"पूतना": अवतरणों में अंतर
('{{पुनरीक्षण}} {{tocright}} '''पूतना''' कंस की दासी थी जिसे उसने [[...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "छः" to "छह") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Putana.jpg|thumb|पूतना [[कृष्ण|बाल कृष्ण]] को दूध पिलाते हुए|250px|right]] | |||
'''पूतना''' [[कंस]] की दासी थी, जिसे उसने [[कृष्ण]] को मारने के उद्देश्य से [[गोकुल]] भेजा था। इसके संबंध में कई प्रकार के विवरण मिलते हैं। एक जगह इसे कंस की बहन और घटोदर राक्षस की पत्नी बताया गया है। आदि पुराण पूतना को कैतवी राक्षस की पुत्री और कंस की पत्नी की सखी बताता है। एक अन्य [[पुराण]] के अनुसार पूतना पूर्वजन्म में [[बलि|राजा बलि]] की पुत्री थी और इसका नाम रत्नमाला था। बलि के यहाँ यज्ञ के समय वामन को देखकर इसकी इच्छा हुई कि वामन मेरा पुत्र हो और मैं उसे स्तनपान कराऊं। उसकी यही इच्छा कृष्णावतार में पूरी हुई। | |||
'''पूतना''' [[कंस]] की दासी थी जिसे उसने [[कृष्ण]] को मारने के उद्देश्य से [[गोकुल]] भेजा था। इसके संबंध में कई प्रकार के विवरण मिलते हैं। एक जगह इसे कंस की बहन और घटोदर राक्षस की पत्नी बताया गया है। | |||
;अन्य कथा के अनुसार | ;अन्य कथा के अनुसार | ||
एक अन्य कथा के अनुसार यह कालभीरु ऋषि की कन्या चारुमती थी। पिता ने इसका | एक अन्य कथा के अनुसार यह कालभीरु [[ऋषि]] की कन्या चारुमती थी। पिता ने इसका विवाह काक्षीवन ऋषि के साथ कर दिया। एक बार जब काक्षीवन तीर्थ यात्रा पर गए थे तो चारुमती का एक शूद्र से संबंध हो गया। लौटने पर जब ऋषि को इसका पता चला तो उन्होंने अपनी पत्नी को राक्षसी बन जाने का शाप दे दिया। उसके बहुत विनय करने पर ऋषि ने कृष्ण द्वारा उसे मुक्ति मिलने का आश्वासन दिया। | ||
==पूतना का गोकुल में जाना== | |||
[[कंस]] ढूंढ-ढूंढ कर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। उसने पूतना नाम की एक क्रूर राक्षसी को ब्रज में भेजा। कंस के भेजने पर पूतना सुंदर युवती का रूप धारण करके नंद के घर में घुसी और विष लगे अपने स्तनों से कृष्ण को दूध पिलाने लगी। [[गोकुल]] में पहुँच कर वह सीधे [[नन्दबाबा]] के महल में गई और शिशु के रूप में सोते हुये [[श्रीकृष्ण]] को गोद में उठाकर अपना दूध पिलाने लगी। उसकी मनोहरता और सुन्दरता ने [[यशोदा]] और [[रोहिणी]] को भी मोहित कर लिया, इसलिये उन्होंने बालक को उठाने और [[दूध]] पिलाने से नहीं रोका। | |||
==पूतना वध== | ==पूतना वध== | ||
पूतना के स्तनों में हलाहल विष लगा हुआ था। अन्तर्यामी श्रीकृष्ण सब जान गये और वे क्रोध करके अपने दोनों हाथों से उसका कुच थाम कर उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे। उनके दुग्धपान से पूतना के मर्म स्थलों में अति पीड़ा होने लगी और उसके प्राण निकलने लगे। वह चीख-चीख कर कहने लगी- “अरे छोड़ दे! छोड़ दे! बस कर! बस कर!” वह बार-बार अपने हाथ पैर पटकने लगी और उसकी आँखें फट गईं। उसका सारा शरीर पसीने में लथपथ होकर व्याकुल हो गया। वह बड़े भयंकर स्वर में चिल्लाने लगी। उसके नेत्र उलट गये। उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो गया। उसकी चिल्लाहट का वेग बड़ा भयंकर था। उसके प्रभाव से पहाड़ों के साथ पृथ्वी और ग्रहों के साथ अन्तरिक्ष डगमगा उठा। सातों पाताल और दिशाएँ गूँज उठीं। बहुत-से लोग वज्रपात की आशंका से पृथ्वी पर गिर पड़े। परीक्षित ! इस प्रकार निशाचरी पूतना के स्तनों में इतनी पीड़ा हुई कि वह अपने को छिपा न सकी, राक्षसी रूप में प्रकट हो गयी। उसके शरीर से प्राण निकल गये, मुँह फट गया, बाल बिखर गये और हाथ-पाँव फ़ैल गये। जैसे [[इन्द्र]] के वज्र से घायल होकर वृत्रासुर गिर पड़ा था, वैसे ही वह बाहर गोष्ठ में आकर गिर पड़ी। पूतना के शरीर ने गिरते-गिरते भी छह कोस के भीतर के वृक्षों को कुचल डाला। यह बड़ी ही अद्भुत घटना हुई। पूतना का शरीर बड़ा भयानक था, उसका मुँह हल के समान तीखी और भयंकर दाढ़ों से युक्त था। उसके नथुने पहाड़ की गुफ़ा के समान गहरे थे और स्तन पहाड़ से गिरी हुई चट्टानों की तरह बड़े-बड़े थे। लाल-लाल बाल चारों ओर बिखरे हुए थे। आँखें अंधे कुऐं के समान गहरी, नितम्ब नदी के करार की तरह भयंकर; भुजाऐं, जाँघें और पैर नदी के पुल के समान तथा पेट सूखे हुए सरोवर की भाँति जान पड़ता था। पूतना के उस शरीर को देखकर सब-के-सब ग्वाल और गोपी डर गये। उसकी भयंकर चिल्लाहट सुनकर उनके हृदय, कान और सर तो पहले ही फट से रहे थे। जब [[गोपी|गोपियों]] ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण उसकी छाती पर निर्भय होकर खेल रहे हैं, तब वे बड़ी घबराहट और उतावली के साथ झटपट वहाँ पहुँच गयीं तथा श्रीकृष्ण को उठा लिया। | |||
{{इन्हेंभीदेखें|पूतना वध}} | |||
{{इन्हेंभीदेखें|पूतना वध|कंस|केशी|अघासुर|अरिष्टासुर}} | |||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 21: | ||
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | [[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | ||
[[Category:कृष्ण]] | [[Category:कृष्ण]] | ||
__INDEX__ | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
11:51, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
पूतना कंस की दासी थी, जिसे उसने कृष्ण को मारने के उद्देश्य से गोकुल भेजा था। इसके संबंध में कई प्रकार के विवरण मिलते हैं। एक जगह इसे कंस की बहन और घटोदर राक्षस की पत्नी बताया गया है। आदि पुराण पूतना को कैतवी राक्षस की पुत्री और कंस की पत्नी की सखी बताता है। एक अन्य पुराण के अनुसार पूतना पूर्वजन्म में राजा बलि की पुत्री थी और इसका नाम रत्नमाला था। बलि के यहाँ यज्ञ के समय वामन को देखकर इसकी इच्छा हुई कि वामन मेरा पुत्र हो और मैं उसे स्तनपान कराऊं। उसकी यही इच्छा कृष्णावतार में पूरी हुई।
- अन्य कथा के अनुसार
एक अन्य कथा के अनुसार यह कालभीरु ऋषि की कन्या चारुमती थी। पिता ने इसका विवाह काक्षीवन ऋषि के साथ कर दिया। एक बार जब काक्षीवन तीर्थ यात्रा पर गए थे तो चारुमती का एक शूद्र से संबंध हो गया। लौटने पर जब ऋषि को इसका पता चला तो उन्होंने अपनी पत्नी को राक्षसी बन जाने का शाप दे दिया। उसके बहुत विनय करने पर ऋषि ने कृष्ण द्वारा उसे मुक्ति मिलने का आश्वासन दिया।
पूतना का गोकुल में जाना
कंस ढूंढ-ढूंढ कर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। उसने पूतना नाम की एक क्रूर राक्षसी को ब्रज में भेजा। कंस के भेजने पर पूतना सुंदर युवती का रूप धारण करके नंद के घर में घुसी और विष लगे अपने स्तनों से कृष्ण को दूध पिलाने लगी। गोकुल में पहुँच कर वह सीधे नन्दबाबा के महल में गई और शिशु के रूप में सोते हुये श्रीकृष्ण को गोद में उठाकर अपना दूध पिलाने लगी। उसकी मनोहरता और सुन्दरता ने यशोदा और रोहिणी को भी मोहित कर लिया, इसलिये उन्होंने बालक को उठाने और दूध पिलाने से नहीं रोका।
पूतना वध
पूतना के स्तनों में हलाहल विष लगा हुआ था। अन्तर्यामी श्रीकृष्ण सब जान गये और वे क्रोध करके अपने दोनों हाथों से उसका कुच थाम कर उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे। उनके दुग्धपान से पूतना के मर्म स्थलों में अति पीड़ा होने लगी और उसके प्राण निकलने लगे। वह चीख-चीख कर कहने लगी- “अरे छोड़ दे! छोड़ दे! बस कर! बस कर!” वह बार-बार अपने हाथ पैर पटकने लगी और उसकी आँखें फट गईं। उसका सारा शरीर पसीने में लथपथ होकर व्याकुल हो गया। वह बड़े भयंकर स्वर में चिल्लाने लगी। उसके नेत्र उलट गये। उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो गया। उसकी चिल्लाहट का वेग बड़ा भयंकर था। उसके प्रभाव से पहाड़ों के साथ पृथ्वी और ग्रहों के साथ अन्तरिक्ष डगमगा उठा। सातों पाताल और दिशाएँ गूँज उठीं। बहुत-से लोग वज्रपात की आशंका से पृथ्वी पर गिर पड़े। परीक्षित ! इस प्रकार निशाचरी पूतना के स्तनों में इतनी पीड़ा हुई कि वह अपने को छिपा न सकी, राक्षसी रूप में प्रकट हो गयी। उसके शरीर से प्राण निकल गये, मुँह फट गया, बाल बिखर गये और हाथ-पाँव फ़ैल गये। जैसे इन्द्र के वज्र से घायल होकर वृत्रासुर गिर पड़ा था, वैसे ही वह बाहर गोष्ठ में आकर गिर पड़ी। पूतना के शरीर ने गिरते-गिरते भी छह कोस के भीतर के वृक्षों को कुचल डाला। यह बड़ी ही अद्भुत घटना हुई। पूतना का शरीर बड़ा भयानक था, उसका मुँह हल के समान तीखी और भयंकर दाढ़ों से युक्त था। उसके नथुने पहाड़ की गुफ़ा के समान गहरे थे और स्तन पहाड़ से गिरी हुई चट्टानों की तरह बड़े-बड़े थे। लाल-लाल बाल चारों ओर बिखरे हुए थे। आँखें अंधे कुऐं के समान गहरी, नितम्ब नदी के करार की तरह भयंकर; भुजाऐं, जाँघें और पैर नदी के पुल के समान तथा पेट सूखे हुए सरोवर की भाँति जान पड़ता था। पूतना के उस शरीर को देखकर सब-के-सब ग्वाल और गोपी डर गये। उसकी भयंकर चिल्लाहट सुनकर उनके हृदय, कान और सर तो पहले ही फट से रहे थे। जब गोपियों ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण उसकी छाती पर निर्भय होकर खेल रहे हैं, तब वे बड़ी घबराहट और उतावली के साथ झटपट वहाँ पहुँच गयीं तथा श्रीकृष्ण को उठा लिया।
इन्हें भी देखें: पूतना वध, कंस, केशी, अघासुर एवं अरिष्टासुर
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख