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'''भद्रावती''' [[मध्य प्रदेश]] के ज़िला चाँदा में स्थित है। यह वर्धा-काजीपेट रेल-पथ पर भांदक या भांडक नामक स्थान का प्राचीन नाम है। | |||
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*[[कनिंघम]] महोदय के अनुसार चौथीं-पाँचवीं शती में वाकाटक नरेशों की राजधानी इसी स्थान पर थी। | *[[कनिंघम]] महोदय के अनुसार चौथीं-पाँचवीं शती में वाकाटक नरेशों की राजधानी इसी स्थान पर थी। | ||
* | *टि. विसेंट स्थिम के अनुसार वाकाटकों की राजधानी वाकाटकपुर में थी, जो ज़िला रीवा के निकट है। | ||
*चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] | *चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] सन् 639 ई. में भद्रावती पहुँचा था उसने 100 संघारामों का विवरण दिया है, जिसमें 1,400 भिक्षु निवास करते थे। उस समय भद्रावती का राजा सोमवंशीय था। | ||
*युवानच्वांग ने भद्रावती को [[कोसल]] की राजधानी बताया है। | *युवानच्वांग ने भद्रावती को [[कोसल]] की राजधानी बताया है। | ||
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*ये शैलकृत हैं और उनके गर्भगृह में [[बुद्ध]] की विशाल मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। | *ये शैलकृत हैं और उनके गर्भगृह में [[बुद्ध]] की विशाल मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। | ||
*इनमें भिक्षुओं के निवास के लिए भी प्रकोष्ठ बने हुए हैं। | *इनमें भिक्षुओं के निवास के लिए भी प्रकोष्ठ बने हुए हैं। | ||
*एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि इन गुफ़ाओं का निर्माण [[बौद्ध]] राजा सूर्य घोष ने करवाया था। | *एक [[अभिलेख]] से ज्ञात होता है कि इन गुफ़ाओं का निर्माण [[बौद्ध]] राजा सूर्य घोष ने करवाया था। | ||
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*यहाँ आज भी बौद्ध अवशेष विस्तृत खण्डहरों के रूप में मौजूद हैं। | *यहाँ आज भी [[बौद्ध]] [[अवशेष]] विस्तृत खण्डहरों के रूप में मौजूद हैं। | ||
*भांडक में पार्श्वनाथ का [[जैन]] | *भांडक में पार्श्वनाथ का [[जैन मंदिर]] भी है, जिसके निकट एक सरोवर से अनेक प्राचीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। | ||
*बौद्ध तथा जैन धर्म से सम्बन्धित अवशेषों के अतिरिक्त, भांडक में हिन्दू मन्दिरादि के भी अवशेष प्रचुरता से मिलते हैं। | *[[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] तथा [[जैन धर्म]] से सम्बन्धित अवशेषों के अतिरिक्त, भांडक में [[हिन्दू]] मन्दिरादि के भी अवशेष प्रचुरता से मिलते हैं। | ||
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*मंदिर की दीवारों के बाहरी भाग पर उकेरी गई शेषशायी [[विष्णु]] की मूर्ति भी [[कला]] का अद्भुत उदाहरण है। जैन मन्दिर के पास चंडिका का नष्ट-भ्रष्ट मंदिर है। | *मंदिर की दीवारों के बाहरी भाग पर उकेरी गई शेषशायी [[विष्णु]] की मूर्ति भी [[कला]] का अद्भुत उदाहरण है। जैन मन्दिर के पास चंडिका का नष्ट-भ्रष्ट मंदिर है। | ||
*भद्रावती के खंडहरों में उत्खनन कार्य अभी तक नहीं के बराबर हुआ है। व्यवस्थित रूप से खुदाई होने पर यहाँ से अवश्य ही अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकाश में लाया जा सकेगा। | *भद्रावती के खंडहरों में [[उत्खनन]] कार्य अभी तक नहीं के बराबर हुआ है। व्यवस्थित रूप से खुदाई होने पर यहाँ से अवश्य ही अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों को [[प्रकाश]] में लाया जा सकेगा। | ||
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11:21, 23 मार्च 2012 के समय का अवतरण
भद्रावती मध्य प्रदेश के ज़िला चाँदा में स्थित है। यह वर्धा-काजीपेट रेल-पथ पर भांदक या भांडक नामक स्थान का प्राचीन नाम है।
इतिहास
- कनिंघम महोदय के अनुसार चौथीं-पाँचवीं शती में वाकाटक नरेशों की राजधानी इसी स्थान पर थी।
- टि. विसेंट स्थिम के अनुसार वाकाटकों की राजधानी वाकाटकपुर में थी, जो ज़िला रीवा के निकट है।
- चीनी यात्री युवानच्वांग सन् 639 ई. में भद्रावती पहुँचा था उसने 100 संघारामों का विवरण दिया है, जिसमें 1,400 भिक्षु निवास करते थे। उस समय भद्रावती का राजा सोमवंशीय था।
- युवानच्वांग ने भद्रावती को कोसल की राजधानी बताया है।
गुफ़ाओं का निर्माण
- भांडक से एक मील पर बीजासन नामक तीन गुफ़ाएँ हैं।
- ये शैलकृत हैं और उनके गर्भगृह में बुद्ध की विशाल मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं।
- इनमें भिक्षुओं के निवास के लिए भी प्रकोष्ठ बने हुए हैं।
- एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि इन गुफ़ाओं का निर्माण बौद्ध राजा सूर्य घोष ने करवाया था।
प्राचीन अवशेष
- यहाँ आज भी बौद्ध अवशेष विस्तृत खण्डहरों के रूप में मौजूद हैं।
- भांडक में पार्श्वनाथ का जैन मंदिर भी है, जिसके निकट एक सरोवर से अनेक प्राचीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं।
- बौद्ध तथा जैन धर्म से सम्बन्धित अवशेषों के अतिरिक्त, भांडक में हिन्दू मन्दिरादि के भी अवशेष प्रचुरता से मिलते हैं।
- भद्रनाग का मन्दिर, जिसका अधिष्ठाता देव नाग है, जो प्राचीन वास्तु का श्रेष्ठ उदाहरण है। नाग की प्रतिमा अनेक फनों से युक्त है।
- मंदिर की दीवारों के बाहरी भाग पर उकेरी गई शेषशायी विष्णु की मूर्ति भी कला का अद्भुत उदाहरण है। जैन मन्दिर के पास चंडिका का नष्ट-भ्रष्ट मंदिर है।
- भद्रावती के खंडहरों में उत्खनन कार्य अभी तक नहीं के बराबर हुआ है। व्यवस्थित रूप से खुदाई होने पर यहाँ से अवश्य ही अनेक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकाश में लाया जा सकेगा।
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