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'''गोनर्द''' [[पाली भाषा|पाली]] ग्रंथ 'सुत्तनिपात' के अनुसार [[विदिशा]] तथा [[उज्जयिनी]] के मार्ग के बीच में स्थित एक नगर था। इस नगर को [[शुंग काल]] के उद्भट विद्वान [[पंतजलि]] का जन्म स्थान माना जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=300|url=}}</ref>
'''गोनर्द''' [[पाली भाषा|पाली]] ग्रंथ 'सुत्तनिपात' के अनुसार [[विदिशा]] तथा [[उज्जयिनी]] के मार्ग के बीच में स्थित एक नगर था। इस नगर को [[शुंग काल]] के उद्भट विद्वान् [[पंतजलि]] का जन्म स्थान माना जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=300|url=}}</ref>


*पतंजलि की [[माता]] का नाम 'गोणिका' था। ये '[[योग दर्शन]]' तथा [[पाणिनि]] के [[व्याकरण]] के '[[महाभाष्य]]' के विख्यात रचयिता थे।
*पतंजलि की [[माता]] का नाम 'गोणिका' था। ये '[[योग दर्शन]]' तथा [[पाणिनि]] के [[व्याकरण]] के '[[महाभाष्य]]' के विख्यात रचयिता थे।

14:43, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

गोनर्द पाली ग्रंथ 'सुत्तनिपात' के अनुसार विदिशा तथा उज्जयिनी के मार्ग के बीच में स्थित एक नगर था। इस नगर को शुंग काल के उद्भट विद्वान् पंतजलि का जन्म स्थान माना जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 300 |

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