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{{सूचना बक्सा वैज्ञानिक
;गैलिलियो/ गैलीलियो गैलिली
|चित्र=Galileo-Galilei.jpg
यूरोप में एक समय था जब रोम और यूनान की सभ्यताएं अपने पतन की ओर अग्रसर थीं। उसके बाद पूरा महाद्वीप अज्ञानता के अन्धकार में छुप गया। फ़िर समय ने करवट ली और साइंस और तकनीकी प्रगति ने यूरोप को इस अन्धकार से निकालकर रौशनी की ओर मोड़ा। इस रौशनी को पैदा करने में सूर्य की तरह जिस वैज्ञानिक ने योगदान दिया उसे गैलिलियो गैलीली के नाम से जाना जाता है।
|चित्र का नाम=गैलिलियो गैलीली
 
|पूरा नाम=गैलिलियो गैलीली
आधुनिक इटली के पीसा नामक शहर (पीसा की टेढ़ी मीनार के लिए प्रसिद्ध) में 15 फरवरी 1564 को गैलीलियो गैलिली का जन्म हुआ। उनके पिता उन्हें चिकित्सा विज्ञान पढाना चाहते थे, किंतु उनका शौक गणित और फिलोसफी में था। उन्होंने चिकित्सा की डिग्री हासिल किए बिना पीसा छोड़ दिया था।
|अन्य नाम=
 
|जन्म=15 फ़रवरी, 1564
अधिकांश लोग गैलीलियो को एक खगोलविज्ञानी के रूप में याद करते हैं जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली तथा खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया और साथ ही अपने प्रेक्षणों से ऐसे चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए जिसने खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक खगोल विज्ञान की नींव रखी। पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि खगोलविज्ञानी होने के अलावा वे एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक भी थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसीलिए गैलीलियो को 'आधुनिक खगोल विज्ञान के जनक', 'आधुनिक भौतिकी का पिता' या 'विज्ञान का पिता' के रूप में संबोधित किया जाता है।
|जन्म भूमि=पीसा, [[इटली]]
 
|मृत्यु=8 जनवरी, 1642
गैलीलियो ने भौतिक विज्ञान में गतिकी के समीकरण स्थापित किए। उनका जड़त्व का नियम जगप्रसिद्ध है। उन्होंने पीसा की मीनार के अपने प्रसिद्ध प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि वस्तुओं के गिरने की गति उनके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती। उन्होंने पहली बार सिद्ध किया की निर्वात में प्रक्षेप्य का पथ पर्वलयकार होता है।
|मृत्यु स्थान=इटली
 
|अभिभावक=
गैलिलियो ने उच्च कोटि का कम्पास बनाया जो समुंद्री यात्रियों के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुआ। उसके अन्य आविष्कारों में थर्मामीटर, सूक्ष्मदर्शी, पेंडुलम घड़ी इत्यादि हैं। भौतिक नियमों के बारे में बताया की वे उन सभी निकायों में, जो नियत गति से चलते हैं, समान रूप से लागू होते हैं। यह सापेक्षता के सिद्धांत की प्रारंभिक झलक थी।
|पति/पत्नी=
 
|संतान=
गैलीलियो को सूक्ष्म गणितीय विश्लेषण करने का कौशल संभवत: अपने पिता विन्सैन्जो गैलिली से विरासत में आनुवांशिक रूप में तथा कुछ उनकी कार्यशैली को क़रीब से देख कर मिला होगा। विन्सैन्जो एक जाने-माने संगीत विशेषज्ञ थे और ‘ल्यूट’ नामक वाद्य यंत्र बजाते थे जिसने बाद में गिटार और बैन्जो का रूप ले लिया। उन्होंने भौतिकी में पहली बार ऐसे प्रयोग किए जिनसे 'अरैखिक संबंध' का प्रतिपादन हुआ। तब यह ज्ञात था कि किसी वाद्य यंत्र की तनी हुई डोर (या तार) के तनाव और उससे निकलने वाली आवृत्ति में एक संबंध होता है, आवृत्ति तनाव के वर्ग के समानुपाती होती है। इस तरह संगीत के सिद्धांत में गणित की थोड़ी बहुत पैठ थी। इससे प्रेरित होकर गैलीलियो ने पिता के कार्य को आगे बढ़ाया। माना जाता है कि गैलिलियो ने ही पहली बार कहा कि सभी प्राकृतिक नियम गणितीय नियमों का पालन करते हैं। उसने एक जगह लिखा, 'फिलोसोफी की इस विशाल किताब को ब्रह्माण्ड ने लिखी है और यह गणितीय भाषा में है (भगवान की भाषा गणित है)। इसके पात्र वृत्त, त्रिभुज और दूसरे ज्यामिति आकार हैं।
|कर्म भूमि=
 
|कर्म-क्षेत्र=खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ
गैलीलियो ने दर्शन शास्त्र का भी गहन अध्ययन किया था साथ ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे। पर वे अपने प्रयोगों के परिणामों को कैसे नकार सकते थे जो पुरानी मान्यताओं के विरुद्ध जाते थे और वे इनकी पूरी ईमानदारी के साथ व्याख्या करते थे। उनकी चर्च के प्रति निष्ठा के बावजूद उनका ज्ञान और विवेक उन्हें किसी भी पुरानी अवधारणा को बिना प्रयोग और गणित के तराजू में तोले मानने से रोकता था। चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा समझा। पर गैलीलियो की इस सोच ने मनुष्य की चिंतन प्रक्रिया में नया मोड़ ला दिया। स्वयं गैलीलियो अपने विचारों को बदलने को तैयार हो जाते यदि उनके प्रयोगों के परिणाम ऐसा इशारा करते। अपने प्रयोगों को करने के लिए गैलीलियो ने लंबाई और समय के मानक तैयार किए ताकि यही प्रयोग अन्यत्र जब दूसरी प्रयोगशालाओं में दुहराए जाएं तो परिणामों की पुनरावृत्ति द्वारा उनका सत्यापन किया जा सके।
|मुख्य रचनाएँ=
 
|विषय=
गैलीलियो ने प्रकाश की गति नापने का भी प्रयास किया और तत्संबंधी प्रयोग किए। गैलीलियो व उनका एक सहायक दो भिन्न पर्वत शिखरों पर कपाट लगी लालटेन लेकर रात में चढ़ गए। सहायक को निर्देश दिया गया था कि जैसे ही उसे गैलीलियो की लालटेन का प्रकाश दिखे उसे अपनी लालटेन का कपाट खोल देना था। गैलीलियो को अपने कपाट खोलने व सहायक की लालटेन का प्रकाश दिखने के बीच का समय अंतराल मापना था- पहाड़ों के बीच की दूरी उन्हें ज्ञात थी। इस तरह उन्होंने प्रकाश की गति ज्ञात की।
|खोज=
 
|भाषा=
पर गैलीलियो – गैलीलियो ठहरे – वे इतने से कहां संतुष्ट होने वाले थे। अपने प्रायोगिक निष्कर्ष को दुहराना जो था। इस बार उन्होंने ऐसी दो पहाड़ियों का चयन किया जिनके बीच की दूरी कहीं ज्यादा थी। पर आश्चर्य, इस बार भी समय अंतराल पहले जितना ही आया। गैलीलियो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रकाश को चलने में लग रहा समय उनके सहायक की प्रतिक्रिया के समय से बहुत कम होगा और इस प्रकार प्रकाश का वेग नापना उनकी युक्ति की संवेदनशीलता के परे था। पर गैलीलियो द्वारा बृहस्पति के चंद्रमाओं के बृहस्पति की छाया में आ जाने से उन पर पड़ने वाले ग्रहण के प्रेक्षण से ओल रोमर नामक हॉलैंड के खगोलविज्ञानी को एक विचार आया। उन्हें लगा कि इन प्रेक्षणों के द्वारा प्रकाश का वेग ज्ञात किया जा सकता है। सन् 1675 में उन्होंने यह प्रयोग किया जो इस तरह का प्रथम प्रयास था। इस प्रकार यांत्रिक बलों पर किए अपने मुख्य कार्य के अतिरिक्त गैलीलियो के इन अन्य कार्यों ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कहीं अधिक विस्तृत कर दिया था जिससे लंबे काल तक प्रबुद्ध लोग प्रभावित होते रहे।
|शिक्षा=
 
|विद्यालय=
गैलीलियो ने आज से बहुत पहले गणित, सैद्धांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी के परस्पर संबंध को समझ लिया था। परवलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि एक समान त्वरण (uniform acceleration) की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग पर चल कर वापस पृथ्वी पर आ गिरेगा – बशर्ते हवा के घर्षण का बल उपेक्षणीय हो। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि उनका यह सिद्धांत जरूरी नहीं कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर भी लागू हो। उन्हें इस बात का ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण (friction) तथा अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटियां आई होंगी जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रहीं थीं। उनकी इसी अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकीविद् आइंस्टाइन ने उन्हें 'आधुनिक विज्ञान का पिता' की पदवी दे डाली। कथन में कितनी सचाई है पता नहीं – पर माना जाता है कि गैलीलियो ने पीसा की टेढ़ी मीनार से अलग-अलग संहति (mass) की गेंदें गिराने का प्रयोग किया और यह पाया उनके द्वारा गिरने में लगे समय का उनकी संहति से कोई सम्बन्ध नहीं था – सब समान समय ले रहीं थीं। ये बात तब तक छाई अरस्तू की विचारधारा के एकदम विपरीत थी – क्योंकि अरस्तू के अनुसार अधिक भारी वस्तुएं तेजी से गिरनी चाहिए। बाद में उन्होंने यही प्रयोग गेदों को अवनत तलों पर लुढ़का कर दुहराए तथा पुन: उसी निष्कर्ष पर पहुंचे।
|पुरस्कार-उपाधि=
 
|प्रसिद्धि=गतिकी, दूरबीन अवलोकन, खगोल विज्ञान, सूर्य केन्द्रीयता
गैलीलियो ने त्वरण के लिए सही गणितीय समीकरण खोजा। उन्होंने कहा कि अगर कोई स्थिर पिंड समान त्वरण के कारण गतिशील होता है तो उसकी चलित दूरी समय अंतराल के वर्ग के समानुपाती होगी।
|विशेष योगदान=
 
|नागरिकता=इतालवी
S = ut + ½ft2, if u = 0 then S = ½ft2 or S ∝ t2
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=गैलिलियो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने खगोलीय प्रेक्षण, [[चंद्रमा ग्रह|चंद्रमा]] पर क्रेटरों व पहाड़ों की खोज और [[बृहस्पति ग्रह|बृहस्पति]] के चार उपग्रहों,  प्रायः गैलीली उपग्रहों के रूप में जाना जाता है, के लिए दूरबीन का उपयोग किया था।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
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'''गैलीलियो गैलिली''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Galileo Galilei'') एक इतालवी खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ थे। गैलिलियो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने खगोलीय प्रेक्षण, [[चंद्रमा ग्रह|चंद्रमा]] पर क्रेटरों व पहाड़ों की खोज और [[बृहस्पति ग्रह|बृहस्पति]] के चार उपग्रहों,  प्रायः गैलीली उपग्रहों के रूप में जाना जाता है, के लिए दूरबीन का उपयोग किया था। उन्होंने शुक्र के कलाओं का अवलोकन किया और सौर धब्बों के अध्ययन से [[सूर्य]] की घूर्णन गति का पता लगाया। गैलिलियो ने निष्कर्ष निकाला कि [[अरस्तु]] का वैश्विक मानचित्र, जो अपने समय में अभी भी व्यापक रूप से विश्वसनीय था, गलत था। इसके बजाय उन्होंने [[कॉपरनिकस]] के 'सूर्य केंद्रीय सिद्धांत' का समर्थन किया। यह समर्थन उन्हें कैथोलिक चर्च के साथ संघर्ष में ले आया। उन पर मुकदमा चलाया गया और अपने जीवन के अंतिम आठ साल के लिए उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया। गैलिलियो पीसा में जन्मे थे, उनके पिता विन्सेंजियो गैलीली एक वकील और संगीतकार थे। गैलिलियो को पीसा और पडुआ के विश्वविद्यालयों में शिक्षित किया गया था। सबसे पहले उन्होंने औषधि का अध्ययन किया, लेकिन गणित के लिए इसे छोड़ दिया। अपने कैरियर के प्रारंभिक दिनों में,  गैलिलियो ने अरस्तु के दर्शन की आलोचना की, बल्कि फिर खुलेआम उसका उपहास उड़ाया। प्राकृतिक घटना की व्याख्या के मामले में अरस्तु की अपनी स्वयंसिद्ध धारणा थी कि [[पृथ्वी]] [[ब्रह्मांड]] के केंद्र पर दृढ़ता से खड़ी है। तब अंतरिक्ष में पृथ्वी की गति का कोई ज्ञात भौतिक प्रमाण नहीं था।
==जीवन परिचय==
[[यूरोप]] में एक समय था जब [[रोम]] और [[यूनान]] की सभ्यताएं अपने पतन की ओर अग्रसर थीं। उसके बाद पूरा [[महाद्वीप]] अज्ञानता के अन्धकार में छुप गया। फिर समय ने करवट ली और [[विज्ञान]] और तकनीकी प्रगति ने यूरोप को इस अन्धकार से निकालकर रौशनी की ओर मोड़ा। इस रौशनी को पैदा करने में [[सूर्य]] की तरह जिस वैज्ञानिक ने योगदान दिया उसे गैलिलियो गैलीली के नाम से जाना जाता है।
====जन्म====
आधुनिक [[इटली]] के पीसा नामक शहर (पीसा की टेढ़ी [[मीनार]] के लिए प्रसिद्ध) में [[15 फरवरी]] 1564 को गैलीलियो गैलिली का जन्म हुआ। उनके पिता उन्हें चिकित्सा विज्ञान पढ़ाना चाहते थे, किंतु उनका शौक़ गणित और दर्शन में था। उन्होंने चिकित्सा की डिग्री हासिल किए बिना पीसा छोड़ दिया था।
==खगोल विज्ञानी==
अधिकांश लोग गैलीलियो को एक खगोलविज्ञानी के रूप में याद करते हैं जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली तथा खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया और साथ ही अपने प्रेक्षणों से ऐसे चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए जिसने खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक [[खगोल विज्ञान]] की नींव रखी। पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि खगोल विज्ञानी होने के अलावा वे एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक भी थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसीलिए गैलीलियो को 'आधुनिक खगोल विज्ञान के जनक', 'आधुनिक भौतिकी का पिता' या 'विज्ञान का पिता' के रूप में संबोधित किया जाता है।
==भौतिकीविद् ==
गैलीलियो ने [[भौतिक विज्ञान]] में गतिकी के समीकरण स्थापित किए। उनका जड़त्व का नियम जगप्रसिद्ध है। उन्होंने पीसा की मीनार के अपने प्रसिद्ध प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि वस्तुओं के गिरने की गति उनके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती। उन्होंने पहली बार सिद्ध किया की निर्वात में प्रक्षेप्य का पथ पर्वलयकार होता है। गैलिलियो ने उच्च कोटि का कम्पास बनाया जो समुद्री यात्रियों के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुआ। उसके अन्य आविष्कारों में थर्मामीटर, [[सूक्ष्मदर्शी]], पेंडुलम घड़ी इत्यादि हैं। भौतिक नियमों के बारे में बताया की वे उन सभी निकायों में, जो नियत गति से चलते हैं, समान रूप से लागू होते हैं। यह सापेक्षता के सिद्धांत की प्रारंभिक झलक थी।
==गणितज्ञ==
गैलीलियो को सूक्ष्म गणितीय विश्लेषण करने का कौशल संभवत: अपने पिता विन्सैन्जो गैलिली से विरासत में आनुवांशिक रूप में तथा कुछ उनकी कार्यशैली को क़रीब से देख कर मिला होगा। विन्सैन्जो एक जाने-माने संगीत विशेषज्ञ थे और ‘ल्यूट’ नामक [[वाद्य यंत्र]] बजाते थे जिसने बाद में [[गिटार]] और बैन्जो का रूप ले लिया। उन्होंने भौतिकी में पहली बार ऐसे प्रयोग किए जिनसे 'अरैखिक संबंध' का प्रतिपादन हुआ। तब यह ज्ञात था कि किसी वाद्य यंत्र की तनी हुई डोर (या तार) के तनाव और उससे निकलने वाली आवृत्ति में एक संबंध होता है, आवृत्ति तनाव के वर्ग के समानुपाती होती है। इस तरह संगीत के सिद्धांत में गणित की थोड़ी बहुत पैठ थी। इससे प्रेरित होकर गैलीलियो ने पिता के कार्य को आगे बढ़ाया। माना जाता है कि गैलिलियो ने ही पहली बार कहा कि सभी प्राकृतिक नियम गणितीय नियमों का पालन करते हैं। उसने एक जगह लिखा, 'फिलोसोफी की इस विशाल किताब को ब्रह्माण्ड ने लिखी है और यह गणितीय भाषा में है (भगवान की भाषा गणित है)। इसके पात्र वृत्त, त्रिभुज और दूसरे ज्यामिति आकार हैं।
==दार्शनिक==
गैलीलियो ने [[दर्शन शास्त्र]] का भी गहन अध्ययन किया था साथ ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे। पर वे अपने प्रयोगों के परिणामों को कैसे नकार सकते थे जो पुरानी मान्यताओं के विरुद्ध जाते थे और वे इनकी पूरी ईमानदारी के साथ व्याख्या करते थे। उनकी चर्च के प्रति निष्ठा के बावजूद उनका ज्ञान और विवेक उन्हें किसी भी पुरानी अवधारणा को बिना प्रयोग और गणित के तराजू में तोले मानने से रोकता था। चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा समझा। पर गैलीलियो की इस सोच ने मनुष्य की चिंतन प्रक्रिया में नया मोड़ ला दिया। स्वयं गैलीलियो अपने विचारों को बदलने को तैयार हो जाते यदि उनके प्रयोगों के परिणाम ऐसा इशारा करते। अपने प्रयोगों को करने के लिए गैलीलियो ने लंबाई और समय के मानक तैयार किए ताकि यही प्रयोग अन्यत्र जब दूसरी प्रयोगशालाओं में दुहराए जाएं तो परिणामों की पुनरावृत्ति द्वारा उनका सत्यापन किया जा सके।
==प्रकाश की गति नापने का प्रयास==
गैलीलियो ने [[प्रकाश]] की गति नापने का भी प्रयास किया और तत्संबंधी प्रयोग किए। गैलीलियो व उनका एक सहायक दो भिन्न [[पर्वत]] शिखरों पर कपाट लगी [[लालटेन]] लेकर रात में चढ़ गए। सहायक को निर्देश दिया गया था कि जैसे ही उसे गैलीलियो की लालटेन का प्रकाश दिखे उसे अपनी लालटेन का कपाट खोल देना था। गैलीलियो को अपने कपाट खोलने व सहायक की लालटेन का प्रकाश दिखने के बीच का समय अंतराल मापना था- पहाड़ों के बीच की दूरी उन्हें ज्ञात थी। इस तरह उन्होंने प्रकाश की गति ज्ञात की। पर गैलीलियो – गैलीलियो ठहरे – वे इतने से कहां संतुष्ट होने वाले थे। अपने प्रायोगिक निष्कर्ष को दुहराना जो था। इस बार उन्होंने ऐसी दो पहाड़ियों का चयन किया जिनके बीच की दूरी कहीं ज़्यादा थी। पर आश्चर्य, इस बार भी समय अंतराल पहले जितना ही आया। गैलीलियो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रकाश को चलने में लग रहा समय उनके सहायक की प्रतिक्रिया के समय से बहुत कम होगा और इस प्रकार प्रकाश का [[वेग]] नापना उनकी युक्ति की संवेदनशीलता के परे था। पर गैलीलियो द्वारा [[बृहस्पति ग्रह|बृहस्पति]] के [[चंद्रमा ग्रह|चंद्रमाओं]] के बृहस्पति की छाया में आ जाने से उन पर पड़ने वाले [[ग्रहण]] के प्रेक्षण से ओल रोमर नामक हॉलैंड के खगोलविज्ञानी को एक विचार आया। उन्हें लगा कि इन प्रेक्षणों के द्वारा प्रकाश का वेग ज्ञात किया जा सकता है। सन् 1675 में उन्होंने यह प्रयोग किया जो इस तरह का प्रथम प्रयास था। इस प्रकार यांत्रिक बलों पर किए अपने मुख्य कार्य के अतिरिक्त गैलीलियो के इन अन्य कार्यों ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कहीं अधिक विस्तृत कर दिया था जिससे लंबे काल तक प्रबुद्ध लोग प्रभावित होते रहे।
====निष्कर्ष====
गैलीलियो ने आज से बहुत पहले गणित, सैद्धांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी के परस्पर संबंध को समझ लिया था। परवलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि एक समान त्वरण (uniform acceleration) की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग पर चल कर वापस पृथ्वी पर आ गिरेगा – बशर्ते हवा के घर्षण का बल उपेक्षणीय हो। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि उनका यह सिद्धांत ज़रूरी नहीं कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर भी लागू हो। उन्हें इस बात का ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण (friction) तथा अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटियां आई होंगी जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रहीं थीं। उनकी इसी अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकीविद् [[आइंस्टाइन |आइंस्टाइन]] ने उन्हें 'आधुनिक विज्ञान का पिता' की पदवी दे डाली। कथन में कितनी सचाई है पता नहीं – पर माना जाता है कि गैलीलियो ने पीसा की टेढ़ी [[मीनार]] से अलग-अलग संहति (mass) की गेंदें गिराने का प्रयोग किया और यह पाया उनके द्वारा गिरने में लगे समय का उनकी संहति से कोई सम्बन्ध नहीं था – सब समान समय ले रहीं थीं। ये बात तब तक छाई अरस्तू की विचारधारा के एकदम विपरीत थी – क्योंकि अरस्तू के अनुसार अधिक भारी वस्तुएं तेज़ीसे गिरनी चाहिए। बाद में उन्होंने यही प्रयोग गेदों को अवनत तलों पर लुढ़का कर दुहराए तथा पुन: उसी निष्कर्ष पर पहुंचे। गैलीलियो ने [[त्वरण]] के लिए सही गणितीय समीकरण खोजा। उन्होंने कहा कि अगर कोई स्थिर पिंड समान त्वरण के कारण गतिशील होता है तो उसकी चलित दूरी समय अंतराल के वर्ग के समानुपाती होगी।


<blockquote>S = ut + ½ft2, if u = 0 then S = ½ft2 or S ∝ t2</blockquote>
==जड़त्व का सिद्धांत==
गैलीलियो ने ही 'जड़त्व का सिद्धांत' हमें दिया जिसके अनुसार 'किसी समतल पर चलायमान पिंड तब तक उसी दिशा व वेग से गति करेगा जब तक उसे छेड़ा न जाए'। बाद में यह जाकर न्यूटन के गति के सिद्धांतों का पहला सिद्धांत बना। पीसा के विशाल कैथेड्रल (चर्च) में झूलते झूमर को देख कर उन्हें ख्याल आया क्यों न इसका दोलन काल नापा जाए – उन्होंने अपनी नब्ज की धप-धप की मदद से यह कार्य किया – और इस प्रकार सरल लोलक का सिद्धांत बाहर आया – कि लोलक का आवर्त्तकाल उसके आयाम (amplitude) पर निर्भर नहीं करता (यह बात केवल छोटे आयाम पर लागू होती है – पर एक घड़ी का निर्माण करने के लिए इतनी परिशुद्धता काफ़ी है)। सन् 1632 में उन्होंने ज्वार-भाटे की व्याख्या पृथ्वी की गति द्वारा की। इसमें उन्होंने समुद्र की तलहटी की बनावट, इसके ज्वार की तरंगों की ऊंचाई तथा आने के समय में संबंध की चर्चा की – हालांकि यह सिद्धांत सही नहीं पाया गया। बाद में केपलर व अन्य वैज्ञानिकों ने इसे सुधारा और सही कारण – चंद्रमा को बताया।
गैलीलियो ने ही 'जड़त्व का सिद्धांत' हमें दिया जिसके अनुसार 'किसी समतल पर चलायमान पिंड तब तक उसी दिशा व वेग से गति करेगा जब तक उसे छेड़ा न जाए'। बाद में यह जाकर न्यूटन के गति के सिद्धांतों का पहला सिद्धांत बना। पीसा के विशाल कैथेड्रल (चर्च) में झूलते झूमर को देख कर उन्हें ख्याल आया क्यों न इसका दोलन काल नापा जाए – उन्होंने अपनी नब्ज की धप-धप की मदद से यह कार्य किया – और इस प्रकार सरल लोलक का सिद्धांत बाहर आया – कि लोलक का आवर्त्तकाल उसके आयाम (amplitude) पर निर्भर नहीं करता (यह बात केवल छोटे आयाम पर लागू होती है – पर एक घड़ी का निर्माण करने के लिए इतनी परिशुद्धता काफ़ी है)। सन् 1632 में उन्होंने ज्वार-भाटे की व्याख्या पृथ्वी की गति द्वारा की। इसमें उन्होंने समुद्र की तलहटी की बनावट, इसके ज्वार की तरंगों की ऊंचाई तथा आने के समय में संबंध की चर्चा की – हालांकि यह सिद्धांत सही नहीं पाया गया। बाद में केपलर व अन्य वैज्ञानिकों ने इसे सुधारा और सही कारण – चंद्रमा को बताया।
==आपेक्षिकता सिद्धांत की नींव==
जिसे आज हम आपेक्षिकता (Relativity) का सिद्धांत कहते हैं उसकी नींव भी गैलीलियो ने ही डाली थी। उन्होंने कहा है 'भौतिकी के नियम वही रहते हैं चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग से एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था न परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है'। इसी ने बाद में [[न्यूटन के नियम|न्यूटन के नियमों]] का आधारगत ढांचा दिया। सन् 1609 में गैलीलियो को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हालैंड में आविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने उससे भी कहीं अधिक परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली।
==दूरबीन का उपयोग==
25 अगस्त 1609 को गैलिलियो ने अपने आधुनिक दूरदर्शी का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। फिर शुरू हुआ खगोलीय खोजों का एक अद्भुत अध्याय। गैलीलियो ने चांद को देखा उसके ऊबड़-खाबड़ गङ्ढे देखे। फिर उन्होंने दूरबीन चमकीले शुक्र ग्रह पर साधी – एक और नई खोज – [[शुक्र ग्रह]] भी (चंद्रमा की तरह) कला (phases) का प्रदर्शन करता है। जब उन्होंने बृहस्पति ग्रह को अपनी दूरबीन से निहारा, फिर जो देखा और उससे उन्होंने जो निष्कर्ष निकाला उसने [[सौरमंडल]] को ठीक-ठीक समझने में बड़ी मदद की। गैलीलियो ने देखा की बृहस्पति ग्रह के पास तीन छोटे-छोटे 'तारे' जैसे दिखाई दे रहे हैं। कुछ घंटे बाद जब दुबारा उसे देखा तो वहां तीन नहीं बल्कि चार 'तारे' दिखाई दिए। गैलीलियो समझ गए कि बृहस्पति ग्रह का अपना एक अलग संसार है। उसके गिर्द घूम रहे ये पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्होंने अपने टेलिस्कोप से जुपिटर ग्रह के चार चंद्रमाओं की खोज की। यहीं से टोलेमी और अरस्तू की परिकल्पनाओं की नीव हिल गई। जिनमें ग्रह और सूर्य सभी पिंडों की गतियों का केन्द्र पृथ्वी को बताया गया था। गैलीलियो की इस खोज से सौरमडंल के सूर्य केंद्रित सिद्धांत को बहुत बल मिला। हालांकि [[निकोलस कॉपरनिकस]] गैलीलियो से पहले ही यह कह चुके थे कि ग्रह [[सूर्य]] की परिक्रमा करते हैं न कि [[पृथ्वी]] की, पर इसे मानने वाले बहुत कम थे। हालांकि यह परिकल्पना भारतीय तथा मुस्लिम वैज्ञानिकों में पहले से मौजूद थी किंतु योरोपियन चर्च इससे सहमत न होकर अरस्तू की थ्योरी पर ही विश्वास रखते थे।
==अंतिम समय==
गैलीलियो ने कॉपरनिकस के सिद्धांत को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया। ये बात तत्कालीन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध जाती थी। इस कारण गैलिलियो के कथन को कैथोलिक चर्चों के विरोध का सामना करना पड़ा। गैलिलियो ने खंडन करते हुए कहा की उसने कहीं भी बाइबिल के विरुद्ध कुछ नहीं कहा है। गैलीलियो के जीवनकाल में इसे उनकी भूल ही समझा गया। सन् 1633 में चर्च ने गैलीलियो को आदेश दिया कि वे सार्वजनिक रूप से कहें कि ये उनकी बड़ी भूल है। उन्होंने ऐसा किया भी। फिर भी गैलीलियो को अपने जीवन के अन्तिम दिन रोमन साम्राज्य की कैद में बिताने पड़े। बाद में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के मद्देनजर सज़ा को गृह-कैद में तब्दील कर दिया गया। अपने जीवन का अंतिम दिन भी उन्होंने इसी कैद में गुज़ारा। कहीं वर्ष [[1992]] में जाकर वैटिकन शहर स्थित [[ईसाई धर्म]] की सर्वोच्च संस्था ने यह स्वीकारा कि गैलीलियो के मामले में उनसे ग़लती हुई थी। यानी उन्हें तीन सौ से अधिक साल लग गए असलियत को समझने और स्वीकारने में। जब गैलीलियो पीसा के विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान के प्राध्यापक थे तो उन्हें अपने शिष्यों को यह पढ़ाना पढ़ता था कि ग्रह [[पृथ्वी]] की परिक्रमा करते हैं। बाद में जब वे पदुवा नामक विश्वविद्यालय में गए तब उन्हें जाकर निकोलस कॉपरनिकस के नए सिद्धांत का पता चला था। खुद अपनी दूरबीन द्वारा किए गए प्रेक्षणों से (विशेषकर बृहस्पति के [[चंद्रमा]] देख कर) वे अब पूरी तरह आश्वस्त हो चुके थे कि कॉपरनिकस का सूर्य-केंद्रित सिद्धांत ही सौरमंडल की सही व्याख्या करता है। 72 साल की अवस्था को पहुंचते-पहुंचते गैलीलियो अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह खो चुके थे। बहुत से लोग यह मानते हैं कि उनका अंधापन अपनी दूरबीन द्वारा सन् 1613 में सूर्य को देखने (जिसके द्वारा उन्होंने सौर-कलंक या सनस्पॉट्स भी खोजे थे) के कारण उत्पन्न हुआ होगा। पर जांच करने पर पता चला कि ऐसा मोतियाबिंद के आ जाने और आंख की ग्लौकोमा नामक बीमारी के कारण हुआ होगा।
====मृत्यु====
सन् 1642 में गृह-कैद झेल रहे गैलीलियो की [[8 जनवरी]] को मृत्यु हो गई। कुछ मास बाद उसी [[वर्ष]] न्यूटन का जन्म हुआ। इस तरह कह सकते हैं कि तब एक युग का अंत और एक और नए क्रांतिकारी युग का शुभारंभ हुआ। इस तरह गैलीलियों ने [[यूरोप]] की वैज्ञानिक प्रगति में मसीहा की तरह कार्य किया।


जिसे आज हम आपेक्षिकता (Relativity) का सिद्धांत कहते हैं उसकी नींव भी गैलीलियो ने ही डाली थी। उन्होंने कहा है 'भौतिकी के नियम वही रहते हैं चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग से एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था न परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है'। इसी ने बाद में न्यूटन के नियमों का आधारगत ढांचा दिया। सन् 1609 में गैलीलियो को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हालैंड में आविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने उससे भी कहीं अधिक परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली। 25 अगस्त 1609 को गैलिलियो ने अपने आधुनिक टेलिस्कोप का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। फिर शुरू हुआ खगोलीय खोजों का एक अद्भुत अध्याय। गैलीलियो ने चांद को देखा उसके ऊबड़-खाबड़ गङ्ढे देखे। फिर उन्होंने दूरबीन चमकीले शुक्र ग्रह पर साधी – एक और नई खोज – शुक्र ग्रह भी (चंद्रमा की तरह) कला (phases) का प्रदर्शन करता है। जब उन्होंने बृहस्पति ग्रह को अपनी दूरबीन से निहारा, फिर जो देखा और उससे उन्होंने जो निष्कर्ष निकाला उसने सौरमंडल को ठीक-ठीक समझने में बड़ी मदद की। गैलीलियो ने देखा की बृहस्पति ग्रह के पास तीन छोटे-छोटे 'तारे' जैसे दिखाई दे रहे हैं। कुछ घंटे बाद जब दुबारा उसे देखा तो वहां तीन नहीं बल्कि चार 'तारे' दिखाई दिए। गैलीलियो समझ गए कि बृहस्पति ग्रह का अपना एक अलग संसार है। उसके गिर्द घूम रहे ये पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्होंने अपने टेलिस्कोप से जुपिटर ग्रह के चार चंद्रमाओं की खोज की। यहीं से टोलेमी और अरस्तू की परिकल्पनाओं की नीव हिल गई। जिनमें ग्रह और सूर्य सभी पिंडों की गतियों का केन्द्र पृथ्वी को बताया गया था। गैलीलियो की इस खोज से सौरमडंल के सूर्य केंद्रित सिद्धांत को बहुत बल मिला। हालांकि निकोलस कॉपरनिकस गैलीलियो से पहले ही यह कह चुके थे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं न कि पृथ्वी की, पर इसे मानने वाले बहुत कम थे। हालांकि यह परिकल्पना भारतीय तथा मुस्लिम वैज्ञानिकों में पहले से मौजूद थी किंतु योरोपियन चर्च इससे सहमत न होकर अरस्तू की थ्योरी पर ही विश्वास रखते थे।
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इसके साथ ही गैलीलियो ने कॉपरनिकस के सिद्धांत को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया। ये बात तत्कालीन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध जाती थी। इस कारण गैलिलियो के कथन को कैथोलिक चर्चों के विरोध का सामना करना पड़ा। गैलिलियो ने खंडन करते हुए कहा की उसने कहीं भी बाइबिल के विरुद्ध कुछ नही कहा है। गैलीलियो के जीवनकाल में इसे उनकी भूल ही समझा गया। सन् 1633 में चर्च ने गैलीलियो को आदेश दिया कि वे सार्वजनिक रूप से कहें कि ये उनकी बड़ी भूल है। उन्होंने ऐसा किया भी। फिर भी गैलीलियो को अपने जीवन के अन्तिम दिन रोमन साम्राज्य की कैद में बिताने पड़े। बाद में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के मद्देनजर सजा को गृह-कैद में तब्दील कर दिया गया। अपने जीवन का अंतिम दिन भी उन्होंने इसी कैद में गुज़ारा। कहीं वर्ष 1992 में जाकर वैटिकन शहर स्थित ईसाई धर्म की सर्वोच्च संस्था ने यह स्वीकारा कि गैलीलियो के मामले में उनसे गलती हुई थी। यानी उन्हें तीन सौ से अधिक साल लग गए असलियत को समझने और स्वीकारने में।
 
जब गैलीलियो पीसा के विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान के प्राध्यापक थे तो उन्हें अपने शिष्यों को यह पढ़ाना पढ़ता था कि ग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। बाद में जब वे पदुवा नामक विश्वविद्यालय में गए तब उन्हें जाकर निकोलस कॉपरनिकस के नए सिद्धांत का पता चला था। खुद अपनी दूरबीन द्वारा किए गए प्रेक्षणों से (विशेषकर बृहस्पति के चंद्रमा देख कर) वे अब पूरी तरह आश्वस्त हो चुके थे कि कॉपरनिकस का सूर्य-केंद्रित सिद्धांत ही सौरमंडल की सही व्याख्या करता है। बहत्तर साल की अवस्था को पहुंचते-पहुंचते गैलीलियो अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह खो चुके थे। बहुत से लोग यह मानते हैं कि उनका अंधापन अपनी दूरबीन द्वारा सन् 1613 में सूर्य को देखने (जिसके द्वारा उन्होंने सौर-कलंक या सनस्पॉट्स भी खोजे थे) के कारण उत्पन्न हुआ होगा। पर जांच करने पर पता चला कि ऐसा मोतियाबिंद के आ जाने और आंख की ग्लौकोमा नामक बीमारी के कारण हुआ होगा।
 
सन् 1642 में गृह-कैद झेल रहे गैलीलियो की 8 जनवरी को मृत्यु हो गई। कुछ मास बाद उसी वर्ष न्यूटन का जन्म हुआ। इस तरह कह सकते हैं कि तब एक युग का अंत और एक और नए क्रांतिकारी युग का शुभारंभ हुआ। इस तरह गैलीलियों ने योरोप की वैज्ञानिक प्रगति में मसीहा की तरह कार्य किया।
 
 
 
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08:19, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

गैलिलियो गैलीली
गैलिलियो गैलीली
गैलिलियो गैलीली
पूरा नाम गैलिलियो गैलीली
जन्म 15 फ़रवरी, 1564
जन्म भूमि पीसा, इटली
मृत्यु 8 जनवरी, 1642
मृत्यु स्थान इटली
कर्म-क्षेत्र खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ
प्रसिद्धि गतिकी, दूरबीन अवलोकन, खगोल विज्ञान, सूर्य केन्द्रीयता
नागरिकता इतालवी
अन्य जानकारी गैलिलियो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने खगोलीय प्रेक्षण, चंद्रमा पर क्रेटरों व पहाड़ों की खोज और बृहस्पति के चार उपग्रहों, प्रायः गैलीली उपग्रहों के रूप में जाना जाता है, के लिए दूरबीन का उपयोग किया था।

गैलीलियो गैलिली (अंग्रेज़ी:Galileo Galilei) एक इतालवी खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी और गणितज्ञ थे। गैलिलियो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने खगोलीय प्रेक्षण, चंद्रमा पर क्रेटरों व पहाड़ों की खोज और बृहस्पति के चार उपग्रहों, प्रायः गैलीली उपग्रहों के रूप में जाना जाता है, के लिए दूरबीन का उपयोग किया था। उन्होंने शुक्र के कलाओं का अवलोकन किया और सौर धब्बों के अध्ययन से सूर्य की घूर्णन गति का पता लगाया। गैलिलियो ने निष्कर्ष निकाला कि अरस्तु का वैश्विक मानचित्र, जो अपने समय में अभी भी व्यापक रूप से विश्वसनीय था, गलत था। इसके बजाय उन्होंने कॉपरनिकस के 'सूर्य केंद्रीय सिद्धांत' का समर्थन किया। यह समर्थन उन्हें कैथोलिक चर्च के साथ संघर्ष में ले आया। उन पर मुकदमा चलाया गया और अपने जीवन के अंतिम आठ साल के लिए उन्हें घर में नजरबंद कर दिया गया। गैलिलियो पीसा में जन्मे थे, उनके पिता विन्सेंजियो गैलीली एक वकील और संगीतकार थे। गैलिलियो को पीसा और पडुआ के विश्वविद्यालयों में शिक्षित किया गया था। सबसे पहले उन्होंने औषधि का अध्ययन किया, लेकिन गणित के लिए इसे छोड़ दिया। अपने कैरियर के प्रारंभिक दिनों में, गैलिलियो ने अरस्तु के दर्शन की आलोचना की, बल्कि फिर खुलेआम उसका उपहास उड़ाया। प्राकृतिक घटना की व्याख्या के मामले में अरस्तु की अपनी स्वयंसिद्ध धारणा थी कि पृथ्वी ब्रह्मांड के केंद्र पर दृढ़ता से खड़ी है। तब अंतरिक्ष में पृथ्वी की गति का कोई ज्ञात भौतिक प्रमाण नहीं था।

जीवन परिचय

यूरोप में एक समय था जब रोम और यूनान की सभ्यताएं अपने पतन की ओर अग्रसर थीं। उसके बाद पूरा महाद्वीप अज्ञानता के अन्धकार में छुप गया। फिर समय ने करवट ली और विज्ञान और तकनीकी प्रगति ने यूरोप को इस अन्धकार से निकालकर रौशनी की ओर मोड़ा। इस रौशनी को पैदा करने में सूर्य की तरह जिस वैज्ञानिक ने योगदान दिया उसे गैलिलियो गैलीली के नाम से जाना जाता है।

जन्म

आधुनिक इटली के पीसा नामक शहर (पीसा की टेढ़ी मीनार के लिए प्रसिद्ध) में 15 फरवरी 1564 को गैलीलियो गैलिली का जन्म हुआ। उनके पिता उन्हें चिकित्सा विज्ञान पढ़ाना चाहते थे, किंतु उनका शौक़ गणित और दर्शन में था। उन्होंने चिकित्सा की डिग्री हासिल किए बिना पीसा छोड़ दिया था।

खगोल विज्ञानी

अधिकांश लोग गैलीलियो को एक खगोलविज्ञानी के रूप में याद करते हैं जिसने दूरबीन में सुधार कर उसे अधिक शक्तिशाली तथा खगोलीय प्रेक्षणों के लिए उपयुक्त बनाया और साथ ही अपने प्रेक्षणों से ऐसे चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए जिसने खगोल विज्ञान को नई दिशा दी और आधुनिक खगोल विज्ञान की नींव रखी। पर बहुत कम लोग यह जानते हैं कि खगोल विज्ञानी होने के अलावा वे एक कुशल गणितज्ञ, भौतिकीविद् और दार्शनिक भी थे जिसने यूरोप की वैज्ञानिक क्रांति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसीलिए गैलीलियो को 'आधुनिक खगोल विज्ञान के जनक', 'आधुनिक भौतिकी का पिता' या 'विज्ञान का पिता' के रूप में संबोधित किया जाता है।

भौतिकीविद्

गैलीलियो ने भौतिक विज्ञान में गतिकी के समीकरण स्थापित किए। उनका जड़त्व का नियम जगप्रसिद्ध है। उन्होंने पीसा की मीनार के अपने प्रसिद्ध प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि वस्तुओं के गिरने की गति उनके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती। उन्होंने पहली बार सिद्ध किया की निर्वात में प्रक्षेप्य का पथ पर्वलयकार होता है। गैलिलियो ने उच्च कोटि का कम्पास बनाया जो समुद्री यात्रियों के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध हुआ। उसके अन्य आविष्कारों में थर्मामीटर, सूक्ष्मदर्शी, पेंडुलम घड़ी इत्यादि हैं। भौतिक नियमों के बारे में बताया की वे उन सभी निकायों में, जो नियत गति से चलते हैं, समान रूप से लागू होते हैं। यह सापेक्षता के सिद्धांत की प्रारंभिक झलक थी।

गणितज्ञ

गैलीलियो को सूक्ष्म गणितीय विश्लेषण करने का कौशल संभवत: अपने पिता विन्सैन्जो गैलिली से विरासत में आनुवांशिक रूप में तथा कुछ उनकी कार्यशैली को क़रीब से देख कर मिला होगा। विन्सैन्जो एक जाने-माने संगीत विशेषज्ञ थे और ‘ल्यूट’ नामक वाद्य यंत्र बजाते थे जिसने बाद में गिटार और बैन्जो का रूप ले लिया। उन्होंने भौतिकी में पहली बार ऐसे प्रयोग किए जिनसे 'अरैखिक संबंध' का प्रतिपादन हुआ। तब यह ज्ञात था कि किसी वाद्य यंत्र की तनी हुई डोर (या तार) के तनाव और उससे निकलने वाली आवृत्ति में एक संबंध होता है, आवृत्ति तनाव के वर्ग के समानुपाती होती है। इस तरह संगीत के सिद्धांत में गणित की थोड़ी बहुत पैठ थी। इससे प्रेरित होकर गैलीलियो ने पिता के कार्य को आगे बढ़ाया। माना जाता है कि गैलिलियो ने ही पहली बार कहा कि सभी प्राकृतिक नियम गणितीय नियमों का पालन करते हैं। उसने एक जगह लिखा, 'फिलोसोफी की इस विशाल किताब को ब्रह्माण्ड ने लिखी है और यह गणितीय भाषा में है (भगवान की भाषा गणित है)। इसके पात्र वृत्त, त्रिभुज और दूसरे ज्यामिति आकार हैं।

दार्शनिक

गैलीलियो ने दर्शन शास्त्र का भी गहन अध्ययन किया था साथ ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के भी थे। पर वे अपने प्रयोगों के परिणामों को कैसे नकार सकते थे जो पुरानी मान्यताओं के विरुद्ध जाते थे और वे इनकी पूरी ईमानदारी के साथ व्याख्या करते थे। उनकी चर्च के प्रति निष्ठा के बावजूद उनका ज्ञान और विवेक उन्हें किसी भी पुरानी अवधारणा को बिना प्रयोग और गणित के तराजू में तोले मानने से रोकता था। चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा समझा। पर गैलीलियो की इस सोच ने मनुष्य की चिंतन प्रक्रिया में नया मोड़ ला दिया। स्वयं गैलीलियो अपने विचारों को बदलने को तैयार हो जाते यदि उनके प्रयोगों के परिणाम ऐसा इशारा करते। अपने प्रयोगों को करने के लिए गैलीलियो ने लंबाई और समय के मानक तैयार किए ताकि यही प्रयोग अन्यत्र जब दूसरी प्रयोगशालाओं में दुहराए जाएं तो परिणामों की पुनरावृत्ति द्वारा उनका सत्यापन किया जा सके।

प्रकाश की गति नापने का प्रयास

गैलीलियो ने प्रकाश की गति नापने का भी प्रयास किया और तत्संबंधी प्रयोग किए। गैलीलियो व उनका एक सहायक दो भिन्न पर्वत शिखरों पर कपाट लगी लालटेन लेकर रात में चढ़ गए। सहायक को निर्देश दिया गया था कि जैसे ही उसे गैलीलियो की लालटेन का प्रकाश दिखे उसे अपनी लालटेन का कपाट खोल देना था। गैलीलियो को अपने कपाट खोलने व सहायक की लालटेन का प्रकाश दिखने के बीच का समय अंतराल मापना था- पहाड़ों के बीच की दूरी उन्हें ज्ञात थी। इस तरह उन्होंने प्रकाश की गति ज्ञात की। पर गैलीलियो – गैलीलियो ठहरे – वे इतने से कहां संतुष्ट होने वाले थे। अपने प्रायोगिक निष्कर्ष को दुहराना जो था। इस बार उन्होंने ऐसी दो पहाड़ियों का चयन किया जिनके बीच की दूरी कहीं ज़्यादा थी। पर आश्चर्य, इस बार भी समय अंतराल पहले जितना ही आया। गैलीलियो इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि प्रकाश को चलने में लग रहा समय उनके सहायक की प्रतिक्रिया के समय से बहुत कम होगा और इस प्रकार प्रकाश का वेग नापना उनकी युक्ति की संवेदनशीलता के परे था। पर गैलीलियो द्वारा बृहस्पति के चंद्रमाओं के बृहस्पति की छाया में आ जाने से उन पर पड़ने वाले ग्रहण के प्रेक्षण से ओल रोमर नामक हॉलैंड के खगोलविज्ञानी को एक विचार आया। उन्हें लगा कि इन प्रेक्षणों के द्वारा प्रकाश का वेग ज्ञात किया जा सकता है। सन् 1675 में उन्होंने यह प्रयोग किया जो इस तरह का प्रथम प्रयास था। इस प्रकार यांत्रिक बलों पर किए अपने मुख्य कार्य के अतिरिक्त गैलीलियो के इन अन्य कार्यों ने उनके प्रभाव क्षेत्र को कहीं अधिक विस्तृत कर दिया था जिससे लंबे काल तक प्रबुद्ध लोग प्रभावित होते रहे।

निष्कर्ष

गैलीलियो ने आज से बहुत पहले गणित, सैद्धांतिक भौतिकी और प्रायोगिक भौतिकी के परस्पर संबंध को समझ लिया था। परवलय या पैराबोला का अध्ययन करते हुए वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि एक समान त्वरण (uniform acceleration) की अवस्था में पृथ्वी पर फेंका कोई पिंड एक परवलयाकार मार्ग पर चल कर वापस पृथ्वी पर आ गिरेगा – बशर्ते हवा के घर्षण का बल उपेक्षणीय हो। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि उनका यह सिद्धांत ज़रूरी नहीं कि किसी ग्रह जैसे पिंड पर भी लागू हो। उन्हें इस बात का ध्यान था कि उनके मापन में घर्षण (friction) तथा अन्य बलों के कारण अवश्य त्रुटियां आई होंगी जो उनके सिद्धांत की सही गणितीय व्याख्या में बाधा उत्पन्न कर रहीं थीं। उनकी इसी अंतर्दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भौतिकीविद् आइंस्टाइन ने उन्हें 'आधुनिक विज्ञान का पिता' की पदवी दे डाली। कथन में कितनी सचाई है पता नहीं – पर माना जाता है कि गैलीलियो ने पीसा की टेढ़ी मीनार से अलग-अलग संहति (mass) की गेंदें गिराने का प्रयोग किया और यह पाया उनके द्वारा गिरने में लगे समय का उनकी संहति से कोई सम्बन्ध नहीं था – सब समान समय ले रहीं थीं। ये बात तब तक छाई अरस्तू की विचारधारा के एकदम विपरीत थी – क्योंकि अरस्तू के अनुसार अधिक भारी वस्तुएं तेज़ीसे गिरनी चाहिए। बाद में उन्होंने यही प्रयोग गेदों को अवनत तलों पर लुढ़का कर दुहराए तथा पुन: उसी निष्कर्ष पर पहुंचे। गैलीलियो ने त्वरण के लिए सही गणितीय समीकरण खोजा। उन्होंने कहा कि अगर कोई स्थिर पिंड समान त्वरण के कारण गतिशील होता है तो उसकी चलित दूरी समय अंतराल के वर्ग के समानुपाती होगी।

S = ut + ½ft2, if u = 0 then S = ½ft2 or S ∝ t2

जड़त्व का सिद्धांत

गैलीलियो ने ही 'जड़त्व का सिद्धांत' हमें दिया जिसके अनुसार 'किसी समतल पर चलायमान पिंड तब तक उसी दिशा व वेग से गति करेगा जब तक उसे छेड़ा न जाए'। बाद में यह जाकर न्यूटन के गति के सिद्धांतों का पहला सिद्धांत बना। पीसा के विशाल कैथेड्रल (चर्च) में झूलते झूमर को देख कर उन्हें ख्याल आया क्यों न इसका दोलन काल नापा जाए – उन्होंने अपनी नब्ज की धप-धप की मदद से यह कार्य किया – और इस प्रकार सरल लोलक का सिद्धांत बाहर आया – कि लोलक का आवर्त्तकाल उसके आयाम (amplitude) पर निर्भर नहीं करता (यह बात केवल छोटे आयाम पर लागू होती है – पर एक घड़ी का निर्माण करने के लिए इतनी परिशुद्धता काफ़ी है)। सन् 1632 में उन्होंने ज्वार-भाटे की व्याख्या पृथ्वी की गति द्वारा की। इसमें उन्होंने समुद्र की तलहटी की बनावट, इसके ज्वार की तरंगों की ऊंचाई तथा आने के समय में संबंध की चर्चा की – हालांकि यह सिद्धांत सही नहीं पाया गया। बाद में केपलर व अन्य वैज्ञानिकों ने इसे सुधारा और सही कारण – चंद्रमा को बताया।

आपेक्षिकता सिद्धांत की नींव

जिसे आज हम आपेक्षिकता (Relativity) का सिद्धांत कहते हैं उसकी नींव भी गैलीलियो ने ही डाली थी। उन्होंने कहा है 'भौतिकी के नियम वही रहते हैं चाहे कोई पिंड स्थिर हो या समान वेग से एक सरल रेखा में गतिमान। कोई भी अवस्था न परम स्थिर या परम चल अवस्था हो सकती है'। इसी ने बाद में न्यूटन के नियमों का आधारगत ढांचा दिया। सन् 1609 में गैलीलियो को दूरबीन के बारे में पता चला जिसका हालैंड में आविष्कार हो चुका था। केवल उसका विवरण सुनकर उन्होंने उससे भी कहीं अधिक परिष्कृत और शक्तिशाली दूरबीन स्वयं बना ली।

दूरबीन का उपयोग

25 अगस्त 1609 को गैलिलियो ने अपने आधुनिक दूरदर्शी का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। फिर शुरू हुआ खगोलीय खोजों का एक अद्भुत अध्याय। गैलीलियो ने चांद को देखा उसके ऊबड़-खाबड़ गङ्ढे देखे। फिर उन्होंने दूरबीन चमकीले शुक्र ग्रह पर साधी – एक और नई खोज – शुक्र ग्रह भी (चंद्रमा की तरह) कला (phases) का प्रदर्शन करता है। जब उन्होंने बृहस्पति ग्रह को अपनी दूरबीन से निहारा, फिर जो देखा और उससे उन्होंने जो निष्कर्ष निकाला उसने सौरमंडल को ठीक-ठीक समझने में बड़ी मदद की। गैलीलियो ने देखा की बृहस्पति ग्रह के पास तीन छोटे-छोटे 'तारे' जैसे दिखाई दे रहे हैं। कुछ घंटे बाद जब दुबारा उसे देखा तो वहां तीन नहीं बल्कि चार 'तारे' दिखाई दिए। गैलीलियो समझ गए कि बृहस्पति ग्रह का अपना एक अलग संसार है। उसके गिर्द घूम रहे ये पिंड अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्होंने अपने टेलिस्कोप से जुपिटर ग्रह के चार चंद्रमाओं की खोज की। यहीं से टोलेमी और अरस्तू की परिकल्पनाओं की नीव हिल गई। जिनमें ग्रह और सूर्य सभी पिंडों की गतियों का केन्द्र पृथ्वी को बताया गया था। गैलीलियो की इस खोज से सौरमडंल के सूर्य केंद्रित सिद्धांत को बहुत बल मिला। हालांकि निकोलस कॉपरनिकस गैलीलियो से पहले ही यह कह चुके थे कि ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं न कि पृथ्वी की, पर इसे मानने वाले बहुत कम थे। हालांकि यह परिकल्पना भारतीय तथा मुस्लिम वैज्ञानिकों में पहले से मौजूद थी किंतु योरोपियन चर्च इससे सहमत न होकर अरस्तू की थ्योरी पर ही विश्वास रखते थे।

अंतिम समय

गैलीलियो ने कॉपरनिकस के सिद्धांत को खुला समर्थन देना शुरू कर दिया। ये बात तत्कालीन वैज्ञानिक और धार्मिक मान्यताओं के विरुद्ध जाती थी। इस कारण गैलिलियो के कथन को कैथोलिक चर्चों के विरोध का सामना करना पड़ा। गैलिलियो ने खंडन करते हुए कहा की उसने कहीं भी बाइबिल के विरुद्ध कुछ नहीं कहा है। गैलीलियो के जीवनकाल में इसे उनकी भूल ही समझा गया। सन् 1633 में चर्च ने गैलीलियो को आदेश दिया कि वे सार्वजनिक रूप से कहें कि ये उनकी बड़ी भूल है। उन्होंने ऐसा किया भी। फिर भी गैलीलियो को अपने जीवन के अन्तिम दिन रोमन साम्राज्य की कैद में बिताने पड़े। बाद में उनके बिगड़ते स्वास्थ्य के मद्देनजर सज़ा को गृह-कैद में तब्दील कर दिया गया। अपने जीवन का अंतिम दिन भी उन्होंने इसी कैद में गुज़ारा। कहीं वर्ष 1992 में जाकर वैटिकन शहर स्थित ईसाई धर्म की सर्वोच्च संस्था ने यह स्वीकारा कि गैलीलियो के मामले में उनसे ग़लती हुई थी। यानी उन्हें तीन सौ से अधिक साल लग गए असलियत को समझने और स्वीकारने में। जब गैलीलियो पीसा के विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान के प्राध्यापक थे तो उन्हें अपने शिष्यों को यह पढ़ाना पढ़ता था कि ग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। बाद में जब वे पदुवा नामक विश्वविद्यालय में गए तब उन्हें जाकर निकोलस कॉपरनिकस के नए सिद्धांत का पता चला था। खुद अपनी दूरबीन द्वारा किए गए प्रेक्षणों से (विशेषकर बृहस्पति के चंद्रमा देख कर) वे अब पूरी तरह आश्वस्त हो चुके थे कि कॉपरनिकस का सूर्य-केंद्रित सिद्धांत ही सौरमंडल की सही व्याख्या करता है। 72 साल की अवस्था को पहुंचते-पहुंचते गैलीलियो अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह खो चुके थे। बहुत से लोग यह मानते हैं कि उनका अंधापन अपनी दूरबीन द्वारा सन् 1613 में सूर्य को देखने (जिसके द्वारा उन्होंने सौर-कलंक या सनस्पॉट्स भी खोजे थे) के कारण उत्पन्न हुआ होगा। पर जांच करने पर पता चला कि ऐसा मोतियाबिंद के आ जाने और आंख की ग्लौकोमा नामक बीमारी के कारण हुआ होगा।

मृत्यु

सन् 1642 में गृह-कैद झेल रहे गैलीलियो की 8 जनवरी को मृत्यु हो गई। कुछ मास बाद उसी वर्ष न्यूटन का जन्म हुआ। इस तरह कह सकते हैं कि तब एक युग का अंत और एक और नए क्रांतिकारी युग का शुभारंभ हुआ। इस तरह गैलीलियों ने यूरोप की वैज्ञानिक प्रगति में मसीहा की तरह कार्य किया।


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