"खंड काव्य": अवतरणों में अंतर
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'''खंड काव्य''' [[साहित्य]] में [[प्रबंध काव्य]] का एक रूप है। किसी घटना विशेष को लेकर, जो जीवन में घटित होती है, उस पर लिखा गया काव्य खंड काव्य कहा जाता है। | |||
==परिभाषा== | |||
'खंड काव्य' की [[संस्कृत साहित्य]] में जो एकमात्र परिभाषा उपलब्ध है, वह इस प्रकार है- | |||
<blockquote><poem>भाषा विभाषा नियमात् काव्यं सर्गसमुत्थितम्। | |||
एकार्थप्रवणै: पद्यै: संधि-साग्रयवर्जितम्। | |||
खंड काव्यं भवेत् काव्यस्यैक देशानुसारि च।</poem></blockquote> | |||
{{ | इस परिभाषा के अनुसार- "किसी [[भाषा]] या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक [[कथा]] का निरूपक ऐसा पद्यात्मक [[ग्रंथ]] जिसमें सभी संधियां न हों, वह 'खंड काव्य' है।" वह महाकाव्य के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार [[हिंदी]] के कतिपय आचार्य खंड काव्य ऐसे काव्य को मानते हैं, जिसकी रचना तो [[महाकाव्य]] के ढंग पर की गई हो, पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंड काव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है, जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो। | ||
== | 'खंड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है, जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में [[कवि]] को प्रभावित नहीं करता। कवि चरित नायक के जीवन की किसी सर्वोत्कृष्ट घटना से प्रभावित होकर जीवन के उस खंड विशेष का अपने काव्य में पूर्णतया उद्घाटन करता है। | ||
==काव्य के भेद== | |||
[[हिन्दी साहित्य]] में काव्य के तीन मुख्य भेद प्रचलित हैं- | |||
#[[महाकाव्य]] | |||
#खण्ड-काव्य | |||
#[[मुक्तक |मुक्तक काव्य]] । | |||
*खंड काव्य में मुख्य चरित्र की किसी एक प्रमुख विशेषता का चित्रण होने के कारण अधिक विविधता और विस्तार नहीं होता। | |||
*'मुक्तक काव्य' में कथा-सूत्र आवश्यक नहीं है। इसलिए उसमें घटना और चरित्र के अनिवार्य प्रसंग में भाव-योजना नहीं होती। वह किसी भाव-विशेष को आधार बनाकर की गई स्वतंत्र रचना है। | |||
*हिन्दी साहित्य में खंड काव्य [[प्रबंध काव्य]] का एक रूप है। | |||
*वस्तुत: खंड काव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है, जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो, कथा में एकांगिता <ref>साहित्य दर्पण के शब्दों में एकदेशीयता</ref> हो तथा कथा विन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो। | |||
*लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के '''प्रबंध काव्य''' को '''खंडकाव्य''' माना जाता है।<ref>{{cite book| last = गुप्त | first = परमेश्वरीलाल | title = हिन्दी विश्वकोश | edition = 1973 | publisher = नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = | chapter = }}</ref> | |||
==लक्षण== | |||
'काव्य-शास्त्र' में खंड काव्य के लक्षण गिना दिए गए हैं, जो निम्नानुसार हैं- | |||
*खंड काव्य के विषय में कहा गया है कि वह एक देशानुसारी होता है। यहाँ देश का अर्थ भाग या अंश है। | |||
*खंड काव्य में भी सर्ग होते हैं। हर सर्ग में [[छंद]] का बंधन इसमें भी होता है, लेकिन छंद परिवर्तन ज़रूरी नहीं है। प्रकृति वर्णन आदि हो सकता है, लेकिन वह भी आवश्यक नहीं है। | |||
==हिंदी साहित्य के खंड काव्य== | |||
;आदिकाल में रचित खंड काव्य | |||
#अब्दुर्रहमान कृत [[संदेश रासक|संदेशरासक]] | |||
#नरपतिनाल्ह कृत [[बीसलदेव रासो]] | |||
# जिनधर्मसुरि कृत थूलिभद्दफाग | |||
;भक्तिकाल में रचित खंड काव्य | |||
#[[नरोत्तमदास]] कृत [[सुदामाचरित]] | |||
#[[नंददास]] कृत [[भँवरगीत]], [[रुक्मिणी मंगल]] | |||
#[[तुलसीदास]] कृत [[पार्वती मंगल]], [[जानकी मंगल]] | |||
;रीतिकाल में रचित खंड काव्य | |||
#[[पद्माकर]] विरचित [[हिम्मत बहादुर विरुदावली]] | |||
;आधुनिक काल के खंड काव्य (भारतेंदु युग) | |||
#श्रीधर पाठक का [[एकांतवासी योगी (खण्डकाव्य)|एकांतवासी योगी]] | |||
#[[जगन्नाथदास 'रत्नाकर']] का [[हरिश्चंद्र (खण्डकाव्य)|हरिश्चंद्र]] | |||
;द्विवेदी युग में रचित खंड काव्य | |||
#[[मैथिलीशरण गुप्त]] : रंग में भंग, [[जयद्रथ वध (खण्डकाव्य) -गुप्त|जयद्रथ वध]], नलदमयंती, शकुंतला, किसान, अनाथ | |||
#[[सियारामशरण गुप्त]] : मौर्य विजय | |||
#[[रामनरेश त्रिपाठी]] : [[मिलन (खण्डकाव्य)|मिलन]], [[पथिक (खण्डकाव्य) -रामनरेश त्रिपाठी|पथिक]] | |||
#द्वारिका प्रसाद गुप्त : आत्मार्पण | |||
;छायावाद युग में रचित खंड काव्य | |||
#[[सुमित्रानंदन पंत]] : [[ग्रंथि]] | |||
#[[रामनरेश त्रिपाठी]] : [[स्वप्न]] | |||
#[[मैथिलीशरण गुप्त]] :[[पंचवटी]], अनध, वनवैभव, वक-संहार | |||
#अनूप शर्मा : सुनाल | |||
#[[सियारामशरण गुप्त]] : आत्मोत्सर्ग | |||
#[[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला]] : [[तुलसीदास (खण्डकाव्य)|तुलसीदास]] | |||
#शिवदास गुप्त : कीचक वध | |||
#श्याम लाल पाठक : कंसवध | |||
#[[रामचंद्रशुक्ल|रामचंद्रशुक्ल "सरस"]] : अभिमन्यु वध | |||
#गोकुल चंद्र शर्मा : प्रणवीर प्रताप | |||
#नाथूराम शंकर शर्मा : गर्भरण्डा रहस्य, वायस विजय | |||
;छायावादोत्तर युग में विरचित खंड काव्य | |||
#[[मैथिलीशरण गुप्त]] : नहुष, कर्बला, नकुल, हिडिम्बा | |||
#[[बालकृष्ण शर्मा नवीन|बालकृष्ण शर्मा "नवीन"]] : प्राणार्पण | |||
#सोहनलाल द्विवेदी : कुणाल | |||
#[[रामधारी सिंह दिनकर]] : कुरुक्षेत्र | |||
#श्याम नारायण पांडे : जय हनुमान | |||
#उदयशंकर भट्ट : कौन्तेय-कथा | |||
#आनंद मिश्र : चंदेरी का जौहर | |||
#गिरिजादत्त शुक्ल "गिरीश" : प्रयाण | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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खंड काव्य
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विवरण | साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप 'खंड काव्य' है। खंड काव्य में केवल एक प्रमुख कथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्थान नहीं मिलने पाता है। |
परिभाषा | संस्कृत साहित्यानुसार- ""किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों, वह 'खंड काव्य' है।" |
खंड काव्य | तुलसीदास, सुदामाचरित, भँवरगीत, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, जयद्रथ वध आदि। |
संबंधित लेख | कविता, काव्य, महाकाव्य, प्रबोधक काव्य, प्रबन्ध काव्य |
अन्य जानकारी | 'खंड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है, जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता। खंड काव्य में केवल एक प्रमुख कथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्थान नहीं मिलने पाता है। |
खंड काव्य साहित्य में प्रबंध काव्य का एक रूप है। किसी घटना विशेष को लेकर, जो जीवन में घटित होती है, उस पर लिखा गया काव्य खंड काव्य कहा जाता है।
परिभाषा
'खंड काव्य' की संस्कृत साहित्य में जो एकमात्र परिभाषा उपलब्ध है, वह इस प्रकार है-
भाषा विभाषा नियमात् काव्यं सर्गसमुत्थितम्।
एकार्थप्रवणै: पद्यै: संधि-साग्रयवर्जितम्।
खंड काव्यं भवेत् काव्यस्यैक देशानुसारि च।
इस परिभाषा के अनुसार- "किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों, वह 'खंड काव्य' है।" वह महाकाव्य के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार हिंदी के कतिपय आचार्य खंड काव्य ऐसे काव्य को मानते हैं, जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो, पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंड काव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है, जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो।
'खंड काव्य' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि इसमें मानव जीवन की किसी एक ही घटना की प्रधानता रहती है, जिसमें चरित नायक का जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित नहीं करता। कवि चरित नायक के जीवन की किसी सर्वोत्कृष्ट घटना से प्रभावित होकर जीवन के उस खंड विशेष का अपने काव्य में पूर्णतया उद्घाटन करता है।
काव्य के भेद
हिन्दी साहित्य में काव्य के तीन मुख्य भेद प्रचलित हैं-
- महाकाव्य
- खण्ड-काव्य
- मुक्तक काव्य ।
- खंड काव्य में मुख्य चरित्र की किसी एक प्रमुख विशेषता का चित्रण होने के कारण अधिक विविधता और विस्तार नहीं होता।
- 'मुक्तक काव्य' में कथा-सूत्र आवश्यक नहीं है। इसलिए उसमें घटना और चरित्र के अनिवार्य प्रसंग में भाव-योजना नहीं होती। वह किसी भाव-विशेष को आधार बनाकर की गई स्वतंत्र रचना है।
- हिन्दी साहित्य में खंड काव्य प्रबंध काव्य का एक रूप है।
- वस्तुत: खंड काव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है, जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो, कथा में एकांगिता [1] हो तथा कथा विन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो।
- लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के प्रबंध काव्य को खंडकाव्य माना जाता है।[2]
लक्षण
'काव्य-शास्त्र' में खंड काव्य के लक्षण गिना दिए गए हैं, जो निम्नानुसार हैं-
- खंड काव्य के विषय में कहा गया है कि वह एक देशानुसारी होता है। यहाँ देश का अर्थ भाग या अंश है।
- खंड काव्य में भी सर्ग होते हैं। हर सर्ग में छंद का बंधन इसमें भी होता है, लेकिन छंद परिवर्तन ज़रूरी नहीं है। प्रकृति वर्णन आदि हो सकता है, लेकिन वह भी आवश्यक नहीं है।
हिंदी साहित्य के खंड काव्य
- आदिकाल में रचित खंड काव्य
- अब्दुर्रहमान कृत संदेशरासक
- नरपतिनाल्ह कृत बीसलदेव रासो
- जिनधर्मसुरि कृत थूलिभद्दफाग
- भक्तिकाल में रचित खंड काव्य
- नरोत्तमदास कृत सुदामाचरित
- नंददास कृत भँवरगीत, रुक्मिणी मंगल
- तुलसीदास कृत पार्वती मंगल, जानकी मंगल
- रीतिकाल में रचित खंड काव्य
- पद्माकर विरचित हिम्मत बहादुर विरुदावली
- आधुनिक काल के खंड काव्य (भारतेंदु युग)
- श्रीधर पाठक का एकांतवासी योगी
- जगन्नाथदास 'रत्नाकर' का हरिश्चंद्र
- द्विवेदी युग में रचित खंड काव्य
- मैथिलीशरण गुप्त : रंग में भंग, जयद्रथ वध, नलदमयंती, शकुंतला, किसान, अनाथ
- सियारामशरण गुप्त : मौर्य विजय
- रामनरेश त्रिपाठी : मिलन, पथिक
- द्वारिका प्रसाद गुप्त : आत्मार्पण
- छायावाद युग में रचित खंड काव्य
- सुमित्रानंदन पंत : ग्रंथि
- रामनरेश त्रिपाठी : स्वप्न
- मैथिलीशरण गुप्त :पंचवटी, अनध, वनवैभव, वक-संहार
- अनूप शर्मा : सुनाल
- सियारामशरण गुप्त : आत्मोत्सर्ग
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : तुलसीदास
- शिवदास गुप्त : कीचक वध
- श्याम लाल पाठक : कंसवध
- रामचंद्रशुक्ल "सरस" : अभिमन्यु वध
- गोकुल चंद्र शर्मा : प्रणवीर प्रताप
- नाथूराम शंकर शर्मा : गर्भरण्डा रहस्य, वायस विजय
- छायावादोत्तर युग में विरचित खंड काव्य
- मैथिलीशरण गुप्त : नहुष, कर्बला, नकुल, हिडिम्बा
- बालकृष्ण शर्मा "नवीन" : प्राणार्पण
- सोहनलाल द्विवेदी : कुणाल
- रामधारी सिंह दिनकर : कुरुक्षेत्र
- श्याम नारायण पांडे : जय हनुमान
- उदयशंकर भट्ट : कौन्तेय-कथा
- आनंद मिश्र : चंदेरी का जौहर
- गिरिजादत्त शुक्ल "गिरीश" : प्रयाण
- गोपालप्रसाद व्यास : क़दम-क़दम बढ़ाए जा
- डॉ रुसाल : भोजराज
- नरेश मेहता : संशय की एक रात
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