"अमर राष्ट्र -माखन लाल चतुर्वेदी": अवतरणों में अंतर
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|मृत्यु=[[30 जनवरी]], 1968 ई. | |मृत्यु=[[30 जनवरी]], 1968 ई. | ||
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|मुख्य रचनाएँ=कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, | |मुख्य रचनाएँ=कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, ग़रीब इरादे | ||
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छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, | छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, | ||
यह लुटिया-डोरी ले अपनी, | यह लुटिया-डोरी ले अपनी, | ||
फिर वह पापड़ नहीं बेलने | फिर वह पापड़ नहीं बेलने, | ||
फिर वह माल पडे न जपनी। | फिर वह माल पडे न जपनी। | ||
यह जागृति तेरी तू ले-ले, | यह जागृति तेरी तू ले-ले, | ||
मुझको मेरा दे-दे सपना, | मुझको मेरा दे-दे सपना, | ||
तेरे शीतल सिंहासन से | तेरे शीतल सिंहासन से, | ||
सुखकर सौ युग ज्वाला तपना। | सुखकर सौ युग ज्वाला तपना। | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 56: | ||
जीवन-पथ अपना न सकोगे। | जीवन-पथ अपना न सकोगे। | ||
श्वेत केश? | श्वेत केश? भाई होने को, | ||
हैं ये श्वेत पुतलियाँ बाकी, | हैं ये श्वेत पुतलियाँ बाकी, | ||
आया था इस घर एकाकी, | आया था इस घर एकाकी, | ||
जाने दो मुझको एकाकी। | जाने दो मुझको एकाकी। | ||
अपना कृपा-दान एकत्रित | अपना कृपा-दान एकत्रित, | ||
कर लो, उससे जी बहला लें, | कर लो, उससे जी बहला लें, | ||
युग की होली माँग रही है, | युग की होली माँग रही है, | ||
पंक्ति 73: | पंक्ति 72: | ||
जिस रस में कीड़े पड़ते हों, | जिस रस में कीड़े पड़ते हों, | ||
उस रस पर विष हँस-हँस डालो | उस रस पर विष हँस-हँस डालो, | ||
आओ गले लगो, ऐ साजन! | आओ गले लगो, ऐ साजन! | ||
रेतो तीर, कमान सँभालो। | रेतो तीर, कमान सँभालो। | ||
हाय, राष्ट्र-मन्दिर में जाकर, | हाय, राष्ट्र-मन्दिर में जाकर, | ||
तुमने पत्थर का | तुमने पत्थर का प्रभु खोजा! | ||
लगे माँगने जाकर रक्षा | लगे माँगने जाकर रक्षा, | ||
और स्वर्ण-रूपे का बोझा? | और स्वर्ण-रूपे का बोझा? | ||
पंक्ति 87: | पंक्ति 86: | ||
तभी क्रान्ति का समुन खिलेगा। | तभी क्रान्ति का समुन खिलेगा। | ||
चट्टानें | चट्टानें चिंघाड़ें हँस-हँस, | ||
सागर गरजे मस्ताना-सा, | सागर गरजे मस्ताना-सा, | ||
प्रलय राग अपना भी उसमें, | प्रलय राग अपना भी उसमें, | ||
गूँथ चलें ताना-बाना- | गूँथ चलें ताना-बाना-सा। | ||
बहुत हुई यह आँख-मिचौनी, | बहुत हुई यह आँख-मिचौनी, | ||
पंक्ति 97: | पंक्ति 96: | ||
पार चला, लेकर युग-तरनी। | पार चला, लेकर युग-तरनी। | ||
मेरी आँखे, मातृ-भूमि से | मेरी आँखे, मातृ-भूमि से, | ||
नक्षत्रों तक, खीचें रेखा, | नक्षत्रों तक, खीचें रेखा, | ||
मेरी पलक-पलक पर गिरता | मेरी पलक-पलक पर गिरता, | ||
जग के उथल-पुथल का लेखा ! | जग के उथल-पुथल का लेखा! | ||
मैं पहला पत्थर मन्दिर का, | मैं पहला पत्थर मन्दिर का, | ||
अनजाना पथ जान रहा हूँ, | अनजाना पथ जान रहा हूँ, | ||
गूड़ँ नींव में, अपने कन्धों पर | गूड़ँ नींव में, अपने कन्धों पर, | ||
मन्दिर अनुमान रहा हूँ। | मन्दिर अनुमान रहा हूँ। | ||
मरण और सपनों में | मरण और सपनों में, | ||
होती है मेरे घर होड़ा-होड़ी, | होती है मेरे घर होड़ा-होड़ी, | ||
किसकी यह मरजी-नामरजी, | किसकी यह मरजी-नामरजी, | ||
पंक्ति 113: | पंक्ति 112: | ||
अमर राष्ट्र, उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र ! | अमर राष्ट्र, उद्दण्ड राष्ट्र, उन्मुक्त राष्ट्र ! | ||
यह मेरी बोली | यह मेरी बोली, | ||
यह `सुधार' `समझौतों' | यह `सुधार' `समझौतों' वाली, | ||
मुझको भाती नहीं ठठोली। | मुझको भाती नहीं ठठोली। | ||
09:17, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
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छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, |
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