"कार्तिक स्नान": अवतरणों में अंतर

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'''कार्तिक स्नान''' की [[पुराण|पुराणों]] में बड़ी महिमा कही गई है। [[कार्तिक मास]] को [[स्नान]], व्रत व तप की दृष्टि से [[मोक्ष]] प्रदान करने वाला बताया गया है। '[[स्कंदपुराण]]' के अनुसार कार्तिक मास में किया गया स्नान व व्रत [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की [[पूजा]] के समान कहा गया है। कार्तिक मास में [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] को [[तुलसी विवाह]] और [[पूर्णिमा]] को गंगा स्नान किया जाता है।
'''कार्तिक स्नान''' की [[पुराण|पुराणों]] में बड़ी महिमा कही गई है। [[कार्तिक मास]] को [[स्नान]], व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। '[[स्कंदपुराण]]' के अनुसार कार्तिक मास में किया गया स्नान व व्रत भगवान [[विष्णु]] की [[पूजा]] के समान कहा गया है। कार्तिक मास में [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] को [[तुलसी विवाह]] और [[पूर्णिमा]] को गंगा स्नान किया जाता है।
==स्नान==
==स्नान==
कार्तिक मास में [[स्नान]] किस प्रकार किया जाए, इसका वर्णन शास्त्रों में इस प्रकार लिखा है-
कार्तिक मास में [[स्नान]] किस प्रकार किया जाए, इसका वर्णन शास्त्रों में इस प्रकार लिखा है-
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त्रयोदश्यां न च स्नायाद्धात्रीफलतिलैं सह।।</poem></blockquote>
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अर्थात कार्तिक व्रती को सर्वप्रथम [[गंगा]], [[विष्णु]], [[शिव]] तथा [[सूर्य देव|सूर्य]] का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के [[जल]] में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त<ref>आधा शरीर जल में डूबा हो।</ref> जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आँवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए, परंतु विधवा तथा संन्यासियों को [[तुलसी]] के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका ([[मिट्टी]]) को लगाकर स्नान करना चाहिए। [[सप्तमी]], [[अमावस्या]], [[नवमी]], [[द्वितीया]], [[दशमी]] व [[त्रयोदशी]] को [[तिल]] एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है। इसके बाद व्रती को जल से निकल कर शुद्ध वस्त्र धारण कर विधि-विधानपूर्वक भगवान [[विष्णु]] का पूजन करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को केवल [[नरक चतुर्दशी]]<ref>कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी</ref> को ही तेल लगाना चाहिए। शेष दिनों में तेल लगाना वर्जित है।
अर्थात् कार्तिक व्रती को सर्वप्रथम [[गंगा]], [[विष्णु]], [[शिव]] तथा [[सूर्य देव|सूर्य]] का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के [[जल]] में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त<ref>आधा शरीर जल में डूबा हो।</ref> जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आँवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए, परंतु विधवा तथा सन्न्यासियों को [[तुलसी]] के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका ([[मिट्टी]]) को लगाकर स्नान करना चाहिए। [[सप्तमी]], [[अमावस्या]], [[नवमी]], [[द्वितीया]], [[दशमी]] व [[त्रयोदशी]] को [[तिल]] एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है। इसके बाद व्रती को जल से निकल कर शुद्ध वस्त्र धारण कर विधि-विधानपूर्वक भगवान [[विष्णु]] का पूजन करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को केवल [[नरक चतुर्दशी]]<ref>कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी</ref> को ही तेल लगाना चाहिए। शेष दिनों में तेल लगाना वर्जित है।


*कार्तिक के पूरे महीने में [[ब्रज]] की महिलायें झुण्ड के झुण्ड बनाकर गीत गाती हुई, [[यमुना नदी|यमुना]] या कुण्ड [[स्नान]] करती हैं और [[राधा]]-[[कृष्ण|दामोदार]] की पूजा करती हैं।
*कार्तिक के पूरे महीने में [[ब्रज]] की महिलायें झुण्ड के झुण्ड बनाकर गीत गाती हुई, [[यमुना नदी|यमुना]] या कुण्ड [[स्नान]] करती हैं और [[राधा]]-[[कृष्ण|दामोदार]] की पूजा करती हैं।
*इस दिन अकबरपुर तथा [[शेरगढ़]] के मध्य तरौली का गाँव में स्वामी का मेला लगता है।
*इस दिन अकबरपुर तथा [[शेरगढ़]] के मध्य तरौली का गाँव में स्वामी का मेला लगता है।
==त्रिकार्तिक व्रत==
==त्रिकार्तिक व्रत==
कार्तिक मास में प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करना उत्तम फलदायी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो लोग संकल्पपूर्वक पूरे कार्तिक मास में किसी जलाशय में जाकर सूर्योदय से पहले स्नान करके जलाशय के निकट दीपदान करते हैं, उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिलता है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि कार्तिक स्नान का व्रत बीच में ही टूट जाता है, अथवा प्रातः उठकर प्रतिदिन स्नान करना संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में कार्तिक स्नान का पूर्ण फल दिलाने वाला '''त्रिकार्तिक व्रत''' है। त्रिकार्तिक व्रत कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिन पहले शुरू होता है। त्रिकार्तिक व्रत रखने वाले को कार्तिक शुक्ल [[त्रयोदशी]], [[चतुर्दशी]] और पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए। व्रत रखने वाले को परनिंदा से बचना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करें और पत्तल पर खाना खाएँ। इन तीन दिनों में तेल लगाना वर्जित होता है। खाने में मटर, [[चना]] एवं मसूर की [[दाल]] का त्याग करना पड़ता है। व्रती को पलंग पर नहीं सोना चाहिए। इस व्रत में भूमि पर सोने का नियम है। भगवान [[विष्णु]] की प्रसन्नता के लिए त्रियोदशी से पूर्णिमा तक जितना संभव हो '[[गीता]]', 'विष्णुसहस्रनाम' एवं 'गजेन्द्रमोक्ष' का पाठ करना चाहिए। त्रिकार्तिक के विषय में शास्त्र कहता है कि त्रयोदशी के दिन व्रत का पालन करने से समस्त [[वेद]] प्राणी को पवित्र करते हैं। चतुर्दशी के व्रत से [[यज्ञ]] और [[देवता]] प्राणी को पावन बनाते हैं और [[पूर्णिमा]] के व्रत से भगवान विष्णु द्वारा पवित्र [[जल]] प्राणी को शु्द्ध करते हैं। इस प्रकार अंदर और बाहर से शुद्ध हुआ प्राणी भगवान विष्णु के लोक में शरण पाने योग्य बन जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/news/spirituality/religion-festivals/kartik-snaan-vrat-punya-from-trikartik-vrat/|title=कार्तिक स्नान फल दिलायेगा त्रिकार्तिक व्रत|accessmonthday=18 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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[[कार्तिक|कार्तिक मास]] में प्रातः सूर्योदय से पूर्व [[स्नान]] करके [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की [[पूजा]] करना उत्तम फलदायी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो लोग संकल्पपूर्वक पूरे कार्तिक मास में किसी जलाशय में जाकर सूर्योदय से पहले स्नान करके जलाशय के निकट दीपदान करते हैं, उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिलता है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि कार्तिक स्नान का व्रत बीच में ही टूट जाता है, अथवा प्रातः उठकर प्रतिदिन स्नान करना संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में कार्तिक स्नान का पूर्ण फल दिलाने वाला '''त्रिकार्तिक व्रत''' है।<ref>{{cite web |url=http://www.amarujala.com/news/spirituality/religion-festivals/kartik-snaan-vrat-punya-from-trikartik-vrat/|title=कार्तिक स्नान फल दिलायेगा त्रिकार्तिक व्रत|accessmonthday=18 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==पौराणिक उल्लेख==
==पौराणिक उल्लेख==
[[कार्तिक मास]] को शास्त्रों में पुण्य [[मास]] कहा गया है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जो फल सामान्य दिनों में एक हजार बार [[गंगा नदी]] में स्नान का होता है तथा [[प्रयाग]] में [[कुंभ मेला|कुंभ]] के दौरान गंगा स्नान का फल होता है, वही फल कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में [[स्नान]] करने मात्र से प्राप्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास स्नान की शुरुआत [[शरद पूर्णिमा]] से होती है और इसका समापन [[कार्तिक पूर्णिमा]] को होता है।<ref>{{cite web |url=http://www.khulasatv.com/2012/10/blog-post_6827.html|title='कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व स्नान के लाभ|accessmonthday=18 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
[[कार्तिक मास]] को शास्त्रों में पुण्य [[मास]] कहा गया है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जो फल सामान्य दिनों में एक हजार बार [[गंगा नदी]] में स्नान का होता है तथा [[प्रयाग]] में [[कुंभ मेला|कुंभ]] के दौरान गंगा स्नान का फल होता है, वही फल कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में [[स्नान]] करने मात्र से प्राप्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास स्नान की शुरुआत [[शरद पूर्णिमा]] से होती है और इसका समापन [[कार्तिक पूर्णिमा]] को होता है।<ref>{{cite web |url=http://www.khulasatv.com/2012/10/blog-post_6827.html|title='कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व स्नान के लाभ|accessmonthday=18 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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एक बार कार्तिक मास की महिमा जानने के लिए कुमार [[कार्तिकेय]] ने भगवान [[शिव]] से पूछा कि- "कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता है?" इस पर भगवान शिव ने कहा कि- "नदियों में जैसे [[गंगा]] श्रेष्ठ है, भगवानों में विष्णु, उसी प्रकार मासों में कार्तिक श्रेष्ठ मास है। इस मास में भगवान विष्णु [[जल]] के अंदर निवास करते हैं। इसलिए इस महीने में नदियों एवं तलाब में स्नान करने से विष्णु भगवान की पूजा और साक्षात्कार का पुण्य प्राप्त होता है। भगवान विष्णु ने जब कृष्ण रूप में [[अवतार]] लिया था, तब [[रुक्मिणी]] और सत्यभामा उनकी पटरानी हुईं। सत्यभामा पूर्व जन्म में एक [[ब्राह्मण]] की पुत्री थी। युवावस्था में ही एक दिन इनके पति और [[पिता]] को एक [[राक्षस]] ने मार दिया। कुछ दिनों तक ब्राह्मण की पुत्री रोती रही। इसके बाद उसने स्वयं को विष्णु भगवान की [[भक्ति]] में समर्पित कर दिया। वह सभी [[एकादशी]] का व्रत रखती और कार्तिक मास में नियम पूर्वक सूर्योदय से पूर्व [[स्नान]] करके भगवान विष्णु और [[तुलसी]] की पूजा करती थी। बुढ़ापा आने पर एक दिन जब ब्राह्मण की पुत्री ने कार्तिक स्नान के लिए गंगा में डुबकी लगायी, तब बुखार से कांपने लगी और गंगा तट पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसी समय विष्णु लोक से एक विमान आया और ब्राह्मण की पुत्री का दिव्य शरीर विमान में बैठकर विष्णु लोक पहुँच गया।"
एक बार कार्तिक मास की महिमा जानने के लिए कुमार [[कार्तिकेय]] ने भगवान [[शिव]] से पूछा कि- "कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता है?" इस पर भगवान शिव ने कहा कि- "नदियों में जैसे [[गंगा]] श्रेष्ठ है, भगवानों में विष्णु, उसी प्रकार मासों में कार्तिक श्रेष्ठ मास है। इस मास में भगवान विष्णु [[जल]] के अंदर निवास करते हैं। इसलिए इस महीने में नदियों एवं तलाब में स्नान करने से विष्णु भगवान की पूजा और साक्षात्कार का पुण्य प्राप्त होता है। भगवान विष्णु ने जब कृष्ण रूप में [[अवतार]] लिया था, तब [[रुक्मिणी]] और सत्यभामा उनकी पटरानी हुईं। सत्यभामा पूर्व जन्म में एक [[ब्राह्मण]] की पुत्री थी। युवावस्था में ही एक दिन इनके पति और [[पिता]] को एक [[राक्षस]] ने मार दिया। कुछ दिनों तक ब्राह्मण की पुत्री रोती रही। इसके बाद उसने स्वयं को विष्णु भगवान की [[भक्ति]] में समर्पित कर दिया। वह सभी [[एकादशी]] का व्रत रखती और कार्तिक मास में नियम पूर्वक सूर्योदय से पूर्व [[स्नान]] करके भगवान विष्णु और [[तुलसी]] की पूजा करती थी। बुढ़ापा आने पर एक दिन जब ब्राह्मण की पुत्री ने कार्तिक स्नान के लिए गंगा में डुबकी लगायी, तब बुखार से कांपने लगी और गंगा तट पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसी समय विष्णु लोक से एक विमान आया और ब्राह्मण की पुत्री का दिव्य शरीर विमान में बैठकर विष्णु लोक पहुँच गया।"
==माहात्म्य==
==माहात्म्य==
*कार्तिक के पूरे माह [[स्नान]], दान, दीपदान, [[तुलसी विवाह]], कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनना चाहिए। ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है व पापों का शमन होता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है।
*कार्तिक के पूरे माह [[स्नान]], दान, दीपदान, [[तुलसी विवाह]], कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनना चाहिए। ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है व पापों का शमन होता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में [[स्नान]], दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है।
*कार्तिक माह अत्यधिक पवित्र माना जाता है। [[भारत]] के सभी तीर्थों के समान पुण्य फलों की प्राप्ति इस माह में मिलती है। इस माह में की गई [[पूजा]] तथा व्रत से ही तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व के बारे में '[[स्कन्दपुराण]], '[[नारदपुराण]]', '[[पद्मपुराण]] आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार [[माघ स्नान]] के समान है।
*कार्तिक माह अत्यधिक पवित्र माना जाता है। [[भारत]] के सभी तीर्थों के समान पुण्य फलों की प्राप्ति इस माह में मिलती है। इस माह में की गई [[पूजा]] तथा व्रत से ही तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व के बारे में '[[स्कन्दपुराण]], '[[नारदपुराण]]', '[[पद्मपुराण]] आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार [[माघ स्नान]] के समान है।
*जो फल [[कुम्भ मेला|कुम्भ]] में [[प्रयाग]] में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है। इस माह में अधिक से अधिक जप करना चाहिए। भोजन दिन में एक समय ही करना चाहिए। जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह [[वर्ष]] भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।
*जो फल [[कुम्भ मेला|कुम्भ]] में [[प्रयाग]] में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है। इस माह में अधिक से अधिक जप करना चाहिए। भोजन दिन में एक समय ही करना चाहिए। जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह [[वर्ष]] भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।
*कार्तिक माह में [[शिव]], चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में [[दीपक]] जलाने तथा [[प्रकाश]] करने का अत्यधिक महत्व माना गया है। इस माह में भगवान विष्णु का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए। ऐसा करनेसे [[अश्वमेध यज्ञ]] के समान पुण्य फल मिलता है।
*कार्तिक माह में [[शिव]], चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में [[दीपक]] जलाने तथा [[प्रकाश]] करने का अत्यधिक महत्व माना गया है। इस माह में भगवान विष्णु का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए। ऐसा करनेसे [[अश्वमेध यज्ञ]] के समान पुण्य फल मिलता है।
*कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए। कर्तिक माह की [[षष्ठी]] को [[कार्तिकेय]] व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। स्वामी कार्तिकेय इसके [[देवता]] हैं। इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए। यह दान किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता है। कार्तिक माह में [[पुष्कर]], [[कुरुक्षेत्र]] तथा [[वाराणसी]] तीर्थ स्थान [[स्नान]] तथा दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं।
*कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए। कर्तिक माह की [[षष्ठी]] को [[कार्तिकेय]] व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। स्वामी कार्तिकेय इसके [[देवता]] हैं। इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए। यह दान किसी भी ज़रूरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता है। कार्तिक माह में [[पुष्कर]], [[कुरुक्षेत्र]] तथा [[वाराणसी]] तीर्थ स्थान [[स्नान]] तथा दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं।
*श्रद्धालु व्यक्ति कार्तिक माह में तारा भोजन भी करते हैं। पूरे दिन भर व्रती निराहार रहकर रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करते हैं। व्रत के अंतिम दिन उद्यापन किया जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक माह आरम्भ होते ही पवित्र स्नान का भी शुभारम्भ हो जाता है।
*श्रद्धालु व्यक्ति कार्तिक माह में तारा भोजन भी करते हैं। पूरे दिन भर व्रती निराहार रहकर रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करते हैं। व्रत के अंतिम दिन उद्यापन किया जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक माह आरम्भ होते ही पवित्र स्नान का भी शुभारम्भ हो जाता है।
*त्रिदेवों ने [[कार्तिक पूर्णिमा]] को महापुनीत पर्व कहा है। इसे '''त्रिपुरी पूर्णिमा''' भी कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन [[चन्द्रमा]] [[कृत्तिका नक्षत्र]] में स्थित हो और [[सूर्य]] [[विशाखा नक्षत्र]] में स्थित हो, तब 'पद्मयोग' बनता है। इस योग का अपना विशेष महत्व है।
*त्रिदेवों ने [[कार्तिक पूर्णिमा]] को महापुनीत पर्व कहा है। इसे '''त्रिपुरी पूर्णिमा''' भी कहा जाता है। [[कार्तिक पूर्णिमा]] के दिन [[चन्द्रमा]] [[कृत्तिका नक्षत्र]] में स्थित हो और [[सूर्य]] [[विशाखा नक्षत्र]] में स्थित हो, तब 'पद्मयोग' बनता है। इस योग का अपना विशेष महत्व है।
 


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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10:47, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

कार्तिक स्नान
विश्राम घाट, मथुरा
विश्राम घाट, मथुरा
विवरण हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में 'कार्तिक स्नान' का बड़ा ही महत्त्व बताया गया है। 'स्कंदपुराण' के अनुसार कार्तिक मास में किया गया स्नान व व्रत भगवान विष्णु की पूजा के समान कहा गया है।
तिथि कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
धार्मिक मान्यता पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है।
संबंधित देवता विष्णु
विशेष 'त्रिकार्तिक व्रत' कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिन पहले शुरू होता है। त्रिकार्तिक व्रत रखने वाले को कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए।
संबंधित लेख विष्णु, शिव, गंगा, कार्तिकेय
अन्य जानकारी कार्तिक के पूरे महीने में ब्रज की महिलायें झुण्ड बनाकर गीत गाती हुई, यमुना या कुण्ड स्नान करती हैं और राधा-दामोदार की पूजा करती हैं।

कार्तिक स्नान की पुराणों में बड़ी महिमा कही गई है। कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। 'स्कंदपुराण' के अनुसार कार्तिक मास में किया गया स्नान व व्रत भगवान विष्णु की पूजा के समान कहा गया है। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह और पूर्णिमा को गंगा स्नान किया जाता है।

स्नान

कार्तिक मास में स्नान किस प्रकार किया जाए, इसका वर्णन शास्त्रों में इस प्रकार लिखा है-

तिलामलकचूर्णेन गृही स्नानं समाचरेत्।
विधवास्त्रीयतीनां तु तुलसीमूलमृत्सया।।
सप्तमी दर्शनवमी द्वितीया दशमीषु च।
त्रयोदश्यां न च स्नायाद्धात्रीफलतिलैं सह।।

अर्थात् कार्तिक व्रती को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त[1] जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आँवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए, परंतु विधवा तथा सन्न्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका (मिट्टी) को लगाकर स्नान करना चाहिए। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमीत्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है। इसके बाद व्रती को जल से निकल कर शुद्ध वस्त्र धारण कर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को केवल नरक चतुर्दशी[2] को ही तेल लगाना चाहिए। शेष दिनों में तेल लगाना वर्जित है।

  • कार्तिक के पूरे महीने में ब्रज की महिलायें झुण्ड के झुण्ड बनाकर गीत गाती हुई, यमुना या कुण्ड स्नान करती हैं और राधा-दामोदार की पूजा करती हैं।
  • इस दिन अकबरपुर तथा शेरगढ़ के मध्य तरौली का गाँव में स्वामी का मेला लगता है।

त्रिकार्तिक व्रत

कार्तिक मास में प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करना उत्तम फलदायी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो लोग संकल्पपूर्वक पूरे कार्तिक मास में किसी जलाशय में जाकर सूर्योदय से पहले स्नान करके जलाशय के निकट दीपदान करते हैं, उन्हें विष्णु लोक में स्थान मिलता है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि कार्तिक स्नान का व्रत बीच में ही टूट जाता है, अथवा प्रातः उठकर प्रतिदिन स्नान करना संभव नहीं होता है। ऐसी स्थिति में कार्तिक स्नान का पूर्ण फल दिलाने वाला त्रिकार्तिक व्रत है।[3]

पौराणिक उल्लेख

कार्तिक मास को शास्त्रों में पुण्य मास कहा गया है। पुराणों के अनुसार जो फल सामान्य दिनों में एक हजार बार गंगा नदी में स्नान का होता है तथा प्रयाग में कुंभ के दौरान गंगा स्नान का फल होता है, वही फल कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास स्नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है।[4]

कथा

'पद्मपुराण' के अनुसार जो व्यक्ति पूरे कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व उठकर नदी अथवा तालाब में स्नान करता है और भगवान विष्णु की पूजा करता है, भगवान विष्णु की उन पर असीम कृपा होती है। 'पद्मपुराण' के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक मास में नियमित रूप से सूर्योदय से पूर्व स्नान करके धूप-दीप सहित भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वह विष्णु के प्रिय होते हैं। पद्मपुराण की कथा के अनुसार कार्तिक स्नान और पूजा के पुण्य से ही सत्यभामा को भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। कथा इस प्रकार है कि-

भगवान विष्णु

एक बार कार्तिक मास की महिमा जानने के लिए कुमार कार्तिकेय ने भगवान शिव से पूछा कि- "कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता है?" इस पर भगवान शिव ने कहा कि- "नदियों में जैसे गंगा श्रेष्ठ है, भगवानों में विष्णु, उसी प्रकार मासों में कार्तिक श्रेष्ठ मास है। इस मास में भगवान विष्णु जल के अंदर निवास करते हैं। इसलिए इस महीने में नदियों एवं तलाब में स्नान करने से विष्णु भगवान की पूजा और साक्षात्कार का पुण्य प्राप्त होता है। भगवान विष्णु ने जब कृष्ण रूप में अवतार लिया था, तब रुक्मिणी और सत्यभामा उनकी पटरानी हुईं। सत्यभामा पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण की पुत्री थी। युवावस्था में ही एक दिन इनके पति और पिता को एक राक्षस ने मार दिया। कुछ दिनों तक ब्राह्मण की पुत्री रोती रही। इसके बाद उसने स्वयं को विष्णु भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया। वह सभी एकादशी का व्रत रखती और कार्तिक मास में नियम पूर्वक सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करती थी। बुढ़ापा आने पर एक दिन जब ब्राह्मण की पुत्री ने कार्तिक स्नान के लिए गंगा में डुबकी लगायी, तब बुखार से कांपने लगी और गंगा तट पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसी समय विष्णु लोक से एक विमान आया और ब्राह्मण की पुत्री का दिव्य शरीर विमान में बैठकर विष्णु लोक पहुँच गया।"

माहात्म्य

  • कार्तिक के पूरे माह स्नान, दान, दीपदान, तुलसी विवाह, कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनना चाहिए। ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है व पापों का शमन होता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है।
  • कार्तिक माह अत्यधिक पवित्र माना जाता है। भारत के सभी तीर्थों के समान पुण्य फलों की प्राप्ति इस माह में मिलती है। इस माह में की गई पूजा तथा व्रत से ही तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व के बारे में 'स्कन्दपुराण, 'नारदपुराण', 'पद्मपुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान है।
  • जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है। इस माह में अधिक से अधिक जप करना चाहिए। भोजन दिन में एक समय ही करना चाहिए। जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।
  • कार्तिक माह में शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीपक जलाने तथा प्रकाश करने का अत्यधिक महत्व माना गया है। इस माह में भगवान विष्णु का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए। ऐसा करनेसे अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है।
  • कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए। कर्तिक माह की षष्ठी को कार्तिकेय व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। स्वामी कार्तिकेय इसके देवता हैं। इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए। यह दान किसी भी ज़रूरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता है। कार्तिक माह में पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा वाराणसी तीर्थ स्थान स्नान तथा दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं।
  • श्रद्धालु व्यक्ति कार्तिक माह में तारा भोजन भी करते हैं। पूरे दिन भर व्रती निराहार रहकर रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करते हैं। व्रत के अंतिम दिन उद्यापन किया जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक माह आरम्भ होते ही पवित्र स्नान का भी शुभारम्भ हो जाता है।
  • त्रिदेवों ने कार्तिक पूर्णिमा को महापुनीत पर्व कहा है। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में स्थित हो और सूर्य विशाखा नक्षत्र में स्थित हो, तब 'पद्मयोग' बनता है। इस योग का अपना विशेष महत्व है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आधा शरीर जल में डूबा हो।
  2. कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी
  3. कार्तिक स्नान फल दिलायेगा त्रिकार्तिक व्रत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 18 अक्टूबर, 2013।
  4. 'कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व स्नान के लाभ (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 18 अक्टूबर, 2013।

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