"त्रित (गौतम पुत्र)": अवतरणों में अंतर
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'''त्रित''' [[महर्षि गौतम]] के तीन पुत्रों में से एक थे। गौतम के अन्य दो पुत्रों के नाम 'एकत' और 'द्वित' थे। तीनों पुत्रों में सर्वाधिक यश के भागी तथा संभावित [[मुनि]] त्रित ही थे। कालान्तर में महात्मा गौतम के स्वर्गवास के उपरान्त उनके समस्त यजमान तीनों पुत्रों का आदर-सत्कार करने लगे। उन तीनों में से त्रित सबसे अधिक लोकप्रिय हो गये। अत: शेष दोनों भाई इस विचार में मग्न रहने लगे कि उसके साथ [[यज्ञ]] करके धन-धान्य प्राप्त करें तथा शेष जीवन सुख-सुविधा से यापन करें। | '''त्रित''' [[महर्षि गौतम]] के तीन पुत्रों में से एक थे। गौतम के अन्य दो पुत्रों के नाम 'एकत' और 'द्वित' थे। तीनों पुत्रों में सर्वाधिक यश के भागी तथा संभावित [[मुनि]] त्रित ही थे। कालान्तर में महात्मा गौतम के स्वर्गवास के उपरान्त उनके समस्त यजमान तीनों पुत्रों का आदर-सत्कार करने लगे। उन तीनों में से त्रित सबसे अधिक लोकप्रिय हो गये। अत: शेष दोनों भाई इस विचार में मग्न रहने लगे कि उसके साथ [[यज्ञ]] करके धन-धान्य प्राप्त करें तथा शेष जीवन सुख-सुविधा से यापन करें। | ||
==भाइयों का द्वेष== | ==भाइयों का द्वेष== | ||
एक समय गौतम के तीनों पुत्रों ने किसी यज्ञ में सम्मिलित होकर अनेक पशु आदि धन प्राप्त किया। नि:स्पृह त्रित आगे चलते जा रहे थे, दोनों भाई पशुओं के पीछे-पीछे उनकी सुरक्षा करते चले जा रहे थे। पशुओं के | एक समय गौतम के तीनों पुत्रों ने किसी यज्ञ में सम्मिलित होकर अनेक पशु आदि धन प्राप्त किया। नि:स्पृह त्रित आगे चलते जा रहे थे, दोनों भाई पशुओं के पीछे-पीछे उनकी सुरक्षा करते चले जा रहे थे। पशुओं के महान् समुदाय को देखकर उन दोनों के मन में बार-बार उठता था कि कौन-से उपाय से त्रित को दिये बिना, समस्त पशु प्राप्त किये जा सकते हैं। तभी सामने एक [[भेड़िया]] देखकर त्रित भागा और एक अंधे कुएँ में गिर गया। एकत और द्वित उसे वहीं पर छोड़कर पशुओं सहित घर लौट गये। त्रित ने कुएँ में बहुत शोर मचाया, किन्तु कोई उसके त्राण के लिए आता नहीं दिखा। | ||
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कुएँ में तृण, वीरुघ (झाड़ियाँ) और लताएँ थीं। त्रित सोम से वंचित तथा मृत्यु से भयभीत था। मुनि ने बालू भरे कुएँ में संकल्प और भावना से [[जल]], [[अग्नि]] आदि की स्थापना की और होता के स्थान पर अपनी प्रतिष्ठा की, तदन्तर फैली हुई लता में सोम की भावना करके ऋग्, यजु, साम का चिंतन किया। लता को पीसकर [[सोम रस]] निकाला। उसकी आहुति देते हुए [[वेद]]-[[मंत्र|मंत्रों]] का गम्भीर उच्चारण किया। वेद घ्वनि स्वर्गलोक तक गूँज उठी। तुमुलनाद को सुनकर [[देवता|देवताओं]] सहित [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] त्रित मुनि के [[यज्ञ]] में सम्मिलित होने के लिए गए। न पहुँचने पर उन्हें [[मुनि]] के [[शाप]] का भय था। मुनि ने विधिपूर्वक सब देवताओं को भाग समर्पित किये। | कुएँ में तृण, वीरुघ (झाड़ियाँ) और लताएँ थीं। त्रित सोम से वंचित तथा मृत्यु से भयभीत था। मुनि ने बालू भरे कुएँ में संकल्प और भावना से [[जल]], [[अग्नि]] आदि की स्थापना की और होता के स्थान पर अपनी प्रतिष्ठा की, तदन्तर फैली हुई लता में सोम की भावना करके ऋग्, यजु, साम का चिंतन किया। लता को पीसकर [[सोम रस]] निकाला। उसकी आहुति देते हुए [[वेद]]-[[मंत्र|मंत्रों]] का गम्भीर उच्चारण किया। वेद घ्वनि स्वर्गलोक तक गूँज उठी। तुमुलनाद को सुनकर [[देवता|देवताओं]] सहित [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] त्रित मुनि के [[यज्ञ]] में सम्मिलित होने के लिए गए। न पहुँचने पर उन्हें [[मुनि]] के [[शाप]] का भय था। मुनि ने विधिपूर्वक सब देवताओं को भाग समर्पित किये। |
14:11, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
त्रित महर्षि गौतम के तीन पुत्रों में से एक थे। गौतम के अन्य दो पुत्रों के नाम 'एकत' और 'द्वित' थे। तीनों पुत्रों में सर्वाधिक यश के भागी तथा संभावित मुनि त्रित ही थे। कालान्तर में महात्मा गौतम के स्वर्गवास के उपरान्त उनके समस्त यजमान तीनों पुत्रों का आदर-सत्कार करने लगे। उन तीनों में से त्रित सबसे अधिक लोकप्रिय हो गये। अत: शेष दोनों भाई इस विचार में मग्न रहने लगे कि उसके साथ यज्ञ करके धन-धान्य प्राप्त करें तथा शेष जीवन सुख-सुविधा से यापन करें।
भाइयों का द्वेष
एक समय गौतम के तीनों पुत्रों ने किसी यज्ञ में सम्मिलित होकर अनेक पशु आदि धन प्राप्त किया। नि:स्पृह त्रित आगे चलते जा रहे थे, दोनों भाई पशुओं के पीछे-पीछे उनकी सुरक्षा करते चले जा रहे थे। पशुओं के महान् समुदाय को देखकर उन दोनों के मन में बार-बार उठता था कि कौन-से उपाय से त्रित को दिये बिना, समस्त पशु प्राप्त किये जा सकते हैं। तभी सामने एक भेड़िया देखकर त्रित भागा और एक अंधे कुएँ में गिर गया। एकत और द्वित उसे वहीं पर छोड़कर पशुओं सहित घर लौट गये। त्रित ने कुएँ में बहुत शोर मचाया, किन्तु कोई उसके त्राण के लिए आता नहीं दिखा।
यज्ञ
कुएँ में तृण, वीरुघ (झाड़ियाँ) और लताएँ थीं। त्रित सोम से वंचित तथा मृत्यु से भयभीत था। मुनि ने बालू भरे कुएँ में संकल्प और भावना से जल, अग्नि आदि की स्थापना की और होता के स्थान पर अपनी प्रतिष्ठा की, तदन्तर फैली हुई लता में सोम की भावना करके ऋग्, यजु, साम का चिंतन किया। लता को पीसकर सोम रस निकाला। उसकी आहुति देते हुए वेद-मंत्रों का गम्भीर उच्चारण किया। वेद घ्वनि स्वर्गलोक तक गूँज उठी। तुमुलनाद को सुनकर देवताओं सहित बृहस्पति त्रित मुनि के यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए गए। न पहुँचने पर उन्हें मुनि के शाप का भय था। मुनि ने विधिपूर्वक सब देवताओं को भाग समर्पित किये।
वर प्राप्ति
देवताओं ने प्रसन्न होकर त्रित से वर मांगने के लिए कहा। त्रित ने उनसे दो वर मांगे-एक यह कि वे कूप से बाहर निकल आयें और दूसरा भविष्य में जो भी आचमन करे, वही यज्ञ में सोमपान का अधिकारी हो। देवताओं ने दोनों वर दे दिये। वह कुआं सरस्वती नदी के तट पर था, तुरन्त ही उसमें जल लहलहाता हुआ भरने लगा। त्रित मुनि जल के साथ-साथ ऊपर उठने लगे और फिर कुएँ से बाहर निकल आये। देवतागण अपने लोक में चले गये।
त्रित अपने घर पहुँचे, तो उन्होंने दोनों भाइयों से कहा, "तुम पशुओं के लालच में पड़कर मुझे कुएँ में ही छोड़ आये, अत: तुम भयानक दाढ़ी वाले भेड़िये बनकर भटकोगे तथा तुम्हें बंदर-लंगूर जैसी संताने प्राप्त होंगी।" दोनों भाई तुरन्त ही भेड़ियों की सूरत के हो गये।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय मिथक कोश |लेखक: डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति |प्रकाशक: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 122 |
- ↑ महाभारत, शल्यपर्व, अध्याय 36, श्लोक 8 से 55 तक
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