदिर दोहरी जगती पर स्थित है। मंदिर गर्भगृह योजना में प्रदक्षिणापथ युक्त पंचरथ है, जिसके अग्रभाग में स्तंभों पर आधारित मंडप है। गर्भगृह एवं मण्डप गुम्बदाकार छत युक्त हैं, जिसकी बाहरी दीवार पर भद्र ताखों में ब्राह्मणों, देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। ऊपरी जगती के चारों ओर ताखों में रखी सुंदर मूर्तियां जीवन के धार्मिक और लौकिक दृश्यों को दर्शाती हैं। यही इस मंदिर की मुख्य विशेषता है।[1]
शैली

मंदिर पुरातन द्रविड़ शैली में बना है। हालांकि जिस मौलिक रूप में यह आठवीं-नवीं सदी में गढ़ा गया था, वैसा नहीं है। बल्कि मंदिर के पाषाण खंडों को आपस में जोड़कर मंदिर का मूल रूप देने का प्रयास किया गया है। मंदिर की प्रथम जगती पर चारों ओर प्राचीन नक़्क़ाशीनुमा पत्थरों को सजाया गया है। कुछ पाषाण खंडों के ढेर यहां वहां घास पर भी लगे दिखाई देते हैं। दूसरी जगती कुछ सात-आठ फीट का चौरस धरातल है। मुख्य द्वार के ठीक सामने से बनी सीढ़ियाँ इस धरातल और इससे ऊपर की जगती पर स्थित मंदिर तक पहुंचाती हैं। इस जगती के दायें ओर छोटा शिवालय 'शिव-पंचायत' सहित मौजूद है। दूसरी जगती एक तरह की खुली परिक्रमा है, जिसके बीच एक ऊंचे आयाताकार स्तर पर मंदिर का गर्भगृह और मंडप बना है।
परिक्रमा जगती के चारों ओर एक जैसी पाषाण द्वारशाखाओं को संजोया गया है। बीच-बीच में स्तंभों पर उत्कीर्ण मूर्तियों को रखा गया है। चारों ओर हजारों की संख्या में ये टूटे हुए शैल अपनी कला से आनंद भी देते हैं तो दु:ख भी होता है कि इतनी खूबसूरत कला को खंडित क्यों किया गया। मंदिर का मुख्य मंडप शानदार मूर्तियों और स्तंभों से अचंभित करता है। शैल खंडों को बस एक के ऊपर एक जमा दिया गया है। इनके बीच चूना या सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है। स्तंभों पर उत्कीर्ण कला लाजवाब है। मंडप की गुम्बदाकार छत ईंटों से बनाई गई है। यह स्थानीय लोगों का प्रयास है, जो मंदिर के पुनर्निमाण की ललक दिखाता है। मंदिर का गर्भगृह छोटा है।
माता की प्रतिमा
लोहे की सलाखों वाले छोटे गेट के भीतर हर्षत माता की प्राचीन मूर्ति नजर नहीं आती, बल्कि नए शिल्प की पाषाण की दुर्गा प्रतिमा को पूजा जाता है। संभवत: मुख्य मूर्ति पूर्ण रूप से खंडित कर दी गई थी अथवा हजारों खंडित मूर्तियों में उसकी पहचान नहीं हो सकी।[1]
आक्रमणकारियों द्वारा खण्डित

जब देश पर तुर्क और मुग़ल आक्रांताओं का जोर बढ़ा, तब तुर्क शासकों ने पूरे देश की धार्मिक आस्थाओं को खंडित करना आरंभ किया। उसी दौर में तुर्क शासक महमूद ग़ज़नवी ने उत्तर भारत के कई राज्यों पर फ़तेह हासिल की और इस आंधी में जहाँ-जहाँ हिन्दू धार्मिक आस्थाओं के प्रतीक दिखाई दिए, उन्हें नष्ट कर दिया गया। हर्षत माता के भव्य मंदिर को भी खंड-खंड कर दिया गया था। पाषाण पर उत्कीर्ण अजूबा कलाकृतियों को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। एक-एक शिला के छोटे-छोटे टुकड़े कर शिल्प का पहाड़ लगा दिया गया। कालान्तर में स्थानीय लोगों ने उन टुकड़ों को एकत्र किया। उनकी जगह की पहचान की और जमा-जमा कर पुन: माता का मंदिर निर्मित कर दिया। आज पत्थरों के ये टुकड़े एक के ऊपर एक रखे हैं और हर्षत माता की वास्तविक मूर्ति भी यहाँ नहीं है। जबकि पत्थर और सीमेंट से बनी आधुनिक शिल्प की मूर्ति को यहाँ प्रतिष्ठित किया गया है।
शानदार इमारत
हर्षत माता का मंदिर गुप्त काल से मध्य काल के बीच निर्मित अद्वितीय इमारतों में से एक मानी जाती है। दुनिया भर के संग्रहालयों में यहाँ से प्राप्त मूर्तियां आभानेरी का नाम रोशन कर रही हैं। इस मंदिर के खंडहर भी दसवीं सदी की वास्तुशिल्प और मूर्तिकला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
लोगों की आस्था
लगभग तीन हजार साल पुराने माने जाने वाले इस ग्राम के लोग भी मंदिर की प्राचीनता को जानते समझते हैं और भरपूर संरक्षण करते हैं। स्थानीय लोग मंदिर में पूरी आस्था और श्रद्धा संजोये हुए हैं। यहाँ तीन दिवसीय वार्षिक मेले में इन स्मारकों के प्रति उनकी श्रद्धा और प्रेम देखते ही बनता है। वर्तमान में हर्षत माता मंदिर और 'चाँद बावड़ी' दोनों 'भारत सरकार' के 'भारतीय पुरातत्त्व विभाग' द्वारा संरक्षित स्मारक हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इस तक ऊपर जायें: 1.0 1.1 1.2 1.3 हर्षत माता का मन्दिर (हिन्दी) पिंक सिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 06 अक्टूबर, 2014।
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