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'''कराची''' [[सिंधु नदी|सिंध नदी]] के त्रिभुज पर स्थित अविभाजित [[भारत]] का तृतीय बंदरगाह तथा वर्तमान में [[पाकिस्तान]] के [[सिंध प्रांत]] की राजधानी और उस देश का प्रथम बंदरगाह है। यह बंदरगाह एक लंबी शैलभित्ति द्वारा [[अरब सागर]] की धाराओं तथा तीव्र पवनों से सुरक्षित है।  
'''कराची''' [[सिंधु नदी|सिंध नदी]] के त्रिभुज पर स्थित अविभाजित [[भारत]] का तृतीय [[बंदरगाह]] तथा वर्तमान में [[पाकिस्तान]] के [[सिंध प्रांत]] की राजधानी और उस देश का प्रथम बंदरगाह है। यह बंदरगाह एक लंबी शैलभित्ति द्वारा [[अरब सागर]] की धाराओं तथा तीव्र पवनों से सुरक्षित है।  
==इतिहास==
==इतिहास==
सन 1750 ई. के पूर्व इस स्थान पर किसी नगर के स्थापित होने के चिह्न नहीं मिलते। सिंध के प्राचीन बंदरगाह, शाह बंदर, के पट जाने के कारण इस स्थल पर स्थित एक गाँव के व्यापार को काफ़ी सहायता मिली। धीरे-धीरे यह नर के रूप में आया, जिसे तालपुर के मीरों ने अपने अधिकार में कर लिया। उन्होंने 'बंदरगाह' के मुख्य द्वार, मनोरा पर एक दुर्ग भी बनाया। सन 1843 ई. में जब [[अंग्रेज़|अंग्रज़ों]] ने इस नगर पर आधिपत्य जमाया, इसकी जनसंख्या केवल 14,000 थी। कराची आधुनिक युग का नगर है। सड़कें अपेक्षाकृत चौड़ी हैं, तथा इमारतों में नवीनता है। कुछ इमारते अच्छी हैं। कॉटन एक्सचेंज, एसेंबली हाउस, हवाई अड्डा आदि का निर्माण अर्वाचीन शैली पर हुआ है।
संभवत: '''प्राचीन क्रोकल''' जिसका [[मेगस्थनीज]] ने [[सिंध प्रदेश]] में उल्लेख किया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=141|url=}}</ref>सन 1750 ई. के पूर्व इस स्थान पर किसी नगर के स्थापित होने के चिह्न नहीं मिलते। [[सिंध]] के प्राचीन [[बंदरगाह]], शाह बंदर, के पट जाने के कारण इस स्थल पर स्थित एक [[गाँव]] के व्यापार को काफ़ी सहायता मिली। धीरे-धीरे यह नगर के रूप में आया, जिसे तालपुर के मीरों ने अपने अधिकार में कर लिया। उन्होंने 'बंदरगाह' के मुख्य द्वार, '''मनोरा''' पर एक [[दुर्ग]] भी बनाया। सन् 1843 ई. में जब [[अंग्रेज़|अंग्रज़ों]] ने इस नगर पर आधिपत्य जमाया, इसकी जनसंख्या केवल 14,000 थी। कराची '''आधुनिक युग का नगर''' है। सड़कें अपेक्षाकृत चौड़ी हैं, तथा इमारतों में नवीनता है। कुछ इमारतें अच्छी हैं। कॉटन एक्सचेंज, एसेंबली हाउस, हवाई अड्डा आदि का निर्माण अर्वाचीन शैली पर हुआ है।
==उद्योग और व्यापार==
==उद्योग और व्यापार==
पंजाब के नहरी क्षेत्रों में [[गेहूँ]] के उत्पादन की वृद्धि से कराची से गेहूँ का निर्यात अधिक बढ़ गया। [[गेहूँ]] के अतिरिक्त तिलहन, रुई, ऊन, चमड़े तथा खाल, हड्डी आदि वस्तुएँ यहाँ से निर्यात की जाती हैं। आयात की वस्तुओं में मशीनें, मोटर गाड़ियाँ पेट्रोल, चीनी, [[लोहा]] तथा लोहे के समान मुख्य हैं।
पंजाब के नहरी क्षेत्रों में [[गेहूँ]] के उत्पादन की वृद्धि से कराची से गेहूँ का निर्यात अधिक बढ़ गया। [[गेहूँ]] के अतिरिक्त [[तिलहन]], रुई, ऊन, चमड़े तथा खाल, हड्डी आदि वस्तुएँ यहाँ से निर्यात की जाती हैं। आयात की वस्तुओं में मशीनें, मोटर गाड़ियाँ पेट्रोल, चीनी, [[लोहा]] तथा लोहे के समान मुख्य हैं।




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12:01, 1 जून 2018 के समय का अवतरण

बंदरगाह, कराची

कराची सिंध नदी के त्रिभुज पर स्थित अविभाजित भारत का तृतीय बंदरगाह तथा वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रांत की राजधानी और उस देश का प्रथम बंदरगाह है। यह बंदरगाह एक लंबी शैलभित्ति द्वारा अरब सागर की धाराओं तथा तीव्र पवनों से सुरक्षित है।

इतिहास

संभवत: प्राचीन क्रोकल जिसका मेगस्थनीज ने सिंध प्रदेश में उल्लेख किया है।[1]सन 1750 ई. के पूर्व इस स्थान पर किसी नगर के स्थापित होने के चिह्न नहीं मिलते। सिंध के प्राचीन बंदरगाह, शाह बंदर, के पट जाने के कारण इस स्थल पर स्थित एक गाँव के व्यापार को काफ़ी सहायता मिली। धीरे-धीरे यह नगर के रूप में आया, जिसे तालपुर के मीरों ने अपने अधिकार में कर लिया। उन्होंने 'बंदरगाह' के मुख्य द्वार, मनोरा पर एक दुर्ग भी बनाया। सन् 1843 ई. में जब अंग्रज़ों ने इस नगर पर आधिपत्य जमाया, इसकी जनसंख्या केवल 14,000 थी। कराची आधुनिक युग का नगर है। सड़कें अपेक्षाकृत चौड़ी हैं, तथा इमारतों में नवीनता है। कुछ इमारतें अच्छी हैं। कॉटन एक्सचेंज, एसेंबली हाउस, हवाई अड्डा आदि का निर्माण अर्वाचीन शैली पर हुआ है।

उद्योग और व्यापार

पंजाब के नहरी क्षेत्रों में गेहूँ के उत्पादन की वृद्धि से कराची से गेहूँ का निर्यात अधिक बढ़ गया। गेहूँ के अतिरिक्त तिलहन, रुई, ऊन, चमड़े तथा खाल, हड्डी आदि वस्तुएँ यहाँ से निर्यात की जाती हैं। आयात की वस्तुओं में मशीनें, मोटर गाड़ियाँ पेट्रोल, चीनी, लोहा तथा लोहे के समान मुख्य हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

“खण्ड 2”, हिन्दी विश्वकोश, 1960 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 419।

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 141 |

बाहरी कड़ियाँ

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