"घर मेरा है? -माखन लाल चतुर्वेदी": अवतरणों में अंतर

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ये आए बादल घूम उठे,
ये आए बादल घूम उठे,
ये हवा के झोंके झूम उठे,
ये हवा के झोंके झूम उठे,
बिजली की चमचम पर चढ़कर
बिजली की चमचम पर चढ़कर,
गीले मोती भू चूम उठे;
गीले मोती भू चूम उठे;
फिर सनसनाट का ठाठ बना,
फिर सनसनाहट का ठाठ बना,
आ गई हवा, कजली गाने,
आ गई हवा, कजली गाने,
आ गई रात, सौगात लिए,
आ गई रात, सौगात लिए,
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घरवाला महज़ लुटेरा है।
घरवाला महज़ लुटेरा है।


हो मुकुट हिमालय पहनाता
हो मुकुट हिमालय पहनाता,
सागर जिसके पद धुलवाता,
सागर जिसके पद धुलवाता,
यह बंधा बेड़ियों में मंदिर,
यह बंधा बेड़ियों में मंदिर,

09:16, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

घर मेरा है? -माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
माखन लाल चतुर्वेदी
कवि माखन लाल चतुर्वेदी
जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई.
जन्म स्थान बावई, मध्य प्रदेश
मृत्यु 30 जनवरी, 1968 ई.
मुख्य रचनाएँ कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, ग़रीब इरादे
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
माखन लाल चतुर्वेदी की रचनाएँ

क्या कहा कि यह घर मेरा है?
जिसके रवि उगें जेलों में,
संध्या होवे वीरानों मे,
उसके कानों में क्यों कहने
आते हो? यह घर मेरा है?

है नील चंदोवा तना कि झूमर
झालर उसमें चमक रहे,
क्यों घर की याद दिलाते हो,
तब सारा रैन-बसेरा है?
जब चाँद मुझे नहलाता है,
सूरज रोशनी पिन्हाता है,
क्यों दीपक लेकर कहते हो,
यह तेरा दीपक लेकर कहते हो,
यह तेरा है, यह मेरा है?

ये आए बादल घूम उठे,
ये हवा के झोंके झूम उठे,
बिजली की चमचम पर चढ़कर,
गीले मोती भू चूम उठे;
फिर सनसनाहट का ठाठ बना,
आ गई हवा, कजली गाने,
आ गई रात, सौगात लिए,
ये गुलसबो मासूम उठे।
इतने में कोयल बोल उठी,
अपनी तो दुनिया डोल उठी,
यह अंधकार का तरल प्यार
सिसकें बन आयीं जब मलार;
मत घर की याद दिलाओ तुम
अपना तो काला डेरा है।

कलरव, बरसात, हवा ठंडी,
मीठे दाने, खारे मोती,
सब कुछ ले, लौटाया न कभी,
घरवाला महज़ लुटेरा है।

हो मुकुट हिमालय पहनाता,
सागर जिसके पद धुलवाता,
यह बंधा बेड़ियों में मंदिर,
मस्जिद, गुस्र्द्वारा मेरा है।
क्या कहा कि यह घर मेरा है?

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