"कन्हैयालाल नंदन": अवतरणों में अंतर

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'''कन्हैयालाल नंदन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kanhaiya Lal Nandan'', जन्म: [[1 जुलाई]], [[1933]] [[उत्तर प्रदेश]] - मृत्यु: [[25 सितंबर]], [[2010]] [[दिल्ली]]) वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार, मंचीय कवि और गीतकार के रूप में मशहूर रहे। नंदन ने [[पत्रकारिता]] और [[साहित्य]] के क्षेत्र में अपना अलग मुकाम बनाया। पराग, सारिका और दिनमान जैसी पत्रिकाओं में बतौर संपादक अपनी छाप छोड़ने वाले नंदन ने कई किताबें भी लिखीं। कन्हैयालाल '''नंदन''' को [[भारत सरकार]] के [[पद्मश्री]] पुरस्कार के अलावा '''भारतेन्दु पुरस्कार''' और नेहरू फेलोशिप पुरस्कार से भी नवाजा गया। <ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/news/83126/83126.html |title=आज की ख़बर |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>  
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*वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार '''कन्हैयालाल नंदन''' का जन्म [[1 जुलाई]], [[1933]] में [[उत्तर प्रदेश]] के '''फतेहपुर ज़िले''' के परसदेपुर गांव में हुआ था।
*कन्हैयालाल मंचीय कवि और गीतकार के रूप में मशहूर रहे। नंदन ने पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में अपना अलग मुकाम बनाया। पराग, सारिका और दिनमान जैसी पत्रिकाओं में बतौर संपादक अपनी छाप छोड़ने वाले नंदन ने कई किताबें भी लिखीं।  
*कन्हैयालाल '''नंदन''' को भारत सरकार के [[पद्मश्री]] पुरस्कार के अलावा '''भारतेन्दु पुरस्कार''' और नेहरू फेलोशिप पुरस्कार से भी नवाजा गया। <ref>{{cite web |url=http://www.aajkikhabar.com/news/83126/83126.html |title=आज की ख़बर |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
कन्हैयालाल नंदन का जन्म एक जुलाई, 1933 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव में हुआ था। उनके परिवार में पत्नी और दो पुत्रियां हैं। उनकी एक पुत्री [[अमेरिका]] और दूसरी [[दिल्ली]] में ही रहती हैं। उनके एक करीबी सहयोगी के अनुसार नंदन स्वभाव से बेहद सरल और उच्च व्यक्तित्व के धनी थे। वह बतौर संपादक खोजी पत्रकारिता और नए प्रयोगों के पक्षधर थे। उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत मशहूर पत्रिका 'धर्मयुग' से की। पत्रकारिता में क़दम रखने से पहले अध्यापन से जुड़े थे।  
कन्हैयालाल नंदन का जन्म 1 जुलाई, 1933 में [[उत्तर प्रदेश]] के [[फतेहपुर ज़िला|फतेहपुर ज़िले]] के परसदेपुर गांव में हुआ था। उनके [[परिवार]] में पत्नी और दो पुत्रियां हैं। उनकी एक पुत्री [[अमेरिका]] और दूसरी [[दिल्ली]] में ही रहती हैं। उनके एक क़रीबी सहयोगी के अनुसार नंदन स्वभाव से बेहद सरल और उच्च व्यक्तित्व के धनी थे। वह बतौर संपादक खोजी पत्रकारिता और नए प्रयोगों के पक्षधर थे। उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत मशहूर पत्रिका '[[धर्मयुग पत्रिका|धर्मयुग]]' से की। पत्रकारिता में क़दम रखने से पहले अध्यापन से जुड़े थे।  
 
====शिक्षा====
'''शिक्षा'''<br />
कन्हैयालाल नंदन ने डी.ए.वी. कॉलेज, [[कानपुर]] से बी.ए, प्रयाग विश्वविद्यालय, [[इलाहाबाद]] से एम.ए और भावनगर विश्वविद्यालय से पीएच.डी. किया। <ref>{{cite web |url=http://hindini.com/nandan/?page_id=2 |title=WPSLIDER |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
====अध्यापन====
कन्हैयालाल नंदन ने डी.ए.वी.कॉलेज, [[कानपुर]] से बी.ए, प्रयाग विश्वविद्यालय, [[इलाहाबाद]] से एम.ए और [[भावनगर]] यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. किया है। <ref>{{cite web |url=http://hindini.com/nandan/?page_id=2 |title=WPSLIDER |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
चार वर्षों तक [[बंबई विश्वविद्यालय]], बंबई से संलग्न कॉलेजों में हिन्दी-अध्यापन के बाद [[1961]] से [[1972]] तक 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रकाशन समूह' के ‘धर्मयुग’ में सहायक संपादक रहे। [[1972]] से [[दिल्ली]] में क्रमश: ’[[पराग (पत्रिका)|पराग]]’, ’सारिका’ और दिनमान के संपादक रहे। तीन वर्ष 'दैनिक नवभारत टाइम्स' में फीचर सम्पादन किया। 6 वर्ष तक हिन्दी ‘संडे मेल’ में प्रधान संपादक रहने के बाद [[1994]] से ‘इंडसइंड मीडिया’ में निर्देशक रहे।
 
====पत्रकारिता====
'''अध्यापन'''<br />
* 1961 से 1972 तक टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रकाशन समूह के धर्मयुग में सहायक संपादक।
 
चार वर्षों तक बंबई विश्वविद्यालय, बंबई से संलग्न कॉलेजों में हिंदी-अध्यापन के बाद [[1961]] से [[1972]] तक 'टाइम्स ऑफ इंडिया प्रकाशन समूह' के ‘धर्मयुग’ में सहायक संपादक रहे। [[1972]] से [[दिल्ली]] में क्रमश: ’पराग’, ’सारिका’ और दिनमान के संपादक रहे। तीन वर्ष 'दैनिक नवभारत टाइम्स' में फीचर सम्पादन किया। छ: वर्ष तक हिंदी ‘संडे मेल’ में प्रधान संपादक रह चुकने के बाद 1994 से ‘इंडसइंड मीडिया’ में डायरेक्टर रहे।
 
'''पत्रकारिता'''<br />
 
* 1961 से 1972 तक टाइम्स ऑफ इंडिया प्रकाशन समूह के धर्मयुग में सहायक संपादक।
* 1972 से दिल्ली में क्रमश: पराग, सारिका और दिनमान के संपादक।
* 1972 से दिल्ली में क्रमश: पराग, सारिका और दिनमान के संपादक।
* तीन वर्ष तक दैनिक नवभारत टाइम्स में फीचर संपाद।
* तीन वर्ष तक दैनिक नवभारत टाइम्स में फीचर संपाद।
* 6 वर्ष तक हिन्दी संडे मेल में प्रधान संपादक।
* 6 वर्ष तक हिन्दी संडे मेल में प्रधान संपादक।
* 1995 से इंडसइंड मीडिया में निदेशक के पद पर।<ref>{{cite web |url=http://nandankl.mywebdunia.com/2008/06/30/1214820840000.html |title=वेब दुनिया |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
* 1995 से इंडसइंड मीडिया में निदेशक के पद पर।<ref>{{cite web |url=http://nandankl.mywebdunia.com/2008/06/30/1214820840000.html |title=वेब दुनिया |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
 
==रचनाएँ==
==रचनाएँ==
सत्तर के दशक से अस्सी के दशक के शुरू के काल में बचपन व्यतीत करने वाले ऐसे करोड़ों [[हिन्दी]] भाषी लोग होंगे जिन्होंने अपने बचपन में नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली बाल-पत्रिका पराग के द्वारा बाल-साहित्य के मायावी, कल्पनात्मक और ज्ञानवर्धक संसार में गोते लगाकर गंभीर और श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने की ओर क़दम बढ़ाने के लिये आरम्भिक शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। इसी पीढ़ी ने थोड़ा बड़े होकर नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं सारिका और दिनमान के ज़रिये देश-विदेश का साहित्य पढ़ने और सम-सामयिक विषयों को समझने की समझ विकसित की।<ref>{{cite web |url=http://swaarth.wordpress.com/2010/09/25/kanhaiyalalnandan/ |title=स्वार्थ |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
सत्तर के दशक से अस्सी के दशक के शुरू के काल में बचपन व्यतीत करने वाले ऐसे करोड़ों [[हिन्दी]] भाषी लोग होंगे जिन्होंने अपने बचपन में नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली बाल-पत्रिका पराग के द्वारा बाल-साहित्य के मायावी, कल्पनात्मक और ज्ञानवर्धक संसार में गोते लगाकर गंभीर और श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने की ओर क़दम बढ़ाने के लिये आरम्भिक शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। इसी पीढ़ी ने थोड़ा बड़े होकर नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं सारिका और दिनमान के ज़रिये देश-विदेश का साहित्य पढ़ने और सम-सामयिक विषयों को समझने की समझ विकसित की।<ref>{{cite web |url=http://swaarth.wordpress.com/2010/09/25/kanhaiyalalnandan/ |title=स्वार्थ |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
<poem>ज़िन्दगी की ये ज़िद है
<poem>ज़िन्दगी की ये ज़िद है
ख़्वाब बन के उतरेगी।
ख़्वाब बन के उतरेगी।
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वो भी ज़िद पे आमादा
वो भी ज़िद पे आमादा
ज़िन्दगी को कैसे भी
ज़िन्दगी को कैसे भी
अपने घर बुलाना है।-'''कन्हैया लाल नंदन'''<ref>{{cite web |url=http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/09/blog-post_25.html |title=सम्वेदना के स्वर |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=हिन्दी}}</ref></poem>
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==मृत्यु==
'''गुज़रा कहाँ कहाँ से''' जैसी प्रसिद्ध कृति की रचना करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैयालाल नंदन [[25 सितंबर]], [[2010]] को [[दिल्ली]] में मृत्यु का दामन पकड़ जीवन का साथ छोड़ गये। वे किडनी की बीमारी से बरसों से जूझ रहे थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी अपने परिचितों और प्रशंसकों को इस बात की हवा भी नहीं लगने दी। एक घातक बीमारी के साथ पूरी ज़िंदादिली के साथ जीते रहे।
==प्रसिद्ध व्यक्तियों के विचार==
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==मृत्यु==
'''गुज़रा कहाँ कहाँ से''' जैसी प्रसिद्ध कृति की रचना करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कन्हैयालाल नंदन [[25 सितंबर]], [[2010]] को [[दिल्ली]] में मृत्यु का दामन पकड़ जीवन का साथ छोड़ गये। वे किडनी की बीमारी से बरसों से जूझ रहे थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी अपने परिचितों और प्रशंसकों को इस बात की हवा भी नहीं लगने दी। एक घातक बीमारी के साथ पूरी ज़िंदादिली के साथ जीते रहे।
==प्रसिद्ध व्यक्तियों के विचार==
<blockquote>संचार माध्यमों से परे है एक कवि और रचनाकार नंदन जो वक़्त की रेत पर अपने क़दमों के निशान अमिट रूप में छोड़ता जा रहा है। जब भी मेरे आगे कोई चुनौती भरी घड़ी आ जाती है तब मैं उनकी कविता की कोई न कोई पंक्ति याद कर लिया करता हूँ। -'''इंद्रकुमार गुजराल'''</blockquote>
<blockquote>संचार माध्यमों से परे है एक कवि और रचनाकार नंदन जो वक़्त की रेत पर अपने क़दमों के निशान अमिट रूप में छोड़ता जा रहा है। जब भी मेरे आगे कोई चुनौती भरी घड़ी आ जाती है तब मैं उनकी कविता की कोई न कोई पंक्ति याद कर लिया करता हूँ। -'''इंद्रकुमार गुजराल'''</blockquote>


<blockquote>नंदन उन कवियों में से हैं जो कविता के एकांत में नहीं मंझधार में उपस्थित रहते हैं और कविता में उसी तरह भीगते रहते हैं, जैसे नदी अपने पानी में भीगती रहती है और कविता-हीनता के बीच कविता लगातार बनी रहती है। -'''कमलेश्वर'''</blockquote>
<blockquote>नंदन उन कवियों में से हैं जो कविता के एकांत में नहीं मंझधार में उपस्थित रहते हैं और कविता में उसी तरह भीगते रहते हैं, जैसे नदी अपने पानी में भीगती रहती है और कविता-हीनता के बीच कविता लगातार बनी रहती है। -'''[[कमलेश्वर]]'''</blockquote>
 
<blockquote>मैं नंदन जी की शायरी से लुत्फ़अंदोज़ हो चुका हूँ और उनसे मिलकर बेहद मसर्रत हासिल होती है। वह एक रोशन ख़याल और भरपूर शख्सियत के मालिक हैं। मेरी दुआ है कि उनकी क़लम हक़गोई और बेबाकी के साथ चलती रहे। मेरी दिली ख्‍़वाहिश है कि उनकी किताबें उर्दू में शाया की जायें- '''अली सरदार जाफरी''' </blockquote>


<blockquote>“नंदन जी की रचनाओं में जिस इंसान का चेहरा उभरता है वह जात और इलाकों की सीमाओं से मुक्त होकर पूरे आकाश और पूरी धरती के बीच सांस लेता नज़र आता है।”-'''निदा फ़ाज़ली'''</blockquote>
<blockquote>मैं नंदन जी की शायरी से लुत्फ़अंदोज़ हो चुका हूँ और उनसे मिलकर बेहद मसर्रत हासिल होती है। वह एक रोशन ख़याल और भरपूर शख़्सियत के मालिक हैं। मेरी दुआ है कि उनकी क़लम हक़गोई और बेबाकी के साथ चलती रहे। मेरी दिली ख्‍़वाहिश है कि उनकी किताबें उर्दू में शाया की जायें- '''[[अली सरदार जाफ़री]]''' </blockquote>


<blockquote>“वे कल-साहित्य के मर्मज्ञ हैं - अखाड़ेदार पत्रकार हैं - धारदार कवि हैं - फिर नंदनजी ‘साहित्यिक माफ़ियायों’ के काम के क्यों नहीं हैं? इस यक्ष प्रश्न का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है।”-'''डा.कृष्णदत्त पालीवाल'''</blockquote>
<blockquote>“नंदन जी की रचनाओं में जिस इंसान का चेहरा उभरता है वह जात और इलाक़ों की सीमाओं से मुक्त होकर पूरे आकाश और पूरी धरती के बीच सांस लेता नज़र आता है।”-'''[[निदा फ़ाज़ली]]'''</blockquote>
<blockquote>“कन्हैयालाल नंदन उन एडीटरों में हैं जो मज़नून के लिये किसी अदीब का पीछा तो यों करते हैं जैसे कोई मनचला नौजवान किसी लड़की का पीछा कर रहा है। ऐसा ज़ालिम और कठोर एडीटर मैंने किसी और ज़ुबान में नहीं देखा। यह बात और है कि उनके मज़नून मांगने के अंदाज़ में रफ्‍़ता-रफ्‍़ता तब्‍दीली आती चली जाती है। पहले उनका प्यार भरा खत आयेगा ‘बंधुवर! आपका मज़नून फौरन चाहिये।’ फिर खट्टामिट्ठा फोन आयेगा, 'राजा! मज़नून अभी तक नहीं आया, फौरन भेजो।’ तीसरी मर्तबा लहजे में सख्ती, ’मुज्‍़तबा! अगर परसों तक तुम्हारा मज़नून नहीं आया तो मैं तुम्हारा लिखना-पढ़ना तो दूर चलना-फिरना तक दूभर कर दूंगा।’ एक बार यहाँ तक कहा, ’विश्वास करो, अगर कल तक तुम्हारा मज़नून नहीं आया तो मेरे हाथों तुम्हारा खून हो सकता है।’”-'''मज्‍़तबा हुसैन''' <ref>{{cite web |url=http://hindini.com/fursatiya/archives/151 |title=फुरसतिया |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=हिन्दी}}</ref></blockquote>


{{प्रचार}}
<blockquote>“वे कला-साहित्य के मर्मज्ञ हैं - अखाड़ेदार पत्रकार हैं - धारदार कवि हैं - फिर नंदनजी ‘साहित्यिक माफ़ियायों’ के काम के क्यों नहीं हैं? इस यक्ष प्रश्न का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है।”-'''डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल'''</blockquote>
{{लेख प्रगति
<blockquote>“कन्हैयालाल नंदन उन एडीटरों में हैं जो मज़नून के लिये किसी अदीब का पीछा तो यों करते हैं जैसे कोई मनचला नौजवान किसी लड़की का पीछा कर रहा है। ऐसा ज़ालिम और कठोर एडीटर मैंने किसी और ज़ुबान में नहीं देखा। यह बात और है कि उनके मज़नून मांगने के अंदाज़ में रफ्‍़ता-रफ्‍़ता तब्‍दीली आती चली जाती है। पहले उनका प्यार भरा खत आयेगा ‘बंधुवर! आपका मज़नून फौरन चाहिये।’ फिर खट्टामिट्ठा फ़ोन आयेगा, 'राजा! मज़नून अभी तक नहीं आया, फौरन भेजो।’ तीसरी मर्तबा लहजे में सख्ती, ’मुज्‍़तबा! अगर परसों तक तुम्हारा मज़नून नहीं आया तो मैं तुम्हारा लिखना-पढ़ना तो दूर चलना-फिरना तक दूभर कर दूंगा।’ एक बार यहाँ तक कहा, ’विश्वास करो, अगर कल तक तुम्हारा मज़नून नहीं आया तो मेरे हाथों तुम्हारा ख़ून हो सकता है।’”-'''मज्‍़तबा हुसैन''' <ref>{{cite web |url=http://hindini.com/fursatiya/archives/151 |title=फुरसतिया |accessmonthday=26 सितंबर |accessyear=2010 |last= |first= |authorlink= |format=एचटीएम |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref></blockquote>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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*[http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=13227&Itemid=43 कन्हैयालाल नंदन श्रद्धांजलि]
*[http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=13227&Itemid=43 कन्हैयालाल नंदन श्रद्धांजलि]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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[[Category:समकालीन कवि]]
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14:36, 24 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

कन्हैयालाल नंदन
पूरा नाम कन्हैयालाल नंदन
जन्म 1 जुलाई, 1933
जन्म भूमि फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 25 सितंबर, 2010
कर्म-क्षेत्र हिन्दी कविता, कविसम्मेलन और पत्रकारिता
मुख्य रचनाएँ लुकुआ का शाहनामा, घाट-घाट का पानी, आग के रंग आदि।
भाषा हिन्दी
विद्यालय डी.ए.वी.कॉलेज, कानपुर, प्रयाग विश्वविद्यालय, इलाहाबाद और भावनगर विश्वविद्यालय
शिक्षा बी.ए, एम.ए, पीएच.डी
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, भारतेन्दु पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पराग, सारिका और दिनमान जैसी पत्रिकाओं में बतौर संपादक अपनी छाप छोड़ने वाले श्री नंदन जी ने कई किताबें भी लिखीं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कन्हैयालाल नंदन की रचनाएँ

कन्हैयालाल नंदन (अंग्रेज़ी: Kanhaiya Lal Nandan, जन्म: 1 जुलाई, 1933 उत्तर प्रदेश - मृत्यु: 25 सितंबर, 2010 दिल्ली) वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार, मंचीय कवि और गीतकार के रूप में मशहूर रहे। नंदन ने पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में अपना अलग मुकाम बनाया। पराग, सारिका और दिनमान जैसी पत्रिकाओं में बतौर संपादक अपनी छाप छोड़ने वाले नंदन ने कई किताबें भी लिखीं। कन्हैयालाल नंदन को भारत सरकार के पद्मश्री पुरस्कार के अलावा भारतेन्दु पुरस्कार और नेहरू फेलोशिप पुरस्कार से भी नवाजा गया। [1]

जीवन परिचय

कन्हैयालाल नंदन का जन्म 1 जुलाई, 1933 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले के परसदेपुर गांव में हुआ था। उनके परिवार में पत्नी और दो पुत्रियां हैं। उनकी एक पुत्री अमेरिका और दूसरी दिल्ली में ही रहती हैं। उनके एक क़रीबी सहयोगी के अनुसार नंदन स्वभाव से बेहद सरल और उच्च व्यक्तित्व के धनी थे। वह बतौर संपादक खोजी पत्रकारिता और नए प्रयोगों के पक्षधर थे। उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत मशहूर पत्रिका 'धर्मयुग' से की। पत्रकारिता में क़दम रखने से पहले अध्यापन से जुड़े थे।

शिक्षा

कन्हैयालाल नंदन ने डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर से बी.ए, प्रयाग विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से एम.ए और भावनगर विश्वविद्यालय से पीएच.डी. किया। [2]

अध्यापन

चार वर्षों तक बंबई विश्वविद्यालय, बंबई से संलग्न कॉलेजों में हिन्दी-अध्यापन के बाद 1961 से 1972 तक 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रकाशन समूह' के ‘धर्मयुग’ में सहायक संपादक रहे। 1972 से दिल्ली में क्रमश: ’पराग’, ’सारिका’ और दिनमान के संपादक रहे। तीन वर्ष 'दैनिक नवभारत टाइम्स' में फीचर सम्पादन किया। 6 वर्ष तक हिन्दी ‘संडे मेल’ में प्रधान संपादक रहने के बाद 1994 से ‘इंडसइंड मीडिया’ में निर्देशक रहे।

पत्रकारिता

  • 1961 से 1972 तक टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रकाशन समूह के धर्मयुग में सहायक संपादक।
  • 1972 से दिल्ली में क्रमश: पराग, सारिका और दिनमान के संपादक।
  • तीन वर्ष तक दैनिक नवभारत टाइम्स में फीचर संपाद।
  • 6 वर्ष तक हिन्दी संडे मेल में प्रधान संपादक।
  • 1995 से इंडसइंड मीडिया में निदेशक के पद पर।[3]

रचनाएँ

सत्तर के दशक से अस्सी के दशक के शुरू के काल में बचपन व्यतीत करने वाले ऐसे करोड़ों हिन्दी भाषी लोग होंगे जिन्होंने अपने बचपन में नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली बाल-पत्रिका पराग के द्वारा बाल-साहित्य के मायावी, कल्पनात्मक और ज्ञानवर्धक संसार में गोते लगाकर गंभीर और श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने की ओर क़दम बढ़ाने के लिये आरम्भिक शिक्षा दीक्षा प्राप्त की। इसी पीढ़ी ने थोड़ा बड़े होकर नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं सारिका और दिनमान के ज़रिये देश-विदेश का साहित्य पढ़ने और सम-सामयिक विषयों को समझने की समझ विकसित की।[4]

ज़िन्दगी की ये ज़िद है
ख़्वाब बन के उतरेगी।
नींद अपनी ज़िद पर है
इस जनम में न आएगी
दो ज़िदों के साहिल पर
मेरा आशियाना है
वो भी ज़िद पे आमादा
ज़िन्दगी को कैसे भी
अपने घर बुलाना है।-कन्हैया लाल नंदन[5]

मृत्यु

गुज़रा कहाँ कहाँ से जैसी प्रसिद्ध कृति की रचना करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैयालाल नंदन 25 सितंबर, 2010 को दिल्ली में मृत्यु का दामन पकड़ जीवन का साथ छोड़ गये। वे किडनी की बीमारी से बरसों से जूझ रहे थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने कभी अपने परिचितों और प्रशंसकों को इस बात की हवा भी नहीं लगने दी। एक घातक बीमारी के साथ पूरी ज़िंदादिली के साथ जीते रहे।

प्रसिद्ध व्यक्तियों के विचार

प्रमुख रचनाएँ
मुझे मालूम है
समय की दहलीज
एक टुकड़ा बसन्त (कविता संग्रह)
अमृता शेरगिल (चित्रकला)
ज़रिया-नज़रिया (लेख)
अंतरंग (साक्षात्कार)
आग के रंग
धार के आर-पार
और कृति-स्मृति (समीक्षा)
घाट-घाट का पानी
देशी मन विदेशी धरती
धरती लाल गुलाबी चेहरे ( यात्रा संस्मरण)
लुकुआ का शाहनामा
घाट-घाट का पानी
बंजर धरती पर इंद्रधनुष
गुजरा कहाँ कहाँ से

संचार माध्यमों से परे है एक कवि और रचनाकार नंदन जो वक़्त की रेत पर अपने क़दमों के निशान अमिट रूप में छोड़ता जा रहा है। जब भी मेरे आगे कोई चुनौती भरी घड़ी आ जाती है तब मैं उनकी कविता की कोई न कोई पंक्ति याद कर लिया करता हूँ। -इंद्रकुमार गुजराल

नंदन उन कवियों में से हैं जो कविता के एकांत में नहीं मंझधार में उपस्थित रहते हैं और कविता में उसी तरह भीगते रहते हैं, जैसे नदी अपने पानी में भीगती रहती है और कविता-हीनता के बीच कविता लगातार बनी रहती है। -कमलेश्वर

मैं नंदन जी की शायरी से लुत्फ़अंदोज़ हो चुका हूँ और उनसे मिलकर बेहद मसर्रत हासिल होती है। वह एक रोशन ख़याल और भरपूर शख़्सियत के मालिक हैं। मेरी दुआ है कि उनकी क़लम हक़गोई और बेबाकी के साथ चलती रहे। मेरी दिली ख्‍़वाहिश है कि उनकी किताबें उर्दू में शाया की जायें- अली सरदार जाफ़री

“नंदन जी की रचनाओं में जिस इंसान का चेहरा उभरता है वह जात और इलाक़ों की सीमाओं से मुक्त होकर पूरे आकाश और पूरी धरती के बीच सांस लेता नज़र आता है।”-निदा फ़ाज़ली

“वे कला-साहित्य के मर्मज्ञ हैं - अखाड़ेदार पत्रकार हैं - धारदार कवि हैं - फिर नंदनजी ‘साहित्यिक माफ़ियायों’ के काम के क्यों नहीं हैं? इस यक्ष प्रश्न का मेरे पास कोई उत्तर नहीं है।”-डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल

“कन्हैयालाल नंदन उन एडीटरों में हैं जो मज़नून के लिये किसी अदीब का पीछा तो यों करते हैं जैसे कोई मनचला नौजवान किसी लड़की का पीछा कर रहा है। ऐसा ज़ालिम और कठोर एडीटर मैंने किसी और ज़ुबान में नहीं देखा। यह बात और है कि उनके मज़नून मांगने के अंदाज़ में रफ्‍़ता-रफ्‍़ता तब्‍दीली आती चली जाती है। पहले उनका प्यार भरा खत आयेगा ‘बंधुवर! आपका मज़नून फौरन चाहिये।’ फिर खट्टामिट्ठा फ़ोन आयेगा, 'राजा! मज़नून अभी तक नहीं आया, फौरन भेजो।’ तीसरी मर्तबा लहजे में सख्ती, ’मुज्‍़तबा! अगर परसों तक तुम्हारा मज़नून नहीं आया तो मैं तुम्हारा लिखना-पढ़ना तो दूर चलना-फिरना तक दूभर कर दूंगा।’ एक बार यहाँ तक कहा, ’विश्वास करो, अगर कल तक तुम्हारा मज़नून नहीं आया तो मेरे हाथों तुम्हारा ख़ून हो सकता है।’”-मज्‍़तबा हुसैन [6]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आज की ख़बर (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010।
  2. WPSLIDER (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010।
  3. वेब दुनिया (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010।
  4. स्वार्थ (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010।
  5. सम्वेदना के स्वर (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010।
  6. फुरसतिया (हिन्दी) (एचटीएम)। । अभिगमन तिथि: 26 सितंबर, 2010।

बाहरी कड़ियाँ

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